जानिए शीतला अष्टमी पर बासौड़ा व्रत नियम और पूजा विधि
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जानिए शीतला अष्टमी पर बासौड़ा व्रत नियम और पूजा विधि
शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी देवी शीतला व्रत का समय होता है. शीतला देवी स्त्री शक्ति एवं मातृत्व का प्रतिक हैं. जीवन के लिए आरोग्य का आशीर्वाद हैं. हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी एवं शीतला अष्टमी का पूजन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी ओर अष्टमी के दिन विशेष रुप से किया जाता है इस पर्व को बसोड़ा व्रत के नाम से भी जाना जाता है. शीतला माता लोकप्रिय रूप से शक्ति के रूप में उपस्थित हैं और जीवन को सुखमय एवं समृद्धि प्रदान करती हैं.
देश के विभिन्न हिस्सों में भक्त, जो पूर्णिमांत पंचांग का पालन करते हैं, वह चैत्र माह के कृष्ण सप्तमी तिथि या अष्टमी तिथि पर शीतला माता का पूजन करते हैं. कुछ लोग अमांत पंचांग का पालन करते हैं, वह इस त्योहार को फाल्गुन, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर बासोड़ा के नाम से भी मनाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि महीनों के नाम अलग-अलग होते हैं, लेकिन तिथि यही रहती है. इस दिन, भक्त व्रत रखते हैं, देवी शीतला से उन्हें गर्मी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए प्रार्थना करते हैं इसलिए, त्योहार के दिन, भक्त रसोई में आग नहीं जलाते हैं और पहले से तैयार भोजन को इस दिन पर खाया जाता है.
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बासौड़ा व्रत नियम
शीतला माता का पूजन करने के लिए व्रत रखने वालों को ब्रह्मचर्य बनाए रखना चाहिए. बसौड़ा पूजन का आरंभ षष्ठी के दिन से शुरु हो जाता है. इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को षष्ठी तिथि की शाम को भोजन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए. दही, चावल, हलवा, पूरी, एक खीर या रबड़ी आदि को बसौड़ा के लिए पहले से तैयार कर लेने का विधान रहता है. अपनी रसोई को साफ करना चाहिए, जो भी भोग या भौजन तैयार करते हैं उसे माता शीतला को अर्पित किया जाता है और अगले दिन सेवन किया जाता है, और जो लोग अष्टमी के व्रत का पालन करते हैं, उन्हें सप्तमी तिथि की शाम को इस नियम का पालन करना चाहिए.
इस दिन पर रसोई में आग नहीं जलानी चाहिए, खासकर व्रत के दिन खाना बनाने के लिए अग्नि का उपयोग नही करना चाहिए.
बसोड़ा व्रत के दिन सुबह, जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले शीतल जल से स्नान करना चाहिए.
साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
पूजा के दिन ताजा पका हुआ भोजन नही किया जाना चाहिए.
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बसोड़ा पूजा विधि
पूजा विधि एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हो सकती है, लेकिन यहां अनुष्ठान करने के सबसे सरल तरीकों में से एक तथ्य मुख्य रहता है की सभी पदार्थ शीतलता क अप्रतीक होने चाहिए. करने के बाद, सभी प्रसाद / भोग दही, चावल, हलवा, पूरी, खीर या रबड़ी आदि को शीतला माता मंदिर में ले जाना चाहिए यदि आप मंदिर नहीं जा सकते हैं, तो आप घर पर ही पूजा कर सकते हैं. भोग के अलावा कलश, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, सिंदूर, मेहंदी, काजल, लाल चुनरी, कलावा, केला, नारियल आदि को माता को अर्पित करना चाहिए.
गेहूं के आटे का दीपक जलाना चाहिए दीया जलाने के लिए आप सरसों के तेल या घी का प्रयोग कर सकते हैं।
वस्तुओं को अर्पित करते हुए देवी शीतला का आशीर्वाद लेना चाहिए हल्दी, कुमकुम, अक्षत, कलावा, चुनरी, काजल, मेहंदी, फूल, केला, नारियल आदि को पूजा में शामिल किया जाता है. फिर कलश और भोग से कुछ जल को अर्पित किया जाता है.
देवी से प्रार्थना करें कि वह आपको और आपके परिवार को चेचक, खसरा आदि जैसी गर्मी से होने वाली बीमारियों से बचाएं. आरती कर पूजा का समापन किया जाता है. फिर कलश से अपने और परिवार के अन्य सदस्यों पर थोड़ा पानी छिड़कना चाहिए और अपने घर को साफ करने के लिए भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए.
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