इस वर्ष 17 या 18 मार्च कब है होलिका दहन
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इस वर्ष 17 या 18 मार्च कब है होलिका दहन
होलाष्टक आठ दिनों का अष्टक जिसमें सभी शुभ कार्य आठ दिनों के लिए रोक दिए जाए हैं. होलाष्टक का पर्व होली के रंगारंग त्योहार से जुड़ा है. यह होली के उत्सव से ठीक पहले आठ दिन की अवधि को दर्शाता है जिसमें शुभ एवं मांगलिक कार्यों को करने पर रोक लग जाती है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इस समय के दौरान सगाई,विवाह, गृह प्रवेश, कार्य का आरंभ, दुकान खोलना, नए वस्तुओं की खरीदारी इत्यादि को शुभ नही माना जाता है. होलाष्टक की अवधि भारत के उत्तरी भाग में बहुत प्रचलित रही है. इसी के साथ इस समय को लेकर विद्वानों के भी कई मत भी प्रचलित हैं. पंचांग अनुसार होलाष्टक का आरंभ शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक रहता है. होलाष्टक का अंतिम दिन, यानी फाल्गुन पूर्णिमा में होलिका दहन किया जाता है. होलाष्टक हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है.
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होलाष्टक समय को लेकर मतभेद
होलाष्टक 2022 10 मार्च गुरुवार को शुरू होकर 17 मार्च गुरुवार को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा लेकिन इस बार 18 मार्च तक भी इस अवधि के होने का प्रमाण बन रहा है 17 मार्च के दिन संपन्न होगा लेकिन होली के दिन भद्रा समय इस प्रकार होगा प्रदोष काल में होलिका दहन भद्रा के साथ ही रहेगा. भद्रा पूँछ का समय 21:06 से 22:16 तक होगा. भद्रा मुख का समय 22:16 से 24:13 (मार्च 18) तक होगा वैकल्पिक मुहूर्त के रुप में इस वर्ष 2022 को मध्य रात्रि के बाद सुबह 06:06 यानि 18 मार्च तक का समय भी मान्य रहने वाला है अत: इस वर्ष 17 मार्च और 18 मार्च के समय को होलिका दहन के लिए उपयुक्त बताया गया है. इसके अनुसार अगर मध्य रात्रि के बाद भी भद्रा प्रचलित हो तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा की जाती है और उसके पश्चात होलिका दहन किया जाता है. इस कारण से कुछ अनुसर यह 18 को भी संपन्न हो सकता है.
होलाष्टक का महत्व
होलाष्टक दो अलग-अलग शब्दों, ‘होली‘ और ‘अष्टक’ से बना एक शब्द है, जो प्रतिकूल समय माना जाता है. इसलिए इस अवधि के दौरान विवाह, बच्चे के नामकरण संस्कार और किसी भी अन्य शुभ समारोहों से बचा जाता है. कुछ समुदायों में लोग होलाष्टक अवधि के दौरान नया व्यावसायिक उद्यम शुरू करना भी पसंद नहीं करते हैं. यह इस तथ्य के कारण है कि होलाष्टक की अवधि के दौरान ग्रह जैसे सूर्य, चंद्रमा, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, राहु और शुक्र परिवर्तन से गुजरते हैं. होलाष्टक की अवधि तांत्रिकों के लिए बहुत अनुकूल मानी जाती है क्योंकि वे साधना के माध्यम से अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. होली का उत्सव होलाष्टक की शुरुआत के साथ शुरू होता है और फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन धुलेंडी पर समाप्त होता है.
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होलाष्टक पर क्या करें
होलाष्टक का दिन दान कार्य एवं साधना के लिए अच्छा माना गया है. इस समय पर किए गए दान कार्य जीवन में नकारात्मक प्रभावों को दूर करते हैं. दान देने के लिए आदर्श समय होता है. इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का उदारतापूर्वक दान करना चाहिए.
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