माता वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
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माता वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
नवरात्रि के पावन पर्व में देवी के इस स्थान पर भक्तों का ताता सबसे अधिक होता है। देवी यहां पर पिंडी स्वरूप में पर्वतों के बीच विराजती है। देवी का यह मंदिर पर्वतों के बीच है और चारों तरफ से हरियाली से घिरा हुआ है जिसके चलते यह इतना भव्य और सुंदर दिखता है कि यह अपनी इसी भव्यता और सुंदरता के कारण विश्व विख्यात है। चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर हम आपको माता वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथा बतायेंगे
कहते हैं कि एक समय की बात है हर्षाली गांव जो की वर्तमान कटरा कस्बे से दो किलोमीटर दूर है। वहा पर वैष्णो देवी का परम भक्त श्रीधर रहता था। श्रीधर निसंतान था जिसके कारण वह काफी दुखी था। एक बार श्रीधर कन्या पूजन कर रहा था तब नौ कन्याओं के साथ माँ खुद वहाँ बैठी और सभी कन्याओं के जाने के बाद वही बैठी रही और श्रीधर को आदेश दिया कि वह सभी को अपने घर पर भोजन का निमंत्रण देकर आएं। श्रीधर के निमंत्रण पर बाबा गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरोनाथ भी श्रीधर के घर उपस्थित हुए। माँ वैष्णो देवी ने सभी को खुद भोजन परोसना आरंभ किया जब वह भैरोनाथ को भोजन परोसने लगी तो उसने माँ से मांस और मदिरा लाने को कहा।
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जब माँ ने भैरो को मना किया तो उसने माता को पकड़ना चाहा तब माता वायु रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ने लगीं और वहाँ पर उन्होंने एक गुफा के भीतर प्रवेश कर नौ महीने बिताए। जब माता गुफा के अंदर थी उस समय हनुमान जी ने उनकी रक्षा की और भैरो से युद्ध किया था। लंबे समय तक युद्ध चलने के कारण जब एक बार हनुमानजी निढाल होने लगे तब माता वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरो नाथ का धड़ और सिर अलग अलग कर दिया था। बाद में माँ दर्शन देने अपने परम भक्त श्रीधर के सपने में आई और उसे संतान का वरदान दिया। श्रीधर माता की खोज में निकल पड़ा और जिस गुफा में माँ ने नौ महीनों तक तपस्या की थी वहाँ पर उनके परम भक्त श्रीधर ने मंदिर का निर्माण कराया और पूजा अर्चना शुरू करी थी।
माँ दुर्गा से जुड़ी एक पौराणिक कथा और मीलती है। एक समय की बात है जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होने लगी और अधर्म की शक्तियां बढ़ने लगी तब आदिशक्ति के तीन स्वरूप माँ दुर्गा, माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी ने अपनी सामूहिक ताकत से एक कन्या प्रकट करी थी। यह कन्या रामेश्वर में पंडित रत्नाकर के घर में पुत्री रूप में जन्मी थी। रत्नाकर कई वर्षों से संतानहीन था। उसके घर में पुत्री स्वरूप में जन्मी माँ का नाम उसने त्रिकुटा रखा। परन्तु वह भगवान विष्णु का अंश होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात है। जब त्रिकुटा को ज्ञान हुआ कि भगवान विष्णु ने भी राम के रूप में धरती पर अवतार लिया है। तब से वह भगवान राम को अपना पति मान कर कठोर तपस्या में लीन हो गयी।
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राम रावण के युद्ध के बाद राम रावण का वध कर जब रामेश्वर पहुंचे तब उन्होंने तट पर ध्यान मग्न कन्या को देखा कन्या ने जैसे ही भगवान श्रीराम को देखा उसने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी स्वरूप में स्वीकार करने के लिए कहा था। तब भगवान श्रीराम ने बताया कि मैंने तो इस जन्म में सीता से विवाह किया है और पत्नीव्रत होने का प्रण लिया है इसलिए मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकता हूँ। परंतु मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि मैं कलयुग में कली के रूप में जन्म लूँगा और तुमसे विवाह करूँगा। जब तक तुम हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर जाकर तपस्या करों और भक्तों के कष्टों का निवारण करो। साथ ही भगवान श्रीराम ने उन्हें यह भी आशीर्वाद दिया कि तुम त्रिकुटा के रूप में विश्व कल्याण करोगी और अमर हो जाओगी।
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