जानिए ‘हिन्द की चादर’ गुरु तेग बहादुर से जुड़ी कुछ विशेष बाते
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जानिए ‘हिन्द की चादर’ गुरु तेग बहादुर से जुड़ी कुछ विशेष बाते
आज का दिन सिख समुदाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि सिख धर्म के 9वें गुरु तेग बहादुर का 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। इन्होंने संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। उनके बलिदान को बड़ी ही श्रद्धा से याद किया जाता है। आज हम आपको उनके 400वें प्रकाश पर्व पर उनसे जुड़ी कुछ बातें बताएंगे।
गुरु तेग बहादुर का जन्म वैशाख माह की पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हरगोबिंद सिंह के घर में हुआ था। इनके बचपन का नाम त्यागमल था। ये बचपन से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक थे। इनकी शिक्षा दीक्षा मीरी पीरी के मालिक गुरु पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्रछाया में हुई थी। इन्होंने इसी समय गुरुबाणी धर्म ग्रंथों के साथ साथ शस्त्र तथा घुड़ सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। यह इतने पराक्रमी थे कि इन्होंने मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले का सामना किया था और उसमे अपनी वीरता का परचम लहराया था। इनकी वीरता और पराक्रम से प्रभावित होकर इनके पिता ने इनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया था।
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
सिखों के आठवें गुरु गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु के बाद गुरु तेग बहादुर को गुरु बनाया गया था। इस प्रकार यह सिखों के 9वें गुरु बने। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में 15 रागों में 116 शबद (श्लोकों सहित) गुरु तेग बहादुर सिंह जी द्वारा रचित बाणी संकलित है। ये रणनीति और आचार नीती, शस्त्र और शास्त्र, संघर्ष और वैराग्य, लौकिक कर अलौकिक, राजनीति और कूटनीति, संग्रह और त्याग का ऐसा अद्भुत संगम थे कि उन्होंने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।
आज के समय में शीशगंज साहिब दिल्ली का मशहूर गुरुद्वारा जिसे रकाबगंज साहिब के नाम से जाना जाता है उसी स्थान पर इनकी हत्या और अंतिम विदाई हुई थी। विश्व इतिहास में गुरु तेग बहादुर साहब का अद्वितीय स्थान है। अपने त्याग और बलिदान के लिए वह सही अर्थों में ‘हिन्द की चादर’ कहलाए।
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गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व के दिन सुबह सुबह पंज प्यारे प्रभात फेरी निकालते है। इस दिन हर गुरुद्वारे में छोटे छोटे कार्यक्रम किये जा रहे है। आज के दिन गुरुमीत समागम में गुरु साहिब के इतिहास और शहादत के बारे में बताया जाता है कि कैसे उन्होंने औरंगजेब की लाखों यातनाओं के बाद भी गुरु जी ने इस्लाम धर्म कबूल नही किया था। जिसके कारण औरंगजेब ने आठ दिन की यातनाओं के बाद उनका शीश कटवा दिया था। उस स्थान को आज शीशगंज साहिब के नाम से जाना जाता है । इस दिन सिख समुदाय के लोग वहां पर माथा टेकने जाते है।
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