Navratri
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समस्त धरा को उसके आतंक से मुक्त करा देती हैं। इसका एक आध्यात्मिक अर्थ यह भी है कि यह हमारे शरीर के भीतर आंतरिक जगत की ओर संकेत करता है। हमारे शरीर में 9 द्वार होते हैं। दो आंखों के, दो कानों के,दो नशीकाछिद्र के, एक मुख का और दो उत्सर्जन और प्रजनन की क्रिया होती है। जब तक हम इन 9 द्वारों का संसार में विचरण करते हैं हमारे अंदर आसुरी शक्तियां विद्यमान रहती हैं। जिन्हें हम मिटाना भी चाहें तो नहीं मिटा सकते। यह तब होता है जब तक हम इन नौ द्वारों से अपनी बुराइयों को समाप्त करने का प्रयास करते हैं। लेकिन हमारे मस्तिष्क पर एक दसवां नेत्र भी होता है। जिसे त्रिनेत्र या दिव्यचक्षु कहते हैं। जब वह खुलता है तब हम अपने आंतरिक जगत में मां दुर्गा के शक्ति के रूप ज्योति या प्रकाश जो उत्पन्न होता है उसका दर्शन करते हैं और दर्शन करते ही हमारे भीतर की असली शक्तियां,या अंदर ही महिषासुर की शक्तियों का वध हो जाता है। और भीतर – भीतर हम आनंद की अनुभूति करते हैं। जो कलश हम स्थापित करते हैं उसके आस-पास जो 9 दिनों तक जौ की खेती बढ़ रही होती है उसे हम सिर पर उठा कर जल में प्रवाह कर देते हैं। अर्थात जब तक नौ द्वारों में हम विचरण करते हैं हमारे कर्मों की खेती बढ़ती रहती है। जहां घड़ा अर्थात हमारे शरीर का घट, घड़े को हम घट भी कहते हैं। और जैसे ही 10वां दरवाजा खुला हमारे कर्मों का विस्तार होना समाप्त हो जाता है। हमने साधना, ध्यान व समाधि के प्रवाह में इन कर्मों की खेती का विसर्जन कर दिया। इसलिए यह पर्व बहुत महत्वपूर्ण है और हम इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।
शारदीय नवरात्र की शुरुआत पितृपक्ष के बाद हो जाता है। श्राद्ध पक्ष के समापन के बाद नवरात्रि शुरू हो जाती है। अश्विन मास में पड़ने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। इस बार शारदीय नवरात्र 7 अक्टूबर को गुरुवार के दिन से शुरु होने जा रहा है जो कि 15 अक्टूबर को समाप्त होगा। और इसी दिन दशहरे का पर्व भी मनाया जाता है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और विधि
कलश स्थापना के साथ नवरात्रि के पर्व की शुरुआत हो जाती है। इस बार 7 अक्टूबर द्वारा 2021 को शरद नवरात्रि की स्थापना की जानी है। स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 9:30 से 11:31 बजे तक रहेगा और इसका के अलावा दोपहर 3:33 से शाम 5:05 के बीच भी स्थापना कर सकते हैं। तथा 13 अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी की पूजा की जाएगी। 14 अक्टूबर को महानवमी पड़ रही है। कई लोग नवमी के दिन पूजा-पाठ करके विधि-विधान से व्रत खोलेंगे इस दिन कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। तथा 15 अक्टूबर को विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा।
कलश स्थापना करने के लिए सर्वप्रथम जहां माता का कलश रखना है या पूजा करना है वहां की अच्छी तरह से सफाई करें। उसके बाद लाल वस्त्र एक चौकी पर बिछाए और माता की तस्वीर को स्थापित करें। उसके पश्चात भगवान श्री गणेश की सर्वप्रथम प्रार्थना करें कि वह इस पूजा को निर्विघ्नं पूर्वक पूर्ण कराएं। उसके बाद मां दुर्गा के तस्वीर के सामने अखंड ज्योति जलाए। एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें और उसमें जौ के बीज डालें। एक कलश लें और उसके ऊपर कलावा बांधे। और कलश रखने से पहले उसके नीचे स्वास्तिक बनाएं तथा उस पर कलश को स्थापित करें। कलश में गंगाजल डालकर पानी भरें। कलश में साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें। फिर कलश के ऊपर आम के पेड़ की पांच पत्तियां लगाएं। कलश के ढक्कन से ढक दें। उस ढक्कन के ऊपर अक्षत भरें। नारियल को लाल वस्त्र से लपेट कर उसके ऊपर रखें। उसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करें। और 9 दिनों तक माता का पूजा करने का संकल्प लें। तथा विधिवत 9 दिनों तक माता की पूजा करें।
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