Sunday, March 20, 2022
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Holi 2022: होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ


होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ
– फोटो : google

होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ

हिंदू धर्म के अनुसार होली पर होलिका दहन का विशेष महत्व है

 इस वर्ष होलिका दहन पर भद्रा का साया पड़ रहा है ज्योतिषियों के अनुसार 17 मार्च 2022 को फागुन मास की पूर्णिमा तिथि है और गुरुवार गुरुवार यानी आज दोपहर 1:30 से यह तिथि शुरू होकर शुक्रवार को दोपहर 12:48 तक रहेगी। आज के दिन पूर्णिमा शुरू होने के साथी भद्रा भी है जो की अर्धरात्रि बाद रात 1:09 तक रहेगी।

शास्त्रों की माने तो मध्यरात्रि के बाद भद्रा के टल्ली से भद्रा के पुछ काल में होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार होलिका दहन भद्रा पुच्छ काल में होगा यानी रात्रि 9:02 से 10:14 तक भद्राकाल रहेगा। यानी कुल 72 मिनट का समय होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा आज होली का पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा तिथि में मनाया जाएगा। मान्यता अनुसार जब भद्रा पूछने होती है तो विजय की प्राप्ति एवं सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

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आइए जानते हैं भद्रा कौन है?

धार्मिक पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा सनी की बहन है। शनि की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के प्रमुख स्थान दिया। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्र आयोग का विशेष ध्यान फिर ध्यान रखा जाता है क्योंकि भद्रा काल में मंगल कार्य की शुरुआत या समाप्ति अशोक मानी जाती है। अतः भद्राकाल की उत्सुकता को मानकर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

आइए जानते हैं आखिर क्या होती है भद्रा? और क्यों इसे अशुभ माना जाता है?

हिंदी पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं यह हैं तिथि वार योग नक्षत्र और कर्ण में कर्ण एक महत्वपूर्ण अंग होता है यह तिथि का आधा भाग होता है करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं ।चर या गतिशील करण में बव,बालव,कौलव, तैतिल,गर,वाणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किंशतुघ्न धनी होते हैं। इन 11 कारणों में 7 वे करण  का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है।

Bhadra kal vichar पंचांग सुधि में भद्रा का खास महत्व होता है । यूं तो ‘भद्रा ‘का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण करने वाली ‘ लेकिन इसके विपरीत भद्रावठी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। भद्रा के प्रमुख 200 में यह बातें बताई गई हैं। जब भद्रा मुख में रहती है तो, कार्य का नाश होता है, कंठ में रहती है तो धन का नाश करती है। हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।

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Bhadra dosh in astrology  ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब मृत्यु लोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधा किया उनका नाश करने वाली मानी गई है।जब चंद्रमा कर्क सिंह कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा वृष्टि कर्ण का युद्ध होता है तब भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों यात्रा और उत्पादन अधिकारियों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सफल देने वाले माने गए हैं। इसके दोष निवारण के लिए बत्रा व्रत का विधान भी धर्म ग्रंथों में बताया गया है।

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