Thursday, March 17, 2022
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Movie Review: Kashmir Files देखना तो बनता है, यहां जानें क्या है इसमें ऐसा खास


नई दिल्ली: कास्ट: अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन रावल, पल्लवी जोशी, पुनीत इस्सर, चिन्मय मंडलेकर, भाषा सुम्बली, प्रकाश बेलावडी, अतुल श्रीवास्तव आदि
निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री
स्टार रेटिंग: 4
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में

क्या है फिल्म का बैकग्राउंड?

ये मूवी देखते ही फौरी तौर पर दो बातें जेहन में आती हैं, पहली ये कि कश्मीर के सच को दिखाना, इस विषय पर कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के असली नजरिए से मूवी बनाना, खुलकर वो बातें दिखाना-किरदारों से बुलवाना जिन्हें बोलने से दशकों तक मीडिया तक परहेज करती रही, एक समुदाय ‘तथाकथित गुस्से’ की परवाह ना करना, वाकई में हिम्मत का काम था, जो विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) ने इस मूवी में कर दिखाया है. दूसरी बात जो जेहन में आई वो ये कि फिल्मी क्राफ्ट की दृष्टि से देखें तो लगता है इस मूवी का कैनवास इस विषय के लिए जितना बड़ा होना चाहिए था, उतना बड़ा हो नहीं पाया और ना ही रिसर्च इस स्तर तक हुई, जितनी कि उनकी पुरानी मूवी ‘ताशकंद फाइल्स’ में हुई थी. बावजूद इसके इस फिल्म को देखना हर जागरूक हिंदुस्तानी के लिए लाजमी है.

कश्मीरी पंडितों पर है मूवी

कहानी है एक ऐसे कश्मीरी पंडित लड़के कृष्णा पंडित (दर्शन रावल) की जो जेएनयू जैसे मिजाज वाली एक यूनिवर्सिटी में आजादी गैंग के साथ जुड़ जाता है और उनके तर्कों से लाजवाब होकर कश्मीर (Kashmir) की आजादी के नारे भी लगाने लगता है. हालांकि उसे ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह’ कहने में थोड़ी दिक्कत होती है. लेकिन उसकी प्रोफेसर राधिका मेनन (पल्लवी जोशी) अपने तर्कों से उसके सारे कन्फ्यूजन को दूर करती है. बाद में राधिका उसे स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट पद के चुनाव में खड़ा कर देती है. 

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कहानी में ट्विस्ट

लेकिन अचानक उसके दादा पुष्कर नाथ पंडित की मौत हो जाती है, जो अपनी आखिरी इच्छा बताकर गए थे कि उनकी अस्थियां कश्मीर में उनके घर में बिखेरी जाएं लेकिन चार दोस्तों की मौजूदगी में. ये चार दोस्त थे पूर्व आईएएस ब्रह्म दत्त (मिथुन चक्रवर्ती), पूर्व डॉक्टर महेश कुमार (प्रकाश बेलावडी), पूर्व डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), पूर्व पत्रकार विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव). इन चारों के साथ जब वो कश्मीर पहुंचता है तो फिर कहानी की परतें एक-एक कर खुलने लग जाती हैं. कहानी उस हादसे की जिसने 5 लाख कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) को कश्मीर छोड़ने पर मजबूर कर दिया. कहानी उस साजिश की जिसने कश्मीर को आजाद करने के लिए हजारों हत्याओं की योजना बनीं. कहानी उन आतंकियों (Terrorists) की जिन्होंने कश्मीर की धरती को हिंदू विहीन करने की साजिश रची. कहानी जिससे अब तक कृष्णा से ये कह कर छुपाया गया था कि माता-पिता एक एक एक्सीडेंट में मारे गए थे.

इमोशनल कर देने वाले सीन्स

ये कहानी है कृष्णा पंडित के पिता को बुरी तरह मारने की, उनके खून से सने चावल उसकी मां शारदा (Bhasha Sumbli) को खाने पर मजबूर करने की, उसकी मां को आरा मशीन पर रखकर बीच से चीर देने की, उसके भाई को गोली मारकर खत्म कर देने की. आपकी आंखों में इस मूवी को देखते हुए कई बार आंसू आएंगे. जेहन में फौरन सवाल आएगा कि किसी को पता क्यों नहीं चला? भारत सरकार ने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया, प्रशासन और फौज क्या कर रही थी? देखा जाए तो मूवी बनाने का मकसद बस यही था कि हर भारतीय के मन में ये सवाल उठें और वो उनके जिम्मेदार लोगों पर उंगली उठाएं. 

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लोगों की राय

बहुत से लोग कह सकते हैं कि ये एकतरफा मूवी है लेकिन दूसरी तरफ तो कोई था ही नहीं, वहां तो बस आतंकी थे, फिर भी जो नरेटिव दूसरे पक्ष की तरफ से तैयार किया गया. उसको कभी प्रोफेसर राधिका, कभी कृष्णा पंडित के जरिए इस मूवी में उठाया भी गया है, लेकिन उनका तरीके से जवाब भी दिया गया है. इसके लिए आपको तारीफ करनी होगी डायलॉग्स की, जो ना केवल उस दौर की नंगी सच्चाई आपको बताते हैं बल्कि कायदे की मारक बात भी करते हैं.

‘कनवर्ट, लीव और डाई’ के साथ-साथ कश्मीर (Kashmir) चाहिए लेकिन हिंदू औरतों के साथ बिना किसी मर्द के जैसी बातें नई पीढ़ी के लिए चौंकाने वाली हो सकती हैं, तो ‘खुद को जर्नलिस्ट क्यों बोलते हो, पोस्टमेन बोलो ना’, ‘टूटे हुए लोग बताते नहीं उन्हें सुना जाता है’, ‘जब भारत (India) भी कश्मीर की तरह जलता हुआ भारत बनेगा तब’ जैसे तमाम चुभने वाले, अंदर तक चीर देने वाले डायलॉग्स आपको इस मूवी के साथ बांधे रखेंगे. म्यूजिक इस मूवी में इस्तेमाल तो हुआ है लेकिन आम हिंदी फिल्मों की तरह नहीं.

अनुपम खेर ने बखूबी निभाया किरदार

अनुपम खेर (Anupam Kher) के लिए एक भोले-भाले कश्मीरी पंडित का रोल करना वाकई में मुश्किल रहा होगा और ये वाकई में उनके यादगार रोल में शामिल होगा. मिथुन दा (Mithun Chakraborty), पुनीत इस्सर (Puneet Issar), प्रकाश बेलावडी (Prakash Belavadi), अतुल श्रीवास्तव (Atul Srivastava), पल्लवी जोशी (Pallavi Joshi) और दर्शन रावल (Darshan Rawal) मंझे हुए कलाकार हैं लेकिन हैरान किया बिट्टा कराटे के रोल में चिन्मय मंडलेकर और शारदा के रोल में भाषा सुम्बली ने. उनके लिए ये मूवी एक सीढ़ी का काम करेगी.

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कई बड़े राजनेताओं को छूती है मूवी

फारुख अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद सईद, राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) आदि को छूते हुए ये मूवी निकल गई है. जबकि आईबी अधिकारी मलय कृष्ण धर ने अपनी किताब में साफ लिखा है कि कैसे बेनजीर भुट्टो (Benazir Bhutto) की दोस्ती के जाल में फंसे राजीव गांधी को अफगानिस्तान के नजीबुद्दौला ने कई बार जानकारी दी कि कश्मीर के लड़के उनके यहां आतंकी ट्रेनिंग ले रहे हैं, लेकिन राजीव गांधी को बेनजीर पर भरोसा था, वो नजरअंदाज करते रहे. भुट्टो का वीडियो इस मूवी में दिखाया गया है जिसमें वो साफ कह रही हैं कश्मीर के हर घर, हर स्कूल, हर मस्जिद से एक आवाज आनी चाहिए- आजादी. फिर भी राजीव गांधी ने उन्हें दरकिनार किया, इतना ही नहीं राजीव गांधी के हटते ही जगमोहन को वहां से हटाना, फिर लाना, जैसी कई ऐसी बातें थीं जिनके जरिए निशाना फारुख अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे से ऊपर भी जा सकता था लेकिन ज्यादा गया नहीं. बिट्टा को भी मूवी में 370 हटने के बाद आजादी से घूमता दिखा दिया गया है, जबकि वह 2019 से ही एनआईए की गिरफ्त में है. कहानी को बाकी मूवीज की तरह एक परिवार की कहानी बना दिया गया. ये हिंदी मूवीज की मजबूरी है. ऐसे में आपको मूवी देखकर लगेगा कि ये मूवी और ये विषय बड़ा कैनवास मांगती है. 

जबरदस्त क्लाइमेक्स सीन

कुल मिलाकर एक तरफ जहां विशाल भारद्वाज जैसे फिल्मकार मार्तंड सूर्य मंदिर जैसी जगह में हैदर मूवी में शैतान खड़ा कर बिस्मिल बिस्मिल शूट कर रहे हैं, विधु विनोद चोपड़ा कश्मीरी होने के बावजूद अपनी मूवीज को रोमांटिक टर्न दे रहे हैं, वहीं विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) का ‘कश्मीर फाइल्स’ (‘Kashmir Files’) के जरिए कश्मीर में दशकों से जारी जेहादी मानसिकता और इरादों को सामने लाना कश्मीरी पंडितों के दर्द में दशकों बाद एक सही मलहम की तरह है और साथ में भारतीय युवाओं के लिए सही नजरिए से कश्मीर समस्या को रखने का एक बड़ा काम भी विवेक ने किया है और इसके लिए वाकई में हिम्मत की जरूरत होती है. दर्शन रावल पर फिल्माया गया क्लाइमेक्स सीन जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल (Viral) हो सकता है. ये अलग बात है कि आजादी का राग गाने वालों को इस मूवी से परेशानी हो सकती है.  

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