नई दिल्ली. कहते हैं- ‘जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं’. क्रिकेट में यह कहावत थोड़े बदले अंदाज में सामने आती है. इस खेल में उस खिलाड़ी को ज्यादा तवज्जो मिलती है, जो टीम को जीत दिलाए या उसका रुतबा बढ़ाए, भले ही उसके रन या विकेट कम हों. अब रुस्तमजी मोदी (Rusitomji Modi) या रूसी मोदी को ही लीजिए. भारत के इस खिलाड़ी ने यूं तो महज 10 टेस्ट मैच खेले, लेकिन इस छोटे से करियर में वे भारतीय क्रिकेट पर अमिट छाप छोड़ गए. रूसी मोदी (Happy Birthday Rusi Modi) 1924 में आज ही के दिन जन्मे थे. ऐसे में उन्हें याद करने का मौका तो बनता ही है.
रूसी मोदी (Rusi Modi) का जन्म 11 नवंबर 1924 को पारसी परिवार में हुआ. उन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत पारसीज टीम से की लेकिन जल्दी ही भारतीय टीम में भी जगह बना ली. मोदी ने 1946 में भारत के लिए पहला टेस्ट मैच खेला. उनका टेस्ट करियर 10 टेस्ट मैचों का रहा. उन्होंने इन मैचों में 46.00 की औसत से 736 रन बनाए, जिसमें 1 शतक शामिल है. लेकिन आंकड़े कभी भी पूरा सच नहीं बताते. जैसे कि मोदी के खेल के बारे में यह आंकड़े कहीं कमजोर लगते हैं.
रूसी मोदी का सबसे बेहतरीन खेल वेस्टइंडीज के खिलाफ (India vs West Indies) 1948-49 में सामने आया. उन्होंने इस साल वेस्टइंडीज के खिलाफ 5 मैचों की टेस्ट सीरीज में 560 रन बनाए. यह इस बात का सबूत है कि उन्होंने कैरेबियाई गेंदबाजों को नाकों चने चबवाए. वेस्टइंडीज की टीम शुरुआत से ही अपनी तेज गेंदबाजी के लिए मशहूर थी. मोदी भारत के पहले बल्लेबाज थे, जिनके सामने वेस्टइंडीज के ये गेंदबाज असहाय नजर आते थे.
रूसी मोदी ने 1949 में भारत को असंभव लगने वाली जीत दिला दी होती, अगर अंपायर ने जल्दबाजी ना की होती. वेस्टइंडीज ने इस मैच में भारत को 108 ओवर में 361 रन का लक्ष्य दिया था, जो उन दिनों असंभव जैसा ही था. भारत ने लक्ष्य का पीछा करते हुए 9 रन पर दो विकेट गंवा दिए. जब हार सामने थी, तब मोदी ने 86 रन की बेशकीमती पारी खेली. उनकी पारी की बदौलत भारत जीत की दहलीज पर आ खड़ा हुआ. जब भारत को जीत के लिए 6 रन चाहिए थे, तब मैच में डेढ़ मिनट बाकी थे, लेकिन अंपायर को लगा कि समय समाप्त हो गया है और उन्होंने बेल्स गिरा दीं. इस तरह भारत के हाथ से ऐसी जीत फिसल गई, जिस पर पीढ़ियां गर्व कर सकती थीं.
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रूसी मोदी का इंटरनेशनल करियर भले ही छोटा रहा, लेकिन उन्होंने रणजी ट्रॉफी में अनेक रिकॉर्ड बनाए. जैसे कि वे पहले बल्लेबाज थे, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी के एक सीजन (1944-45) में एक हजार से अधिक रन बनाए. उनका यह रिकॉर्ड 44 साल तक कायम रहा. भारत के इस लाडले क्रिकेटर का 1996 में 71 साल की उम्र में निधन हो गया.
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