Monday, December 13, 2021
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Kashi Vishwanath Dham: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ, भगवान शिव यहां स्वयं हैं स्थापित


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Kashi Vishwanath Temple All you need to know

Highlights

  • काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।
  • दर्शन मात्र से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है

आज महादेव की नगरी काशी के लिए बहुत बड़ा दिन है। क्योंकि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी में भगवान विश्वनाथ के काशी धाम का लोकार्पण करने वाले हैं। पीएम मोदी बाबा विश्वनाथ धाम में पूजा-अर्चना करेंगे और उसके बाद भव्य, दिव्य और नव्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण होगा। बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लिए बहुत ही खास है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। काशी पुरातन समय से ही अध्यात्म का केंद्र रहा है।

शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान भोलेनाथ स्वयं विद्यमान रहते हैं। जिनके दर्शन मात्र से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ से जुड़ी पौराणिक कथाएं।

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हिंदू धर्म में सबसे पवित्र शहरों में से काशी माना जाता है। माना जाता है कि भगवान विश्वनाथ यहां ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में निवास करते हैं। 

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काशी विश्वनाथ मंदिर का पौराणिक कथा

12 ज्योतिर्लिंगों में से 7वां ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के पश्चिम घाट पर स्थित है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव और माता पार्वती का सबसे प्रिय स्थान में से एक माना जाता है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती से विवाह करने के बाद भगवान शिव कैलाश में रहते थे। लेकिन माता पार्वती अपने पिता के घर में ही रहती थी। ऐसे में जब माता पार्वती ने अपने साथ ले चलने का आग्रह किया तो उनकी बात मानकर भगवान शिव उन्हें काशी लेकर आ गए, जहां उन्हें विश्वनाथ या विश्ववेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड का शासक। 

काशी विश्वनाथ का काल भैरव मंदिर से खास संबंध

ऐसी मान्यता है कि यहां बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पूर्व महादेव के दर्शन से पहले भैरव जी के दर्शन करना जरूरी माना जाता है, इसके पीछे मान्यता है कि भैरव जी के दर्शन किए बगैर विश्वनाथ के दर्शन का लाभ नहीं प्राप्त होता। शास्त्रों में बाबा भैरव नाथ को लेकर एक पौराणिक कथा भी मौजूद है। 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवताओं ने ब्रह्मा देव और भगवान विष्णु  से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? ये सवाल सुनकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई। इसके बाद भगवान ब्रह्म, भगवान विष्णु के साथ सभी देवता कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान भोलेनाथ से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं?

देवताओं का ये सवाल सुनते ही तत्क्षण भगवान शिव के शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली जो नभ और पाताल की दिशा की ओर बढ़ी। इसके बाद महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा कि आप दोनों में जो इस ज्योति की अंतिम छोर पर सबसे पहले पहुंचेगा वही श्रेष्ठ कहलाएगा। भोलेशंकर की बात सुनते ही भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर पर पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय दोनों वापस आ गए। तब शिव जी ने पूछा कि क्या आप दोनों में से किसी को अंतिम छोर प्राप्त हुआ?  भोलेशंकर की बात का जवाब देते हुए भगवान विष्णु ने कहा कि यह ज्योति अनंत है और इसका कोई अंत नहीं। जबकि भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया।

भगवान ब्रह्मा ने कहा कि मैं इसके अंतिम छोर तक पहुंच गया था। उनकी बात सुनते ही भगवान शिव ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें और भगवान शिव के प्रति अपमान जनक शब्दों का इस्तेमाल करने लगे। उनके अपशब्द सुनते ही भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। 

काल भैरव ने ब्रह्मा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया। उस समय भगवान ब्रह्मा जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने उसी समय भगवान शिव जी से क्षमा प्रार्थना की। इसके बाद कैलाश पर्वत पर काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे और यह ज्योति द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ कहलाया।

 मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने भी काशी में ही तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। काशी नागरी भगवान भोलेनाथ को इतनी प्रिय है कि ऐसा माना जाता है कि शसावन के महीने में भोले बाबा और माता पार्वती काशी भ्रमण पर जरूर आते हैं। 





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