Sehat Ki Baat: यदि लगातार आपको घबराहट बनी रहती है, रोने का बहुत मन करता है, गुस्से पर काबू नहीं रहा, मनोबल पूरी तरह से खत्म हो चुका है, काम के प्रति लगाव नहीं बचा, पसंदीदा चीजों में भी मन नहीं लगना, अकेले बैठने का मन करना, किसी से भी न मिलने का मन करना, निर्णय लेने में दिक्कत आ रही है… तो आपके यह लक्षण सामान्य नहीं हैं. आप माने या ना माने, लेकिन ये सभी लक्षण बता रहे हैं कि आपकी दिमागी सेहत कुछ ठीक नहीं है. आपको जल्द से जल्द किसी मनोरोग विशेषज्ञ से मिलने की जरूरत है. यदि इस वक्त आपने देर कर दी तो हो सकता है कि आपको अपना पूरा जीवन साइक्रेटिक ड्रग्स के भरोसे जीना पडे.
कोची स्थित अमृता हॉस्पिटल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. धन्या चंद्रन बताती हैं कि इस समय देश की करीब 30 से 40 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में मानसिक समस्या से जूझ रही है. मानसिक समस्याओं की तरफ बढ़ रहे मरीजों में शुरुआती दौर में नींद की कमी, भूख कम लगना, अधिक थकान महसूस होना, बेचैनी होना, पेट में दर्द, बदन में दर्द, सांस लेने में दिक्कत, धड़कन तेज होना, तेज पसीना आना, महिलाओं में माहवारी में दिक्कत आना, शारीरकि संबंध में रुचि न रहना या दिक्कत होने जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं. ज्यादातर लोग इन शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं. यही लापरवाही लोगों में गंभीर मानसिक रोगों का कारण बनती है.
ये हैं सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं (Common Mental Health Problems)
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, यदि हम कॉमन मेंटल डिसऑर्डर (सामान्य मानसिक समस्याएं) की बात करें, तो सामान्यत: पांच तरीके के कॉमन मेंटल डिसऑर्डर देखने को मिलते हैं.
डिप्रेशन (Depression) | यदि छोटी-छोटी बातों पर मन बहुत दुखी हो जाए और यह मनोभाव लंबे समय तक बना रहे, जिन चीजों पहले बहुत मन लगता था, अब उनको करने में खीझ या गुस्सा आए, सबसे अलग-अलग रहने का मन करे तो यह डिप्रेशन (अवसाद) के लक्षण हो सकते हैं. अवसाद के मरीजों का मन एकाग्र नहीं रहता, नींद में दिक्कत आती है, भूख नहीं लगती है, हमेशा तनाव रहता है. साथ ही, डिप्रेशन की अवस्था में नकारात्मक विचार आते हैं, छोटी-छोटी बातों में अपराध बोध होता है और अपना जीवन बेकार लगने लगता है. आत्मविश्वास की कमी के चलते अवसाद से पीड़ित शख्स खुद की आलोचना करने लगता है. |
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive-compulsive disorder -OCD) |
ओसीडी में ऐसे विचार हमारे मन में आते हैं, जिनसे या तो हमें या तो दुख होता है या फिर डर लगता है. हम जितना इन विचानों को मन में आने से रोकने की कोशिश करते हैं, ये विचार उतना अधिक हमारे मन में हावी होते जाते हैं. इस बीमारी से पीड़ित शख्स कीटाणु के डर से बार बार अपने हाथ धुलते हैं. उन्हें पता है कि यह सही नहीं है, बावजूद इसके वह बार-बार सफाई करते हैं. ओसीडी के मरीजों को लगता है कि शायद उन्होंने अपना गैस का नॉब बंद किया या नहीं, दरवाजे में लॉक लगाया कि नहीं. इसी असमंसज की स्थिति में वह बार-बार अपने गैस की नॉब और दरवाजे का लॉक चेक करते हैं. |
सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalised anxiety disorder) | सामान्यीकृत चिंता विकार यानी जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर की स्थिति में पीड़ित के मन में बहुत सारे सवाल आते हैं. मसलन, ऐसा हो सकता है क्या? ऐसा नहीं हुआ तो मैं क्या करुंगा/करुंगी? ये सवाल ऐसे होते हैं, जिनका जवाब मिलना थोड़ा मुश्किल होता है. जवाब न मिलने की स्थिति में मरीज को खीझ होती और तेज गुस्सा आता है. इस अवस्था में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है, तेज पसीना आने लगता है, शरीर में अस्थिर भाव महसूस होने लगते हैं, पेट में दर्द होने लगता है. इसके अलावा, जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर की स्थिति में मरीज की मांसपेशियों में खिचाव और थकान महसूस होती है. |
घबराहट की समस्या (Panic disorder) |
पैनिक डिसऑर्डर की कोई खास वजह नहीं होती और यह एंग्जाइटी डिसआर्डर का ही एक हिस्सा है. इसमें पूर्व में घटित किसी घटना के चलते दिल में एक डर बैठ जाता है और उस डर की वजह से वह काम ही छोड़ देते हैं. मसलन, कार चलाते समय कभी कोई अनहोनी हो जाए, तो पैनिक डिसऑर्डर से पीड़ित शख्स कार ड्राइविंग छोड़ने का फैसला कर लेता है. कभी ड्राइविंग की नौबत आई तो उसे एंग्जाइटी होने लगती है और उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है, सांसे तेज तेज चलने लगती है, कई बार सांस लेने में भी दिक्कत होती है. कई बार मुझे कुछ हो न जाए के डर से भी पैनिक डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं. |
पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-traumatic stress disorder -PTSD) : | पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर को सामान्य भाषा में हम सदमा भी कह सकते है. दरअसल, पीटीएसडी एक ऐसी स्थिति है जब जीवन का कोई बुरा हादसा आपके मन में घर कर जाए और उसे चाह कर भी भुला न पाएं. जब यह हादसा बार बार आंखों के सामने आता है तो डर के साथ एंग्जाइटी की शिकायत होती है. इस डर और एंग्जाइटी की वजह से मरीज के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है और वह छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होने लगता है. इसके अलावा, जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर के लक्षण भी मरीज में दिखने लगते हैं. |
कब लें मनोचिकित्सक की सलाह
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. धन्या चंद्रन के अनुसार, किसी भी व्यक्ति में डिप्रेशन, जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण नजर आते हैं, तो उसे तत्काल अपने मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. यहां यह महत्वपूर्ण है कि मरीज से अधिक जिम्मेदारी उसके परिजनों की होती है. दरअसल, मानसिक बीमारी की अवस्था में मरीज को लगता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ्य है और जो कुछ भी कर रहा है, वह सही है. ऐसी स्थिति में, मरीज की मनोस्थिति को पढ़कर परिजनों या दोस्तों को आगे बढ़कर दिमागी रूप से बीमार हो रहे शख्स को मनोचिकित्सक तक पहुंचाना चाहिए.
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