Friday, October 8, 2021
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जानिए करवा चौथ का महत्व, तिथि, मुहूर्त व पूजा की विधि


karwa chauth pujan vidhi 2021
– फोटो : google

भारतीय महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत सबसे महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए किया जाता है। द्वापर युग से लेकर कलयुग तक यह पर्व उतनी आस्था और विश्वास से किया जाता है, जैसा द्वापर युग में किया जाता है।

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सुहागन महिलाएं सर्वार्थ सिद्धि योग और शिव योग में इस व्रत को करेंगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ के दिन जिसकी पूजा करते हैं, आखिर वह करवा माता कौन हैं और किस तरह से उनके नाम पर करवा चौथ की शुरुआत हुई। आइए जानते हैं इसके पीछे की धार्मिक कथाओं के बारे में….

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक करवा नाम की पतिव्रत स्त्री थी। उनका पति काफी उम्रदराज था। एक दिन वह नदी में स्नान करने गया है तो नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ा लिया और निगलने के लिए खींचने लगा। उसने चिल्लाकर अपनी पत्नी करवा को बुलाया और सहायता के लिए कहने लगा। करवा बहुत पतिव्रता था, जिससे उसकी सतीत्व में काफी बल थी।

नदी के तट पर अपने पति के पास पहुंचकर सूती साड़ी से धागा निकालकर अपने तपोबल के माध्यम से उस मगरमच्छ को अपने तपोबल के माध्यम से बांध दिया। सूत के धागे से बांधकर करवा मगरमच्छ को लेकर यमराज के पास पहुंची। यमराज ने करवा से पूछा कि हे देवी आप यहां क्या कर रही हैं और आप चाहती क्या हैं।

ने यमराज से कहा कि इस मगर ने मेरे पति के पैर को पकड़ लिया था इसलिए आप अपनी शक्ति से इसके मृत्युदंड दें और उसको नरक में ले जाएं। यमराज ने करवा से कहा कि अभी इस मगर की आयु शेष हैं इसलिए वह समय से पहले मगर को मृत्यु नहीं दे सकते। इस पर करवा ने कहा कि अगर आप मगर को मारकर मेरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल के माध्यम से आपको ही नष्ट कर दूंगी।

की बात सुनकर यमराज के पास खड़े चित्रगुप्त सोच में पड़ गए क्योंकि करवा के सतीत्व के कारण ना तो वह उसको शाप दे सकते थे और ना ही उसके वचन को अनदेखा कर सकते थे। तब उन्होंने मगर को यमलोक भेज दिया और उसके पति को चिरायु का आशीर्वाद दे दिया। साथ ही चित्रगुप्त ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा जीवन सुख-समृद्धि से भरपूर होगा

चित्रगुप्त ने कहा कि जिस तरह तुमने अपने तपोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं वरदान देता हूं कि आज की तिथि के दिन जो भी महिला पूर्ण विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी, उसके सौभाग्य की रक्षा मैं करूंगा। उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ मिलने से इसका नाम करवा चौथ पड़ा। इस तरह मां करवा पहली महिला हैं, जिन्होंने सुहाग की रक्षा के लिए न केवल व्रत किया बल्कि करवा चौथ की शुरुआत भी की।

चौथ के व्रत को करने के बाद शाम को पूजा करते समय माता करवा चौथ कथा पढ़ना चाहिए। साथ ही माता करवा से विनती करनी चाहिए कि हे मां, जिस प्रकार आपने अपने सुहाग और सौभाग्य की रक्षा की उसी तरह हमारे सुहाग की आप रक्षा करें। साथ ही यमराज और चित्रगुप्त से विनति करें कि वह अपना व्रत निभाते हुए हमारे व्रत को स्वीकार करें और हमारे सौभाग्य की रक्षा करें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था, जिसका उल्लेख वारह पुराण में मिलता है।

करवा चौथ के दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जल व्रत का पालन करती हैं और चंद्र देव के दर्शन करने के बाद ही जल ग्रहण कर इस व्रत का पारण किया जाता है।

करवा चौथ व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। महिलाओं को इस व्रत का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जल व्रत का पालन करती हैं और चंद्र देव के दर्शन करने के बाद ही जल ग्रहण कर इस व्रत का पारण किया जाता है। सरगी, सोलह शृंगार, चांद निकलने पर छलनी से पति के दर्शन इस व्रत की महत्वपूर्ण चीजें हैं। हर साल करवा चौथ व्रत कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल 24-25 अक्टूबर को यह तिथि पड़ रही है। ऐसी स्थिति में यह सवाल बनता है कि करवा चौथ व्रत कब रखा जाएगा। दरअसल इस साल करवा चौथ व्रत 24 अक्टूबर को रखा जाएगा। 

हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिनें वैवाहिक जीनवन की खुशहाली और पति की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। महिलाओं को इस व्रत का बेसब्री से इंतजार रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल करवा चौथ व्रत 24 अक्टूबर, रविवार को है। करवा चौथ व्रत को सभी व्रतों में कठिन माना जाता है। यह व्रत पूरे दिन निर्जला रखा जाता है। करवा चौथ व्रत में महिलाएं जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। इसमें चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। मान्यता है कि करवा चौथ व्रत करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है और वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। इस साल करवा चौथ पर विशिष्ट संयोग बन रहे हैं, जो इस व्रत का महत्व और बढ़ा रहे हैं।

इस बार बन रहा है खास संयोग

इस साल करवा चौथ पर शुभ संयोग बन रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ के दिन चंद्र देव रोहिणी नक्षत्र में उदय होंगे। मान्यता है कि, इस नक्षत्र में व्रत रखना बेहद शुभ होता है। इस नक्षत्र में चंद्र देव के दर्शन से मनवांछित फल प्राप्त होता है।

करवा चौथ पर शुभ संयोग-

इस साल करवा चौथ पर विशेष संयोग बन रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ का चांद रोहिणी नक्षत्र में निकलेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नक्षत्र में व्रत रखना बेहद शुभ होता है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में चंद्रमा दर्शन मनवांछित फल प्रदान करता है। 

करवा चौथ 2021 चांद टाइमिंग-

करवा चौथ को यानी 24 अक्टूबर को चांद रात 08 बजकर 07 मिनट पर निकलेगा। चंद्रमा दर्शन के बाद व्रती महिलाएं जल ग्रहण कल व्रत का पारण करेंगी। 

करवा चौथ 2021 शुभ मुहूर्त-

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि 24 अक्टूबर, रविवार को सुबह 03 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी, जो कि 25 अक्टूबर 2021 को सुबह 05 बजकर 43 मिनट पर रहेगी। ऐसे में करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट से 06 बजकर 59 मिनट तक रहेगा।

करवा चौथ व्रत विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की परंपरा के अनुसार सरगी आदि ग्रहण करें। स्नानादि करने के पश्चात निर्जल व्रत का संकल्प करें। शाम के समय तुलसी के पास बैठकर दीपक प्रज्वलित कर करवाचौथ की कथा सुनें। चंद्रोदय से पहले ही एक थाली में धूप-दीप, रोली, पुष्प, फल, मिष्ठान आदि रख लें। एक लोटे में अर्घ्य देने के लिए जल भर लें। मिट्टी के बने करवा में चावल या फिर चिउड़ा आदि भरकर उसमें दक्षिणा के रुप में कुछ पैसे रख दें। एक थाली में श्रृंगार का सामान भी रख लें। चंद्र दर्शन कर पूजन आरंभ करें। सभी देवी-देवताओं का तिलक करके फल-फूल मिष्ठान आदि अर्पित करें। श्रृंगार के सभी सामान को भी पूजा में रखें और टीका करें। अब चंद्र देव को जल का अर्घ्य दें। छलनी में दीप जलाकर चंद्र दर्शन करें, अब छलनी से अपने पति के दर्शन करें। इसके बाद पति के हाथों से जल पीकर व्रत का पारण करें। अंत में  श्रृंगार की सामाग्री और करवा को अपनी सास या फिर किसी सुहागिन स्त्री को दें।

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