Thursday, March 3, 2022
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Mahashivratri 2022: जानें क्या क्या करना चाहिए महाशिवरात्रि के उपवास में |


Ahoi Vrat
– फोटो : google

महाशिवरात्रि का व्रत कैसे करें 

हिन्दू धर्म में कुछ विशेष व्रत त्यौहार कुछ विशेष देवी देवताओं को समर्पित होते हैं। उस दिन उन्ही देवी देवताओं की पूजा होती हैं। वैसे ही आज का दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। आज के दिन भोले शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। तब से इस दिन को माता पार्वती और भगवान शिव की वैवाहिक वर्षगांठ के तौर पर मनाया जाता है।

आज के दिन भक्त व्रत रखते है और पूजा पाठ करते हैं।

वैसे तो कुछ लोग महाशिवरात्रि के व्रत का आरंभ त्रयोदशी तिथि से कर देते है और चतुर्दशी तिथि के दिन पूजा करके व्रत करने का संकल्प लेते है। वही कुछ लोग सिर्फ चतुर्दर्शी के दिन व्रत रखते है। यदि आप त्रयोदशी के दिन व्रत नही भी रखते है तो आप ध्यान रखे कि आप त्रयोदशी तिथि से सात्विक भोजन ग्रहण करें। उसके बाद अगले दिन चतुर्दर्शी तिथि के दिन व्रत पूर्ण करके अगले दिन भोर में व्रत पूर्ण करें।

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अब बात आती है कि व्रत कैसे रखें। वैसे तो सभी भक्त अपने श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार व्रत रखते है। परंतु कुछ ऐसी बातें होती है जिनका ध्यान रखने से आपका व्रत और अच्छे से पूर्ण होगा। सबसे पहले ध्यान रखे कि आप व्रत में नमक का सेवन ना करें। यदि कोई व्यक्ति बीमार है, गर्भवती महिलायें है जो बिना नमक के नही रह सकते है ऐसे में उन लोगों को सेंधा नमक का सेवन करना चाहिये। 

संभव हो तो आप महाशिवरात्रि के व्रत के दिन फलहार ले और रात्रि में कुछ मिष्ठान का भोग भगवान को लगाये और फिर खुद ग्रहण करें उसके बाद अगले दिन पूजा करके भगवान के प्रसाद के साथ अपना व्रत खोले। व्रत के दौरान भगवान शिव का ध्यान करे उनकी पूजा अर्चना करें। 

कहते है कि जो लोग महाशिवरात्रि का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करते है और भगवान शिव का ध्यान करते है उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि के दिन चारों पहर की पूजा का भी विशेष उल्लेख पुराणों में मिलता है। ध्यान रखे जब भी आप पूजा करे चारों पहर की तो ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें। यदि यह जप मंदिर में संभव नही है तो घर में शांत जगह पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठे और मंत्र का जप करें। 

व्रत के दौरान सात्विक भोजन या फिर फलहार ग्रहण करें। जितना संभव हो नमक का सेवन न करें। 

त्रयोदशी या चतुर्दर्शी तिथि से व्रत का आरंभ करें और अगले दिन पूजा करके व्रत पूर्ण करें।

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