Wednesday, February 9, 2022
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UP Assembly Elections 2022 : पहले चरण की इन सीटों पर भाजपा और गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर,कहीं मुकाबला त्रिकोणीय | Triangular contest on these seats in the first phase election | Patrika News


UP Assembly Elections 2022 पहले चरण की 58 सीटों पर आगामी 10 फरवरी को मतदान होगा। इनमें 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर 623 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। अधिकांश सीटों पर भाजपा और सपा रालोद गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। कहीं पर मुकाबले में कांग्रेस और बसपा भी कड़ी टक्कर दे रही है। मेरठ की 7 विधानसभा सीटों पर कुछ में त्रिकोणीय मुकाबला

मेरठ

Published: February 08, 2022 11:33:34 am

UP Assembly Elections 2022 जिले में विधानसभा की सात सीटें हैं। इन सात सीटों में मेरठ शहर,मेरठ कैंट,मेरठ दक्षिण, मेरठ किठौर, सिवालखास, सरधना और हस्तिनापुर शामिल हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल करते हुए जिले की 6 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया था। इन छह विधानसभा सीटों में किठौर,मेरठ कैंट,दक्षिण विधानसभा,सिवालखास,सरधना और हस्तिनापुर शामिल थीं। लेकिन इस बार इन विधानसभा सीटों में से करीब पांच विधानसभा सीटों में भाजपा और सपा—रालोद गठबंधन के बीच सीधी कांटे की टक्कर है।

UP Assembly Elections 2022 : पहले चरण की इन सीटों पर भाजपा और गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर,कहीं मुकाबला त्रिकोणीय

मेरठ शहर विधानसभा सीट
मेरठ शहर विधानसभा सीट पर 2017 में भाजपा लहर के बाद भी यहां पर सपा की साइकिल दौड़ी थी। इस सीट पर सपा के रफीक अंसारी चुनाव जीते थे। जबकि भाजपा के दिग्गज नेता और प्रदेशाध्यक्ष रहे डा0लक्ष्मीकांत वाजपेयी चुनाव हार गए थे। शहर की सीट पर हिंदू मुस्लिम वोटर जीत और हार का पैमाना तय करते हैं। इस सीट पर हमेशा से ही चुनाव हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण पर होता रहा है। इस बार भाजपा ने इस सीट से कमल दत्त शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं सपा से रफीक अंसारी मैदान में हैं। लेकिन भाजपा के लिए इस बार इस सीट पर कड़ी चुनौती मिल रही है। यहां कांग्रेस भी लड़ाई में है।

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इसको भाजपा की छपरौली बोला जाता है। यह सीट करीब 2 दशक से भाजपा के पास है। इस सीट पर आजतक भाजपा को कोई नहीं हरा सका। पिछले तीन चुनाव से इस सीट पर भाजपा के सत्य प्रकाश अग्रवाल चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस बार उन्होंने चुनाव लड़ने से मना किया तो यहां से पूर्व विधायक अमित अग्रवाल को टिकट दिया गया है। इस पर भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी के बीच सीधा मुकाबला है। भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई हुई है।

किठौर विधानसभा सीट
किठौर विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है। इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है। लेकिन पिछले चुनाव में यानी 2017 में भाजपा की लहर में इस सीट पर सत्यवीर त्यागी ने जीत दर्ज की और इसको भाजपा की झोली में डाल दिया। इस बार भी सत्यवीर त्यागी पर ही भाजपा ने भरोसा जताया है। वहीं सपा सरकार में मंत्री रहे और पूर्व विधायक शाहिद मंजूर भी किठौर से चुनाव मैदान में है। वे सपा रालोद गठबंधन के प्रत्याशी है। इस सीट पर गठबंधन और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है।

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ठाकुर और दलित बाहुल्य इस सीट पर अधिकांश भाजपा का ही कब्जा रहा है। पिछले दो चुनाव से यहां से भाजपा के संगीत सोम विधायक बनते आ रहे हैं। हालांकि उनको सपा के अतुल प्रधान कडी टककर देते रहे हैं। मतों के ध्रुवीकरण का लाभ सरधना में भाजपा को मिलता रहा है। लेकिन इस बार सरधना विधानसभा सीट पर बहुत कड़ा मुकाबला है। संगीत सोम को गठबंधन से सीधी टक्कर मिल रही है। इस सीट पर कांग्रेस भी कड़ी टक्कर दे रही है।

दक्षिण विधानसभा
कभी मेरठ कैंट का हिस्सा रही मेरठ दक्षिण विधानसभा सीट 2009 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। इस सीट के अस्तित्व में आने के बादी से इस पर भाजपा का कब्जा रहा है। यहां से भाजपा के डा0सोमेंद्र तोमर चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार भी भाजपा ने डा0सोमेंद्र तोमर को मैदान में उतारा है। लेकिन दक्षिण विधानसभा सीट में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी तादात में होने का लाभ यहां के गठबंधन प्रत्याशी केा मिल सकता है। यहां पर बसपा प्रत्याशी भी मुकाबले में शामिल हैं।

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सिवाल खास विधानसभा सीट जाट और मुस्लिम के अलावा दलित बाहुल्य भी मानी जाती है। इस सीट पर 2017 में भाजपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा ने सिवाल खास के वर्तमान विधायक का टिकट काटकर पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे मनिंदर पाल को टिकट दिया है। क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी का भारी विरोध है। कई गांवों में भाजपा प्रत्याशी के घुसने पर पाबंदी तक लगा दी गई है। यहां से गठंबंधन की ओर से सपा के गुलाम मोहम्मद चुनाव मैदान में है। गुलाम मोहम्मद पहलेे भी सिवाल खास से विधायक रह चुके हैं। सिवाल खास में भाजपा और गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है।
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मेरठ के हस्तिनापुर के बारे में कहा जाता है कि जिस भी पार्टी का विधायक इस सीट पर चुनाव जीतता है उसी की सरकार बनती है। पिछले तीन चुनाव का इतिहास उठाकर देखे तो 2007 में बसपा के योगेश वर्मा चुनाव जीते तो प्रदेश में बसपा की सरकार बनी,2012 में हस्तिनापुर से सपा जीती तो प्रदेश में सपा की सरकार बनी। 2017 में हस्तिनापुर पर कमल खिला तो प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। इस बार भाजपा ने वर्तमान विधायक दिनेश खटीक पर भरोसा जताया है। वहीं गठबंधन से योगेश वर्मा चुनाव मैदान में हैं। हस्तिनापुर में मुकाबला काफी तगड़ा है।
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