अब्दुल गफ्फार खान की परपोती बोलीं- नेताओं ने छोड़ा देश, आम लोग और महिलाएं-बच्चे दे रहे कुर्बानी


Afghanistan Crisis: ‘फ्रंटियर गांधी’ के नाम से जाने जाने वाले दिवंगत अफगान राजनेता अब्दुल गफ्फार खान की परपोती यास्मीन निगार खान ने अफगानिस्तान में जारी संघर्ष और महिलाओं और बच्चों सहित वहां कमजोर समूहों के भाग्य पर चिंता व्यक्त की है.

पूरी दुनिया देख रही है कि अफगानिस्तान के साथ क्या हो रहा है, लेकिन उन लोगों की सोच का क्या जो भारत में रह रहे हैं, लेकिन हमेशा अफगानिस्तान के संपर्क में रहे हैं. यास्मीन निगार खान ने बताया की जो कुछ महिलाओं के साथ हो रहा है वो बहुत गलत है.

यास्मीन निगार खान ने कहा, ”वहां जो औरतों के साथ हो रहा है वो दिल दहला देने वाली वारदात है. ऐसा कैसे हो रहा है, पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन एक शब्द भी नहीं कह रही है. यह बात सबके सामने आनी चाहिए. अगर कोई काम करना चाहता है, जैसा कि हम सब टीवी पर देख चुके हैं. अगर वह पुलिस में हैं, तो उसकी आंखें चाकू से निकाल ली जाती हैं. यह कैसी यातना है?”

उनका कहना है कि आप किसी औरत को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ निकाह करने को मजबूर नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “जबरदस्ती आप एक महिला से कह रहे हैं कि आप उसके साथ निकाह करना चाहते हैं, उसके माता-पिता की अनुमति के बिना. यह किस तरह का इस्लाम है? क्या तालिबान महिलाओं को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं? पैगंबर साहब से पहले, अरब  में बच्चियों को जला दिया जाता था, लेकिन हमारे पैगंबर साहब ने आने के बाद इन सभी चीज़ों को रोक दिया, महिलाओं के साथ जो हुआ, विधवाओं को फिर से शादी करने की अनुमति नहीं थी. हमारे पैगंबर साहब ने ज़िंदा लड़कियों को जलाने का रिवाज बंद कर दिया. तो आपको लगता है कि अगर हमारे पैगंबर साहब ऐसा काम कर सकते हैं तो हम महिलाओं के साथ इस तरह की यातना कैसे कर सकते हैं. तालिबान खुद को इस्लाम कहते हैं, वे खुद को इस्लाम शरीयत कहते हैं. इसलिए एक बार इस्लाम शरीयत पर गौर करें.”

अफ़ग़ानिस्तान से वापस आए लोग इतने डरे सहमे हैं कि वे किसी से बात भी नहीं करना चाहते. लौटने वालों में ज्यादातर लोग ग्रामीण इलाकों के रहने वाले हैं और उन इलाको में हर वक़्त एक तालिबानी तैनात रहता जो वहां रहने वाले हर इंसान को उनकी आवाज़ से भी पहचानता है.

यास्मीन निगार खान ने कहा, “अगर तस्वीरें देखी जाती हैं तो उनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों या गांवों के हैं और उन इलाकों में तालिबान का एक मुखबिर हमेशा मौजूद रहता है, इसलिए वे उन इलाकों या गांवों के लोगों को जानते हैं. चेहरा ढका हुआ हो तो भी वे उन्हें उनकी आवाजों से जानते हैं, वे बहुत चालाक हैं. इसलिए वे अपने रिश्तेदारों को प्रताड़ित करेंगे या उन्हें मार भी सकते हैं. इसलिए, वे ज्यादा बात नहीं करना चाहते या मीडिया के सामने नहीं आना चाहते.”

उन्होंने कहा कि, “मैंने कल एक वीडियो देखा, वह एक घंटे पहले का वीडियो था. अफगानिस्तान हवाई अड्डे पर बहुत भीड़ थी. मैं समझ नहीं पाई. एक वीडियो ने मुझे बहुत परेशान किया कि कांटेदार दीवार के ऊपर एक बच्चे को अमेरिकी सेना को सौंप दिया गया और इसका कारण यह था कि अगर लड़की हमारे साथ रहती है तो वह तालिबान की गोलियों से मर जाएगी, लेकिन अगर वह वहां गई तो वह किसी के साथ और कहीं भी रह सकती है, लेकिन वह जिंदा रहेगी.”

फ्रंटियर गांधी कौन थे?

अब्दुल गफ्फार खान एक अफगान कार्यकर्ता थे, जिनकी ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका थी. अविभाजित पंजाब में जन्मे अब्दुल गफ्फार खान अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भाव में विश्वास रखते थे. उन्हें ‘फ्रंटियर गांधी’ उपनाम दिया गया था. विभाजन के बाद, वह 1988 में अपनी मृत्यु तक पाकिस्तान में रहे और उन्हें अफगानिस्तान में दफनाया गया.

यास्मीन निगार खान की मानें तो गफ्फार खान ने सौ साल पहले 1921 में अपने गांव में लड़कियों के लिए एक स्कूल बनवाया था और यह भी कहा था कि जब तक एक शिक्षित मां नहीं होगी तब तक वह एक बच्चे को ठीक से कैसे चलाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि पठान रूप गर्म रहता है लेकिन अगर वे शिक्षित हैं तो वे सुधरेंगे और यही कारण है कि तालिबान और सब कुछ हुआ. उनमें से ज्यादातर पाकिस्तान के हैं, लेकिन अफगानिस्तान से जो लोग वहां जाते हैं उनमें शिक्षा की कमी होती है और जब शिक्षा नहीं होती है तो ब्रेनवॉश आसानी से हो जाता है, लेकिन अगर हम शिक्षित होते हैं तो किसी में भी हमें कुछ सिखाने या हमारा ब्रेनवॉश करने का दुस्साहस नहीं होगा, चाहे वह इस्लाम के नाम पर हो. या फिर कुछ और.

निगार खान ने बताया, “राजा अमानुल्लाह ख़ान अफगानिस्तान में प्रगति लाना चाहते थे. मैं सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण दे रही हूं कि वह अफगानिस्तान में प्रगति लाना चाहते थे. वह वहां बिजली लाना चाहते थे, इसलिए इस विषय पर भी वहां के कुछ मुल्ला उसके खिलाफ हो गए.”

निगार खान ने कहा कि उस समय का इतिहास यहां दोहराया जा रहा है. एक अच्छे व्यक्ति अशरफ गनी को हटा दिया गया है, जिन्हें इस समय का राजा अमानुल्लाह कहा जा सकता है. उनके स्थान पर तालिबान जो बर्बरता को अंजाम दे रहे हैं, लूटपाट कर रहे हैं. आपको बता दें कि लगभग 7,000 अफगान कोलकाता में रह रहे हैं और उन्हें प्यार से “खान लोग” कहा जाता है.

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