Thursday, October 7, 2021
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इंदिरा एकादशी व्रत कथा: महिष्मति के राजा ने इंदिरा एकादशी पर व्रत रख कर पिता को दिलाया था मोक्ष


Indira Ekadashi 2021: इंदिरा एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है. पितृ पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी को एकादशी श्राद्ध के नाम से भी जाता है. जाता है इस दिन एकादशी की तिथि का श्राद्ध किया जाता है. पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस एकादशी को शुभ और विशेष फलदायी माना गया है.

एकादशी कब से आरंभ हो रही है? (Ekadashi Timings Today)
पंचांग के अनुसार आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि का आरंभ 01 अक्टूबर 2021, शुक्रवार रात्रि 11 बजकर 03 मिनट पर होगा. इंदिरा एकादशी का व्रत 02 अक्टूबर 2021, शनिवार के दिन रखा जाएगा. इंदिरा एकादशी व्रत का पारण 03 अक्टूबर को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी की तिथि में किया जाएगा.

इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था. यहां के राजा इंद्रसेन थे. इंद्रसेन बहुत कुशल और प्रतापी राजा था. राजा प्रजा का पालन-पोषण अपनी संतान की तरह करता था. उसके राज्य में सुख शांति कायम थी. राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का बहुत बड़ा उपासक था. एक दिन अचानक राजा इंद्रसेन की सभा में नारद मुनि का प्रवेश हुआ. नारद जी राजा के पास उनके पिता का संदेश लेकर पहुंचे थे. राजा के पिता ने इंद्रसेन को संदेश भेजा कि पिछली जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही हैं. उन्हें यमलोक से मुक्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत रखना होगा. ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके. 

पिता का यह संदेश सुनकर राजा इंद्रसेन ने नाराद जी से इंदिरा एकादशी व्रत के महामात्य के बारे में बताने का आग्रह किया. तब नारद जी ने कहा कि यह अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी कहा जाता है. एकादशी से पूर्व दशमी के दिन पितरों का श्राद्ध करने के बाद एकादशी का व्रत का संकल्प लें. द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें. विधि पूर्वक पारण और दान आदि का कार्य पूर्ण करने के बाद व्रत खोलें. तभी पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें भगवान श्री हरि के चरणों में जगह मिलेगी. नाराद मुनि के बताए अनुसार राजा इंद्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत रखा. जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुंठ चले गए. इंदिरा एकादशी के पुण्य के प्रभाव से बाद में राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ प्राप्त हुआ.

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