पापमोचिनी एकादशी व्रत करने से मिलती है पाप कार्यों से मुक्ति
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पापमोचिनी एकादशी व्रत करने से मिलती है पाप कार्यों से मुक्ति
पापामोचनी एकादशी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. उत्तर भारत में यह चैत्र माह में आती है और दक्षिण भारतीय पंचांग अनुसार यह एकादशी फाल्गुन माह के समय पर मनाई जाती है. पापमोचनी एकादशी हिंदू कैलेंडर में 24 एकादशियों में आनी वाली अंतिम एकादशी है. यह होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के उत्सवों के मध्य में आती है. जब पापमोचनी एकादशी गुरुवार को पड़ती है, तो इसका विशेष महत्व होता है और इसे ‘गुरुवर एकादशी’ के नाम से जाना जाता है. हिंदू में पाप शब्द का अर्थ है गलत काम से संबंधित है और मोचन का अर्थ है मुक्ति से होता है और इसलिए यह एकादशी सभी किए गए पापों से मुक्ति देती है. इसके अलावा एकादशी का पालन व्यक्ति को पापों से दूर रहने के लिए भी प्रेरित करता है, इसलिए पापमोचनी एकादशी का व्रत करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस वर्ष पापमोचनी एकादशी 28 मार्च 2022 सोमवार को मनाई जाएगी.
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पापमोचनी एकादशी व्रत
भक्त एकादशी को सूर्योदय के समय उठते हैं और कुश और तिल से पवित्र स्नान करते हैं. अधिकांश विष्णु अनुयायी इस दिन अपने देवता के आशीर्वाद पाने के लिए उपवास रखते हैं.
पापमोचनी एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है. बिना कुछ खाए या सिर्फ पानी पिए उपवास करना सबसे अच्छा माना जाता है. इस के अतिरिक्त इस समय पर फलाहार का पालन भी किया जाता है. कुछ भक्त इस दिन दूध, मेवा और फल खाकर भी उपवास रखते हैं. अगले दिवस ही इस व्रत का पारण किया जाता है.
एकादशी के दिन व्रत न रखने वालों को भी दाल, चावल और तामसिक भोजन करने की मनाही होती है. पापमोचनी एकादशी के दिन ‘श्री विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन भक्तों द्वारा पूरे समर्पण भाव के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. भक्त भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फूल, फल, दीपक और अगरबत्ती चढ़ाते हैं. मोगरा या चमेली के फूल चढ़ाना भी शुभ माना जाता है. व्रत को करने वाले को संध्या के समय भगवान विष्णु के मंदिर के दर्शन भी करने चाहिए. श्री विष्णु मंदिरों में भगवद गीता के अध्यायों का पाठ किया जाता है.
पापमोचनी एकादशी का महत्वपूर्ण समय
एकादशी तिथि 27 मार्च, 2022 शाम 6:04 बजे शुरू होगी
एकादशी तिथि 28 मार्च, 2022 शाम 4:15 बजे समाप्त होगी
द्वादशी समाप्ति क्षण 29 मार्च, 2022 2:38 अपराह्न
हरि वासरा समाप्ति क्षण 28 मार्च, 2022 9:51 अपराह्न
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पापमोचनी एकादशी का महत्व:
पापमोचनी एकादशी का महत्व भविष्योत्तर पुराण और हरिवासर में वर्णित होता है, इसे पहले राजा मान्धाता को ऋषि लोमसा और फिर भगवान कृष्ण ने पांडवों में सबसे बड़े राजा युधिष्ठिर को सुनाया था, ऐसा माना जाता है कि पापमोचनी एकादशी सभी पापों का नाश करती है और देखने वाले को अपराध-बोध से भी मुक्त करती है. इस एकादशी को पूरी भक्ति के साथ करने से व्यक्ति कभी भी राक्षसों या भूतों से प्रभावित नहीं होता है. पापमोचनी एकादशी का पालन करना हिंदू तीर्थ स्थानों पर जाने या यहां तक कि एक हजार गायों का दान करने से भी अधिक पुण्य का काम है. इस शुभ व्रत का पालन करने वाला सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेता है और अंततः भगवान विष्णु के स्वर्गीय राज्य ‘वैकुंठ’ में स्थान पाता है. पापमोचनी व्रत रखने का मुख्य उद्देश्य इंद्रियों नियंत्रित करना तथा आत्मा की शुद्धि की प्राप्ति होता है. इस समय पर भगवान विष्णु के वैदिक मंत्रों का जाप करना तथा सुनना और पाठ करना है.
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ज्योतिष शास्त्र अनुसार जब कोई ग्रह बदलता है, अस्त होता है या उदय होता है तो उसका प्रभाव हर व्यक्ति के जीवन पर अवश्य पड़ता है. ऎसे में देव गुरु का उदय और अस्त होना विशेष असरदायक रहा है क्योंकि इसका सीधा असर मांगलिक कार्यों पर होता है. बृहस्पति के अस्त होते ही विवाह इत्यदै से जुड़े कार्य कुछ समय के लिए रोक दिए जाते हैं और जैसे ही गुरु उदय होता तो पुन: इन का आयोजन आरंभ हो जाता है. गुरु (बृहस्पति) को शिक्षा, संतान, धार्मिक कार्य, शुभ कार्य, समृद्धि, वैभव और विवाह का कारक माना जाता है. जब गुरु अस्त हो जाता है तो सभी प्रकार के शुभ कार्य रुक जाते हैं. फरवरी को गुरु ने कुंभ राशि में अस्त हो गए थे, लेकिन अब गुरु उदय होने पर चीजों का आरंभ होगा. बृहस्पति के उदय का प्रभाव सभी राशियों पर जरूर पड़ेगा, आईये जानते हैं किन राशियों को उदय से लाभ हो सकता है
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