Friday, November 12, 2021
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‘Sugar Free’ जिंदगी: दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में बढ़ रही है ये Diabetes, जानें कंट्रोल करने के लिए क्या खाएं?


World Diabetes Day 2021: दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पटना जैसे भारतीय शहरों में जेस्टेशनल डायबिटीज काफी फैल रही है. इस तरह का मधुमेह सिर्फ गर्भवती महिलाओं के अंदर विकसित होता है. जिसके कारण शिशु को जन्म के बाद सांस संबंधित रोग या जन्म के तुरंत बाद लो शुगर लेवल की समस्या हो सकती है. वर्ल्ड डायबिटीज डे 2021 पर Dr. Vimal Upreti ने बताया कि आखिर भारतीय शहरों में जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या क्यों बढ़ रही है और इसे कंट्रोल कैसे किया जा सकता है.

सबसे पहले जानते हैं कि जेस्टेशनल डायबिटीज क्या है?

Gestational Diabetes: जेस्टेशनल डायबिटीज किसे कहते हैं?
जेपी हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर, Dr. Vimal Upreti ने बताया कि जब गर्भावस्था के दौरान पहली बार बढ़े हुए ब्लड शुगर की पुष्टि होती है, तो उसे जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (Gestational Diabetes Mellitus) कहा जाता है. जब गर्भवती महिला के खून में प्लेसेंटल हॉर्मोन द्वारा इंसुलिन के कार्य में बाधा पहुंचती है, तो ब्लड शुगर का लेवल बढ़ने लगता है. जिसकी वजह से कुछ महिलाओं में लक्षण भी दिख सकते हैं और कुछ असिंप्टोमेटिक यानी बिना लक्षणों वाली भी हो सकती हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकार गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी के बाद भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बना रहता है.

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Gestational Diabetes Symptoms: जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण
डॉ. विमल के मुताबिक जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण कुछ गर्भवती महिलाओं को तनाव महसूस हो सकता है. इसके अलावा भूख बढ़ना, बार-बार प्यास लगना या पेशाब आना कुछ आम लक्षण हो सकते हैं. साथ में निम्नलिखित लक्षण भी दिख सकते हैं. जैसे-

  • थकान
  • अत्यधिक प्यास लगना
  • आंखों की रोशनी धुंधली होना
  • बार-बार तेज पेशाब लगना, आदि

जेस्टेशनल डायबिटीज का शिशु पर असर
जब गर्भवती महिला के रक्त में ग्लूकोज का लेवल हाई होने लगता है, तो भ्रूण के अंदर इंसुलिन का स्राव बढ़ जाता है. इसके कारण भ्रूण के अंदर फैट अधिक मात्रा में जमने लगता है और शिशु का आकार बड़ा होना या प्री-मैच्योर लेबर जैसी समस्या आ सकती है. इन समस्याओं के कारण सी-सेक्शन डिलीवरी की जरूरत भी हो सकती है. वहीं, जेस्टेशनल डायबिटीज से ग्रसित महिलाओं के शिशु में जन्म के बाद लो शुगर लेवल (हाइपोग्लाइसेमिया) या सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्या विकसित हो सकती है. साथ ही बचपन में मोटापे और बड़े होकर टाइप-2 डायबिटीज का खतरा भी हो सकता है.

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भारतीय शहरों में क्यों बढ़ रही है जेस्टेशनल डायबिटीज?
डॉक्टर कहते हैं कि हालांकि जीवनशैली डायबिटीज का बड़ा कारण है, लेकिन अन्य एंवायरमेंटल फैक्टर्स भी जेस्टेशनल डायबिटीज में भूमिका निभाते हैं. इसलिए, मौजूदा पीढ़ी में जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा ज्यादा हो गया है. शहरों में प्रदूषण, वर्किंग लाइफस्टाइल और मोटापा जैसी समस्या भी इस प्रकार के मधुमेह का कारण बन रही हैं. मगर एक्सपर्ट ने डाइटरी पैटर्न में बदलाव और फैटी फूड के सेवन में बढ़ोतरी को इस खतरे का मुख्य कारण बताया है.

जेस्टेशनल डायबिटीज का नुकसान कैसे कम करें?
Dr. Vimal Upreti कहते हैं कि जेस्टेशनल डायबिटीज से बचने का कोई पुख्ता तरीका नहीं है. हालांकि, महिलाएं कुछ टिप्स को फॉलो करके इसकी जल्दी पहचान करने में मदद कर सकती हैं और इसके नुकसान को कम कर सकती हैं. गर्भवती महिलाओं को रेगुलर ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज होने की स्थिति में इसकी जल्दी पहचान करके तुरंत मैनेज किया जा सके. स्वस्थ डाइट और एक्सरसाइज जरूर फॉलो करें. डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं को लेने में लापरवाही ना करें. इसके साथ ही तनाव देने वाले कार्य या नौकरी से कुछ दिन की छुट्टी ले लें. हालांकि ये सामान्य सलाह है, जो कि हर गर्भवती महिला को दी जाती है. लेकिन, जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकार महिलाओं को इसका अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए.

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जेस्टेशनल डायबिटीज में क्या खाएं?
डॉक्टर के मुताबिक, जेस्टेशनल डायबिटीज को मैनेज व कंट्रोल करने के लिए बैलेंस्ड डाइट जरूर लेनी चाहिए. जिसमें कार्ब्स, प्रोटीन और हेल्दी फैट्स के सेवन पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए.

कार्ब्स: रिफाइंड आटा, पास्ता और बेकरी आइटम आदि की जगह साबुत अनाज, ब्राउन राइस, फली, मटर, दाल, स्टार्च वाली सब्जी, लो-शुगर वाले फ्रूट्स आदि का सेवन करना चाहिए.

प्रोटीन: गर्भवती महिलाओं को हर दिन दो से तीन बार प्रोटीन युक्त फूड्स का सेवन करना चाहिए. जिसमें लीन मीट, पॉल्ट्री, मछली, टोफू व डेयरी उत्पाद शामिल होते हैं.

हेल्दी फैट: सैचुरेटेड और ट्रांस फैट्स की जगह बिना नमक वाले नट्स, सीड्स और ऑलिव ऑयल जैसे हेल्दी फैट्स का सेवन करना चाहिए.

यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.





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