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lekhaka-Gajendra sharma
नई दिल्ली, 07 दिसंबर। आपने पूजा की पंचोपचार पद्धति के बारे में सुना होगा। इस पद्धति में किसी भी देवी-देवता का पूजन पांच प्रकार से किया जाता है।
गन्धं पुष्पं तथा धूपं दीपं नैवेद्यमेव च ।
अखंडफलमासाद्य कैवल्यं लभते धु्रवम् ।।
अर्थात् गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य। इन पांच प्रकारों से प्रयोग देव पूजन में किया जाता है। शास्त्रों में इन पांच प्रकार को पांच मुद्राएं कहा गया है, जिनका प्रयोग देव पर इन पूजन सामग्री को अर्पित करते समय करने का विधान है।
इसका उद्देश्य यह है किइन मुद्राओं के माध्यम से देवी-देवता उस पूजन सामग्री को ग्रहण करते हैं। इन सामग्रियों को अर्पित करने के लिए इनके नाम के अनुसार ही गंध मुद्रा, पुष्प मुद्रा, धूप मुद्रा, दीप मुद्रा तथा नैवेद्य मुद्रा कहा जाता है।
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कैसे बनती हैं मुद्राएं
मुद्राएं बनाने के लिए दोनों हाथों की अंगुलियों और अंगूठे का प्रयोग किया जाता है। अंगूठा तथा कनिष्ठिका अंगुली को एक साथ मिला देने से गंध मुद्रा, अंगूठे की जड़ में तर्जनी को लगाने पर पुष्प मुद्रा, तर्जनी की जड़ में अंगूठा लगाने से धूप मुद्रा, मध्यमा के मूल भाग में अंगूठा मिलाने से दीप मुद्रा तथा अनामिका अंगुली की जड़ में अंगूठा मिलाने से नैवेद्य मुद्रा बन जाती है।
पंच प्राणों की संतुष्टि
इन मुद्राओं का प्रयोग देवताओं को पूजन सामग्री और भोज्य वस्तुएं प्रदान करने के लिए किया जाता है। देवता के लिए नैवेद्य अर्पण करते समय पंच प्राणों की संतुष्टि के लिए पंच ग्रास अवश्य ही देना चाहिए। बाएं हाथ को कमलवत कर लेने से ग्रास मुद्रा बन जाती है। देवताओं को सामग्री अर्पित करते समय इन मुद्राओं का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए।
English summary
Panchopachara puja is a paradigm of making offerings which consists of FIVE items representing the five elements of which the universe is comprised.
Story first published: Wednesday, December 8, 2021, 7:00 [IST]