jaya ekadashi 2022: जया एकादशी व्रत माघ शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है. इस तिथि को वसुदेव-देवकी नंदन भगवान श्री कृष्ण की आराधना और पूजा करनी चाहिए. दिन-रात्रि के प्रत्येक क्षण में श्री कृष्ण के नामों का संकीर्तन वाणी के द्वारा हो, श्री चरणों में अनुराग हो, हृदय प्रेम से पुल कायमान हो, भगवान का दिव्य प्रसाद भक्तों और साधक को प्राप्त हो, तो निश्चय ही इस व्रत को करने वाले मनुष्य भूत-प्रेतादि योनियों से मुक्त हो जाते हैं. इतना ही नहीं, वरन जन्म-जन्मांतरों के दोषों तथा ब्रह्म इत्यादि जैसे पातकों से भी छुटकारा मिल जाता है.
जया एकादशी व्रत कथा
जया व्रत के संबंध में एक बार धर्मराज पांडु नंदन युधिष्ठिर से सच्चिदानंद स्वरूप यशोदा नंदन से पूछा, तब श्री कृष्ण ने इस संबंध में एक सुंदर आख्यान सुनाते हुए कहा, इस बार इंद्र की सभा में अप्सराएं नृत्य एवं गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पवंत, उसकी लड़की तथा चित्रसेन की स्त्री मालिन ये सब थे. वहीं मालिन का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी थे. उस समय पुष्पवती नामक एक गंधर्व स्त्री माल्यवान को देखकर मोहित हो गयी और काम उसके मन में जागने लगा.
उसने रूप, सौंदर्य, हाव-भाव, कृपा कटाक्ष द्वारा माल्यवान को काम पीड़ा से दग्ध कर दिया. पुष्पवती के अद्वितीय रूप माधुर्य का पान कर माल्यवान भी, शीघ्र ही कामदेव के वश में हो, पुष्पवती के साथ हास-परिहास करता हुआ, इंद्रियों का रसास्वादन कर, अधरामृत पान के अपूर्व सुख का आनंद लेने लगा. इंद्र ने इन दोनों को बुला कर नाच-गाने का आदेश दिया. तब इंद्र भय से पुष्पवती-माल्यवान नाच-गाना तो करने लगे, परंतु कामदेव के वशीभूत हुए दोनों ही अशुद्ध क्रीड़ाएं करने लगे. तब इंद्र ने इनके अशुद्ध नृत्य-गान को समझ लिया. भाव-भंगिमाओं को देखकर इंद्र ने इनके प्रेम को समझा और, इसमें अपना अपमान जान, इन्हें श्राप दे दिया कि तुम स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच का रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगो.
इंद्र के श्राप को सुनकर ये अत्यंत दु-खी हुए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बनकर दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे. रात-दिन में एक क्षण भी उन्हें निद्रा नहीं आती थी. इस स्थान पर अत्यंत भयंकर सर्दी भी थी. एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा, न मालूम हमने पूर्व जन्म में ऐसे कौन से पाप किये हैं, जिससे हमें इतनी कष्टदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई है? श्राप निवृत्ति के लिए दोनों ने करोड़ों यत्न किये, परंतु सब निष्फल रहे. अकस्मात् एक दिन उनका साक्षात्कार ब्रह्मा पुत्र देवर्षि नारद से हो गया. देवर्षि ने उनसे दुःख का कारण पूछा, तो पिशाच ने यथावत् वे संपूर्ण बातें कह सुनाई, जिनके कारण पिशाच योनि प्राप्त हुई थी. तब नारद जी ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का संपूर्ण विधि-विधान बतला कर उसे करने को कहा।
दैव योग से एक दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी आयी. इस दिन दोनों ने कुछ भी भोजन न किया और न कोई पाप कर्म किया. इस दिन, भागवत कीर्तन करते हुए, केवल फल-फूल खा कर ही उन्होंने दिन व्यतीत किया और महान दुःख के साथ पीपल वृक्ष के नीचे बैठ गए. यह रात्रि इन दोनों ने बड़ी कठिनता से व्यतीत की. सर्दी के कारण रात्रि में नींद न आयी और प्रभु का ध्यान और भजन करते रहे. दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही, भगवान केशव की कृपा से, इनकी पिशाच देह छूट गई और अत्यंत दिव्यातिदिव्य अलंकृत वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हो, पूर्व शरीर को प्राप्त हो, इंद्र लोक को प्रस्थान किया. आकाश में देवगण तथा गंधर्व इनकी स्तुति तथा पुष्प वर्षा करने लगे. इंद्र लोक जाकर इन दोनों ने इंद्र को प्रणाम किया.
इंद्र को भी इन्हें अपने प्रथम स्वरूप में देखकर महान आश्चर्य हुआ और इनसे पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया, सो संपूर्ण वृतांत बतलाओ. इस प्रकार पूछने पर माल्यवान बोले कि हे देवेंद्र! भगवान श्री कृष्ण के प्रभाव से तथा जया एकादशी के व्रत से पुण्य वृद्धि होने पर हमारी पिशाच देह छूटी है. इंद्र बोले, हे माल्यवान ! एकादशी व्रत करने से तथा भगवान श्री कृष्ण के प्रभाव से तुम लोग पिशाच की देह को त्याग कर पवित्र हो गये हो और हम लोगों के भी वंदनीय हो गए हैं, क्योंकि श्री कृष्ण भक्त हम दोनों के वंदना करने योग्य हैं. अतः आप धन्य है. अब तुम पुष्पवती के साथ जाकर स्वच्छंद विहार करो. हे धर्मराज युधिष्ठिर! इंद्र से ऐसा वरदान प्राप्त कर दोनों नागलोक में जाकर, रमणीय क्रीडाओं के आनंद विभोर हो, विहार करने लगे. इस जया एकादशी के व्रत से समस्त कुयोनियां छूट जाती है. जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है, उसने तो मानो सभी यज्ञ, तप, दानादि का फल प्राप्त कर लिया.
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