Tuesday, September 28, 2021
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पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान इन गलतियों को बिल्कुल भी न करें, वरना झेलना पड़ेगा बुरा परिणाम


पितृपक्ष 2021
– फोटो : google photo

20 सितंबर से पितृपक्ष प्रारंभ हो गया है। पितृपक्ष में पितरों को याद करके तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान करने का महत्व है। पिंडदान करने से जहां पितरों की आत्मा को कष्टों से मुक्ति मिलती है तो वहीं श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और सुख-संपत्ति का आर्शीवाद देते हैं। पितृपक्ष की 16 तिथियों में से किसी एक तिथि में पूर्वज का श्राद्ध किया जाता है। ब्राहम्णभोज कराया जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार ‘पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं। मर्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख है कि ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण अपने वंशज को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं। ब्रह्मपुराण में श्राद्ध का महत्व बताते हुए लिखा है कि ‘जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता, हमेश प्रसन्नता बनी रहती है।

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श्राद्ध का महत्व

श्राद्ध
का महत्व आपने जाना लेकिन अक्सर श्राद्ध करते समय लोग अनजाने में कुछ गलतियां कर देते हैं जिससे अनुकूल फल की बजाए प्रतिकूल फल मिल सकता है। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहें है वह बाते जो श्राद्ध करते समय ध्यान रखना चाहिए। श्राद्ध कार्य हमेशा दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है। क्योंकि शाम का समय राक्षसों का है। 

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात श्राद्ध कर्म कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए। जैसे अगर आप अपने किसी रिश्तेदार के घर हैं और श्राद्ध चल रहे हैं, तो आपको वहां पर श्राद्ध करने से बचना चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध ही फलदायी होता है। लेकिन अगर आप पितृपक्ष के दौरान किसी पुण्य तीर्थ या मन्दिर या अन्य पवित्र स्थान पर हैं तो आप वहां श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। शास्त्रों के अनसुरा श्राद्ध के लिये हमेशा दक्षिण की ओर ढलान वाली भूमि शुभफलदायी होती है। कहते हैं कि दक्षिणायन में पितरों का प्रभुत्व होता है। 

श्राद्ध में तुलसी व तिल के प्रयोग से पितृगण प्रसन्न होते हैं। लिहाजा श्राद्ध के भोजन आदि में इनका उपयोग जरूर करना चाहिए। सात ही इस बात का भी ध्यान रखें कि जिस भूमि पर श्राद्ध किया जाए उसे अच्छी तरह से साफ करके गोबर, गंगा जल आदि से पवित्र करना चाहिए।

श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान बड़ा ही पुण्यदायी बताया गया श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए। बिना ब्राह्मण भोज के श्राद्ध कर्म अधूरा माना गया है। ऐसा करने से वयक्ति पाप का भागी बन जाता है।

श्राद्ध का अधिकार केवल पुत्र को दिया गया है, यदि न हो तो पुत्री का पुत्र यानि नाती भी श्राद्ध कर सकता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के कई पुत्र हों तो उनमें से ज्येष्ठ पुत्र को ही श्राद्ध करने का हक है। यदि किसी का पुत्र न जीवित हो तो उसके लिए शास्त्रों में विकल्प दिया गया है कि पौत्र तथा पौत्र के न होने पर प्रपौत्र श्राद्ध कर सकता है। पुत्र व पौत्र की गैर हाजिरी में विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है परन्तु पत्नी का श्राद्ध पति तभी कर सकता है जब उसे कोई पुत्र न हो। यदि किसी का पुत्र है तो ऐसे स्थिति में उसे अपनी पत्नी का श्राद्ध नहीं करना चाहिये। पुत्र को ही अपनी माता का श्राद्ध करना चाहिये। जिसका कोई पुत्र या नाती आदि न हो तो उसके भाई की सन्तान उसका श्राद्ध कर सकती है। गोद लिया उत्तराधिकारी भी श्राद्धकर्म कर सकता है। 

श्राद्धकर्म के लिए एक नियम भी महत्वपूर्ण है जिसके अनुसार आपके जिस भी पूर्वज का स्वर्गवास है, उसी के अनुसार ब्राह्मण या ब्राह्मण की पत्नी को निमंत्रण देकर आना चाहिए। जैसे अगर आपके स्वर्गवासी पूर्वज एक पुरुष हैं, तो पुरुष ब्राह्मण को और अगर महिला है तो ब्राह्मण की पत्नी को भोजन खिलाना चाहिए, साथ ही ध्यान रखें कि अगर आपका स्वर्गवासी पूर्वज़ कोई सौभाग्यवती महिला थी, तो किसी सौभाग्यवती ब्राह्मण की पत्नी को ही भोजन के लिये निमंत्रण देकर आएं। श्राद्ध कर्म में यदि इन सभी नियमों का पालन हो तो निश्चित रुप से पितर खुश होते हैं और संपन्नता का आर्शीवाद देते हैं। 

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