Tuesday, February 8, 2022
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Putrada Ekadashi 2022: पुत्रदा एकादशी व्रत  रखने से ‘महिष्मती’ के राजा की मनोकामना हुई थी पूर्ण


Putrada Ekadashi 2022 : पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (putrada ekadashi 2022) के साथ-साथ वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी भी कहा जाता है. शास्त्रों में व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. योग्य संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को उत्तम माना गया है. इसके साथ ही ये व्रत संतान को संकटों से भी बचाने वाला बताया गया है.

पुत्रदा एकादशी कब है? (putrada ekadashi 2022 date)
हिंदू पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी 2022, गुरुवार को पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है. जानते हैं पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त-

  • पौष पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
  • पौष पुत्रदा एकादशी व्रत- 13 जनवरी 2022, गुरुवार
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ – 12 जनवरी 2022 को 04:49 पी एम बजे से.
  • एकादशी तिथि समाप्त – 13 जनवरी 2022 को 07:32 पी एम बजे तक.

पुत्रदा एकादशी व्रत के पारण का समय (putrada ekadashi parana time)

  • 14 जनवरी 2022, शुक्रवार, प्रात: 07 बजकर 15 मिनट से 09  बजकर 21 मिनट तक.
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 14 जनवरी, रात्रि 10 बजकर 19 तक.

एकादशी व्रत-पूजा विधि (putrada ekadashi puja vidhi)
इस दिन प्रात: काल स्नान करने के बाद पूजा स्थल पर बैठकर विधि पूर्वक व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा आरंभ करें. पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीला फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि समस्त पूजन सामग्री संबंधित मंत्रों के साथ अर्पित करें. यदि आप पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रख रहें है तो यह  व्रत पति-पत्नी दोनों को ही एक साथ व्रत का संकल्प लेना चाहिए और व्रत का पूजन करना  चाहिए. इस पूजा के बाद भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा करनी चाहिए.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (putrada ekadashi vrat katha)
पुत्रदा एकादशी व्रत में इस कथा को अवश्य सुनना चाहिए. मान्यता है कि कथा को ध्यान पूर्वक सुनने से ही इस व्रत का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है. पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है. महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था. इस राजा के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी, किंतु कोई संतान नहीं थी. जिस कारण राजा परेशान रहता था. राजा अपनी प्रजा का भी पूर्ण ध्यान रखता था. संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी. तब राजा ने ऋषि मुनियों की शरण ली. इसके बाद राजा को एकादशी व्रत के बारे में बताया गया है. राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूर्ण किया और नियम से व्रत का पारण किया. इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया. आगे चलकर राजा का पुत्र श्रेष्ठ राजा बना.

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