होलाष्टक का प्रारंभ 10 मार्च से, जिस का समापन 17 मार्च को होलिका दहन पर
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होलाष्टक
फागुन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक की अवधि होलाष्टक के नाम से जानी जाती है यह सब से नकारात्मक,ऋणात्मकता समय होता है । होलाष्टक यानी होली और आठ, होली की ये आठ तिथियां जिसमें शुभ ग्रह अपनी कमजोर अवस्था मे होते हैं। वही क्रूर ग्रह अपनी नकारात्मकता की प्रचंडता पर होती है । इसी कारण इन दिनों में कोई मांगलिक कार्य नही किया जाता हैं ।
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16 संस्कार वर्जित होते हैं।
कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाएगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
फागुन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर खुशी,सुख और प्रेम के देवता कामदेव ने भगवान शंकर के तप को भंग करने का प्रयास किया । जिस से कुपित होकर भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म कर दिया इसीलिए होली की अष्टमी तिथि से ही खुशी,प्रसन्नता और प्रेम का संचार सृष्टि में बंद हो जाता है और यह सृष्टि प्रेम विहीन हो जाती है। इसी कारण मांगलिक कार्य वर्जित मान्य होते है इन आठ दिनों मे।
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देवताओ की प्रार्थना और कामदेव की पत्नी की क्षमा याचना पर महादेव ने
पूर्णिमातिथि पर कामदेव को पुनर्जीवित किया और सृष्टि को जो प्रेम विहीन उत्साह विहीन थी |
उसमें नई ऊर्जा और प्रेम का संचार किया और पूर्णिमा से एक बार फिर मांगलिक कार्यो की शुरुवात रंगो के त्यौहार होली के रूप मे हुयी।
होलाष्टक मे नकारात्मकता के प्रवहा और ग्रहो के प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए गुरु मंत्र का जाप और भगवान शंकर का पूजन और जाप करना चाहिए और किसी मांगलिक कार्य या शुभ कार्य की शुरुवात नही करनी चाहिये।
ज्योतिषाचार्या
डा.स्वाति सक्सेना
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