Astrology
lekhaka-Gajendra sharma
नई
दिल्ली,
23
मार्च।
हिंदू
धर्म
में
नवग्रहों
की
आराधना,
पूजन,
मंत्र
जप,
दान
आदि
का
बड़ा
महत्व
है।
ग्रहों
का
मनुष्य
से
गहरा
संबंध
होने
के
कारण
ही
कहा
गया
है
यत
पिण्डे
तत
ब्रह्मांडे,
अर्थात्
जो
कुछ
भी
मनुष्य
के
शरीर
में
है
वह
संपूर्ण
ब्रह्मांड
में
व्याप्त
है
और
जो
संपूर्ण
ब्रह्मांड
में
है
वही
शरीर
में
भी
है।
इसलिए
नवग्रहों
के
पूजन
का
महत्व
है।
आइए
जानते
हैं
इन्हीं
नवग्रहों
के
स्वरूप,
आकार-प्रकार
और
ये
किन
देशों
के
अधिपति
होते
हैं
यह
सारी
जानकारी।
ब्रह्मलीन
स्वामी
अखंडानंदसरस्वती
महाराज
ने
नवग्रहों
की
बड़ी
सुंदर
व्याख्या
की
है।
सूर्य
:
सूर्य
ग्रहों
का
राजा
है।
यह
कश्यप
गोत्र
के
क्षत्रिय
एवं
कलिंग
देश
के
स्वामी
हैं।
जपाकुसुम
के
समान
इनका
रक्तवर्ण
है।
दोनों
हाथों
में
कमल
लिए
हुए
हैं।
सिंदूर
के
समान
वस्त्र,
आभूषण
और
माला
धारण
किए
हुए
हैं।
सात
घोड़ों
के
एक
चक्र
रथ
पर
आरूढ़
होकर
सुमेरु
की
प्रदक्षिणा
करते
हैं।
इनके
अधिदेवता
शिव
हैं
और
प्रत्यधिदेवता
अग्नि।
इनका
मंत्र
है-
ऊं
ह्रीं
ह्रौं
सूर्याय
नम:
।
Brahmavadini
Yoga:
महिलाओं
की
कुंडली
का
प्रमुख
योग
ब्रह्मवादिनी,
कैसे
बनता
है?
क्या
होता
है
प्रभाव?
चंद्र
:
चंद्रमा
अत्रि
गोत्रीय
हैं।
यामुन
देश
के
स्वामी
हैं।
इनका
शरीर
अमृतमय
है।
दो
हाथ
हैं-
एक
में
वरमुद्रा,
दूसरे
में
गदा
है।
दूध
के
समान
श्वेत
शरीर
पर
श्वेत
वस्त्र,
माल
और
अनुलेपन
धारण
किए
हुए
हैं।
मोती
का
हार
है।
अपनी
सुधामयी
किरणों
से
तीनों
लोकों
को
सींच
रहे
हैं।
दस
घोड़ों
के
त्रिचक्र
रथ
पर
आरूढ़
होकर
सुमेरु
की
प्रदक्षिणा
कर
रहे
हैं।
इनके
अधिदेवता
उमादेवी
हैं
और
प्रत्यधिदेवता
जल
हैं।
मंत्र
है-
ऊं
एें
क्लीं
सोमाय
नम:
।
मंगल
:
मंगल
भारद्वाज
गोत्र
के
क्षत्रिय
हैं।
ये
अवंति
के
स्वामी
हैं।
इनका
रंग
अग्नि
के
समान
रक्तवर्ण
है।
वाहन
मेष
है,
रक्त
वस्त्र
और
माला
धारण
किए
हुए
हैं।
हाथों
में
शक्ति,
वर,
अभय
और
गदा
है।
इनके
अंग-अंग
से
कांति
की
धारा
छलक
रही
है।
मेष
के
रथ
पर
सुमेरु
की
प्रदक्षिणा
करते
हुए
अपने
अधिदेवता
स्कंद
और
प्रत्यधिदेवता
पृथ्वी
के
साथ
सूर्य
के
अभिमुख
जा
रहे
हैं।
मंत्र
है-
ऊं
हूं
श्रीं
मंगलाय
नम:
।
बुध
:
अत्रि
गोत्र
एवं
मगध
देश
के
स्वामी
हैं।
इनके
शरीर
का
वर्ण
पीला
है।
चार
हाथों
में
ढाल,
गदा,
वर
और
खड्ग
है।
पीला
वस्त्र
धारण
किए
हुए
हैं।
सौम्य
मूर्ति
सिंह
पर
सवार
हैं।
इनके
अधिदेवता
नारायण
और
प्रत्यधिदेवता
विष्णु
हैं।
मंत्र
है-
ऊं
एें
श्रीं
श्रीं
बुधाय
नम:
।
गुरु
:
बृहस्पति
अंगिरा
गोत्र
के
ब्राह्मण
हैं।
सिंधु
देश
के
स्वामी
हैं।
वर्ण
पीत
है।
पीतांबर
धारण
किए
हुए
हैं,
कमल
पर
बैठे
हैं।
चार
हाथों
में
रुद्राक्ष,
वरमुद्रा,
शिला
और
दण्ड
धारण
किए
हुए
हैं।
इनके
अधिदेवता
ब्रह्मा
हैं
और
प्रत्यधिदेवता
इंद्र
हैं।
इनका
मंत्र
है-
ऊं
ह्रीं
क्लीं
हूं
बृहस्पतये
नम:
।
शुक्र
:
शुक्र
भृगु
गोत्र
के
ब्राह्मण
हैं।
भोजकट
देश
के
अधिपति
हैं।
कमल
पर
बैठे
हुए
हैं।
श्वेत
वर्ण
है।
चार
हाथों
में
रुद्राक्ष,
वरमुद्रा,
शिला
और
दण्ड
है।
श्वेत
वस्त्र
धारण
किए
हैं।
इनके
अधिदेवता
इंद्र
और
प्रत्यधिदेवता
चंद्र
हैं।
मंत्र
है-
ऊं
ह्रीं
श्रीं
शुक्राय
नम:
।
शनि
:
ये
कश्यप
गोत्र
के
शूद्र
हैं।
सौराष्ट्र
प्रदेश
के
अधिपति
हैं।
इनका
वर्ण
कृष्ण
है
और
कृष्ण
वस्त्र
ही
धारण
किए
हुए
हैं।
चार
हाथों
में
बाण,
वर,
शूल
और
धनुष
है।
इनका
वाहन
गृध्र
है।
इनके
अधिदेवता
यमराज
और
प्रत्यधिदेवता
प्रजापति
हैं।
इनका
मंत्र
है-
ऊं
एें
ह्रीं
श्रीं
शनैश्चराय
नम:
।
राहु
:
राहु
पैठीनस
गोत्र
के
शूद्र
हैं।
मय
देश
के
अधिपति
हैं।
इनका
वर्ण
कृष्ण
है
और
वस्त्र
भी
कृष्ण
ही
है।
वाहन
सिंह
है।
चार
हाथों
में
खड्ग,
वर,
शूल
और
ढाल
हैं।
इनके
अधिदेवता
काल
हैं
और
प्रत्यधिदेवता
सर्प
है।
इनका
मंत्र
है-
ऊं
ऐं
ह्रीं
राहवे
नम:
।
केतु
:
ये
जैमिनी
गोत्र
के
शूद्र
हैं।
कुशद्वीप
के
अधिपति
हैं।
इनका
वर्ण
धुएं
सा
है
और
वैसा
ही
वस्त्र
धारण
किए
हुए
हैं।
मुख
विकृत
है,
गीध
वाहन
है।
दो
हाथों
में
वरमुद्रा
तथा
गदा
है।
इनके
अधिदेवता
हैैं
चित्रगुप्त
तथा
प्रत्यधिदेवता
हैं
ब्रह्मा।
इनका
मंत्र
है-
ऊं
ह्रीं
ऐं
केतवे
नम:
।
English summary
Navagraha are nine heavenly bodies and deities that influence human life on Earth according to Hinduism and Hindu astrology. Read Everything about the Navagrahas here.
Story first published: Wednesday, March 23, 2022, 7:00 [IST]