Navratri Significance: या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
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Navratri Significance: या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
शक्ति की उपासना के 9 दिन। देवी दुर्गा से शक्ति और सिद्धि की कामना रखने वाले तरह-तरह के कठिन व्रत करते हैं। शक्ति की सिद्धि तभी श्रेष्ठ है जो वह आपके पास हमेशा रहे समय पड़ने पर साथ दें और जिससे आपको यश मिले। शक्ति रावण के पास भी थी। शक्ति से संपन्न कंस भी था। लेकिन यह जीवन के उस पल में उस से हाथ धो बैठे जिस वक्त इन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। क्योंकि यह अधर्म के पक्ष में थे। शक्ति कोई संपत्ति नहीं है, बल्कि जिम्मेदारी है । जब आपको प्रकृति से कोई ताकत मिलती है तो वे अकेले आपके लिए नहीं होती उस में परमात्मा का कोई संकेत होता है ,जो कहता है आपको किन के लिए शक्ति मिली, किन लोगों की सेवा और सहायता के लिए चुना गया है। भले ही वो आपके नितांत निजी तब से मिली हो, लेकिन प्रकृति और परमात्मा ने शक्ति दी है तो सिर्फ आपकी भोग के लिए नहीं है, उस पर सबका अधिकार है ,क्योंकि यह दोनों भी सभी के हैं।
तीन बातों पर निर्भर करती है शक्ति की सिद्धि
शक्ति किसे दी तीन बातों पर निर्भर करती है संयम ,सत्य और सद्भाव। शक्ति उसी के साथ है जिसके जीवन में यह तीन भाव भीतर तक उतरे हुए हैं। पहला संयम ,शक्ति उसी के पास संचित रहती है जो संयम से रहता हो, असंयमित लोगों की शक्ति उन्हें समय पूर्व छोड़ देती है। दूसरा सत्य शक्ति सत्य के साथ रहती है। रामायण का युद्ध हो या महाभारत का कुरुक्षेत्र, शक्ति ने उसी का साथ दिया है जो सत्य के साथ था। असत्य के साथ देने वालों को शक्ति तत्काल छोड़ देती है। तीसरा सद्भाव ,जब शक्ति आए तो विनम्रता और समानता का भाव जरूरी होता है। शक्ति का यश उसी को मिलता है जो विनम्र हो लोगों के प्रति समान भाव रखें ।भेदभाव करने वाले को कभी शक्ति से यश नहीं मिलता।
हमारे भीतर ही मौजूद है शक्ति
जो कहता है ,शक्ति हमारे भीतर मौजूद है, जरूरत है जगाने की। इन 9 दिनों में शक्ति को जगाया जा सकता है। अगर इन 9 दिनों में अपने भीतर स्थित परमात्मा के अंश को रत्ती भर भी पहचान पाए तो समझिए, नवरात्र शफल है। सारे नियम- कायदे, व्रत -उपवास मंत्र -जाप बस इसी के लिए है कि हम उसके दर्शन भीतर कर सकें, जिससे बाहर खोज रहे हैं। गीता में कृष्ण ने स्पष्ट कहा है सब में मेरा ही अंस है। फिर खोज बाहर क्यों, कोशिश करें कि इस नवरात्र मंदिरों के साथ थोड़ी यात्रा भीतर की भी हो। जब अपने अंदर में परमात्मा को देख सकेंगे, तो फिर बाहर चारों ओर उसे महसूस करेंगे। अगर हम जितना दुख के भीतर उतरेंगे, उतना परमात्मा को निकट पाएंगे। यह नवरात्र आपकी भीतर यात्रा की शुरुआत हो सकती है।
जिद से नहीं ,प्रेम से मांगिए
यह बहुत सुखद विरोधाभास है मां जितना कोमल होती हैं, उतना ही कठोर भी होती है। इसीलिए, इस रिश्ते में प्रेम सम्मान और अपनत्व की आवश्यकता सबसे अधिक है। भक्ति निस्वार्थ है तो मां भी प्रसन्न है। स्वार्थ से की गई साधना में अत्यधिक सावधानी रखनी होती है, क्योंकि यह एक अनुबंध की तरह होती है । मामला जब अनुबंध का है तो सावधानी ज्यादा रखनी है क्योंकि अनुबंध की शर्तें पूरी नहीं हुई तो दंड भी भोगना पड़ सकता है। परमात्मा को कभी शर्तों में ना बांधे ,वो व्यापारी नहीं है। उसे सिर्फ प्रेम से ही जीता जा सकता है।
यह 9 दिन है संकल्प के साथ तप शुरू करने के..
वास्तव में बिना तप शक्ति मिलना संभव नहीं है। अभ्यास के तप के बिना ज्ञान की शक्ति नहीं मिलती। व्रत पालन से हठयोग तक, कई रास्ते हैं जो शक्ति की सिद्धि तक ले जाते हैं। फिर भी हम कहीं चूक रहे हैं, कुछ ऐसा है जो भूल रहे हैं ,कहीं कोई त्रुटि जरूर हो रही है, जो नवरात्री की इतनी साधना के बाद भी शक्ति के दर्शन से हम कुछ कदम दूर रह जाते हैं।