महशिवरात्रि से जुड़ी एक अनसुनी पौराणिक कथा।
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महशिवरात्रि से जुड़ी एक अनसुनी पौराणिक कथा।
महाशिवरात्रि से जुड़ी कईं पौराणिक और इतिहासिक कहानियाँ है जिनके बारे में हम सब जानते है। जैसे कि महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है, शिव भक्तों के लिए कावड़ का क्या महत्त्व है ऐसी ही कितनी बातें जो हम और आप सभी जानते है। परन्तु आज हम आपको एक और कहानी के बारे में बताने जा रहे है जो शायद आपने पहले सुनी न सुनी हो। तो आइये आपको बताते है इस कथा के बारे में।
पूर्व काल में एक शिकारी हुआ करता था वह जंगल में शिकार करता था और अपने परिवार का पालन करता था। वह एक साहूकार का कर्ज दार था लेकिन वह उसका ऋण समय पर नही चुका सका इसलिए साहूकार ने उसे शिवमठ में बंधी बना लिया था। उस दिन वह वहाँ सारे दिन भगवान शिव के बारे में धार्मिक बाते सुनता रहा और संयोग वश उस दिन शिवरात्रि का पर्व था।
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शाम होने पर साहूकार ने उस शिकारी को बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में बात की जब शिकारी ने उससे अगले दिन ऋण चुकाने का वादा किया और साहूकार ने उसे छोड़ दिया। शिकारी पूरे दिन का भूखा और प्यासा था वह रोज की भांति जंगल में शिकार के लिए निकल गया लेकिन थोड़े समय बाद रात हो गयी और उसने विचार कर रात जंगल में ही बितानी का फैसला किया।
शिकारी जंगल में एक पेड़ पर चढ़ा और वह बेल्व का पेड़ था और वह पड़ाव बनाने के लिए पेड़ की टहनियां तोड़ने लगा पर वह पत्ते बेल पत्र के थे जो भगवान शिव को चढ़ाये जाते है शिकारी इस बात से अनजान था क्योंकि बेल पत्र का पेड़ बेल्व के पेड़ के नीचे छिपा हुआ था। इस प्रकार शिकारी का पूरे दिन भूखे प्यासे रह कर व्रत भी हो गया और बेल पत्र गिर कर भगवान शिव की पूजा भी हो गयी।
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रात्रि का एक पहर बीत गया था जंगल में एक गर्भवती हिरणी तालाब के पास पानी पीने आयी शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।
ऐसे ही वहां एक और हिरणी आयी शिकारी ने फिर प्रत्यंचा चढ़ाई लेकिन वह फिर शिकार नही कर पाया, फिर तीसरी हिरणी आयी फिर शिकारी ने प्रत्यंचा चढ़ाई फिर इस हिरणी ने भी अपना शिकार करने से मना कर दिया। अब एक शिकारी की तीन पहर की पूजा हो चुकी थी तीनों बार प्रत्यंचा चढ़ाने में शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ चुके थे। अबकी बार एक हिरण आया फिर शिकारी ने प्रत्यंचा चढ़ाई अबकी बार हिरण ने कहा अगर तुमने उन तीनों हिरणियों को जाने दिया है तो मुझे भी जाने तो नही तो वह नही आ पायेंगी क्योंकि मैं उनका पति हूँ मुझे एक बार जाने दो मैं फिर अपने पूरे परिवार के साथ आ जाऊँगा। इस प्रकार उसने हिरण को भी जाने दिया और उसकी चौथे प्रहर की पूजा भी पूरी हुई जिससे वह शिकारी अनजान था। उसकी यह पूजा अनजाने में हुई। शिव की पूजा उसने अनजाने में की थी लेकिन उसके अंदर मानवता वास कर रही थी।
इस कथा से हमे यह पता चलता है कि भगवान शिव अनजाने में भी अच्छे मन से की गयी पूजा का भी फल देते है। लेकिन वास्तव में महादेव उस शिकारी के दया भाव से प्रसन्न हुए थे क्योंकि वह खुद भूखा था पर उसने फिर भी उस हिरण परिवार को जाने दिया। यही बात शिकारी को उन पंडितों से उत्कृष्ट बना देती है। आप इस कहानी से यह ना समझे कि भगवान शिव किसी भी प्रकार के पूजन को स्वीकार कर लेते है बल्कि भगवान शिव सिर्फ सच्चे मन ओर पूरी श्रद्धा से की गयी आराधना को ही स्वीकार करते हैं।
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