नई दिल्ली. दिल्ली की सड़कों (Delhi Roads) पर 20 लाख से ज्यादा ऐसे वाहन दौड़ रहे हैं जो दिल्ली की आवोहवा को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं. ऐसे वाहनों की पहचान के लिए इन पर कलर कोड वाले स्टिकर (Color Coded Fuel Stickers) लगाया जाना था. लेकिन पिछले दो सालों से यह काम एक तरह से रुका हुआ है.
इतना ही नहींं हर साल दिल्ली में प्रदूषण की वजह से 25 हज़ार लोगों से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है जबकि देशभर में सड़क दुर्घटना में डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है. यह बात भारत सरकार (Government of India) के राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद (National Road Safety Council) के सदस्य, परिवहन अनुसंधान प्रयोगशाला यूके के सलाहकार व राहत-द सेफ कम्युनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष कमल सोई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही.
दिल्ली में पुराने वाहनों से फैैसले वाले प्रदूषण और मौतों को लेकर जानकारी देते हुए भारत सरकार के राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य कमल सोई.
एक बार ठीक से लागू होने के बाद, स्टिकर उन नीतिगत उपायों का मार्ग प्रशस्त करेंगे जिन्हें अभी लागू करना मुश्किल है. उदाहरण के लिए, दिल्ली और एनसीआर के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी), जो कहता है कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) के सबसे गंभीर मामलों के दौरान प्राधिकरण विभिन्न कार संयम उपायों को लागू कर सकता है. अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को दूर रखने के लिए स्टिकर का इस्तेमाल किया जा सकता है.
नए और पुराने वाहनों में कलर कोडेड 3 स्टिकर और एचएसआरपी (HSRP) का कार्यान्वयन सीएमवीआर के दिशानिर्देशों और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport & Highways) द्वारा जारी अधिसूचनाओं और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आज तक जारी विभिन्न निर्देशों के अनुसार अनिवार्य है.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) के आदेश 13 जुलाई, 2018 के द्वारा, (ए-1) राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा एचएसआरपी योजना (HSRP Scheme) के गैर-अनुपालन के बारे में गंभीरता से ध्यान देते हुए, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एचएसआरपी योजना को तुरंत लागू करने का निर्देश दिया.
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उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोग कोरोना (Coronavirus) से इसलिए ज्यादा बीमार हुए क्योंकि यहां वाहनों से निकलने वाला पीएम 2 बहुत ज्यादा है. पीएम 2 सांस के द्वारा फेफड़े तक चला जाता है और ऐसे में आदमी जल्दी बीमार होता है.
उन्होंने कहा कि 2019 से पहले की यूरो 4 की गाड़ियों की पहचान के लिए दिल्ली सरकार ने कलर कोड वाली स्टिकर लगाने की बात कही थी. लेकिन पिछले दो वर्षों से यह स्टिकर पुरानी गाड़ियों पर नहीं लगाई जा रही है, जिसकी वजह से सड़कों पर दौड़ रही प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों की पहचान नही हो पा रही है.
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सोई ने बताया कि दिल्ली में 1.5 करोड़ वाहन है जिनमें से 70 फीसदी दोपहिया वाहन हैं. इसके अलावा करीब 20 लाख ऐसी गड़ियां हैं जो 10 और 15 साल पुरानी हो चुकी हैं, फिर भी वह चल रही हैं. उन्होंने कहा कि फैक्ट्रियों से जो प्रदूषण निकलता है, उसमें पीएम 2 नही होता है. इसके अलावा फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण उसी एरिया में रहता है जबकि गाड़ियों से निकलने वाला पीएम 2 पूरे शहर में फैलता है.
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