गुड़ी पड़वा 2022: हिंदू नव वर्ष का महत्व और पौराणिक तथ्य
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गुड़ी पड़वा 2022: हिंदू नव वर्ष का महत्व और पौराणिक तथ्य
हिंदू नव वर्ष तो बहुत ही प्राचीन काल से चलता आ रहा है लेकिन इससे 2057 ईसा पूर्व विश्व सम्राट विक्रमादित्य ने नए सिरे से स्थापित किया। विक्रम संवत से पूर्व 6676 ईस्वी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षी सी संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन सवंत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है। सप्तर्षी के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलयुग संवत का। कलयुग के प्रारंभ के साथ कलयुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी। इसके बाद विक्रम संवत की शुरुआत हुई।
इस विक्रम संवत को पहले भारतीय संवत का कैलेंडर कहा जाता था लेकिन बाद में इसे हिंदू संवत का कैलेंडर इस रूप में प्रचारित किया गया। हालांकि भारत का राष्ट्रीय संवत ‘शक संवत’ को माना जाता है जो कि भारत का है ही नहीं। इसी हिंदू नव वर्ष को ही हर प्रदेश में भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाड़ी, चेटीचंड ,चित्रैय,तिरूविजा आदि सभी की तिथि इस संवत्सर के आसपास की आती है। मूल रूप से इसे नव संवत्सर और विक्रम संवत कहा जाता है। तो आइए जानते हैं इसके महत्व और पौराणिक तथ्य।
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1. राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंदू पंचांग को आधार बनाकर भारतीय कैलेंडर विकसित किया था। इस कैलेंडर की शुरुआत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मानी जाती है।
2. इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पांच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र ,सावनऔर अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई। इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम है। इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरंभ हुआ।
3. जैसा ऊपर कहा गया है कि वर्ष के 5 प्रकार होते हैं। मेष ,वृषभ ,मिथुन ,कर्क आदि सौर वर्ष के मां है। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्र मास के चैत माह की शुरुआत भी हो जाती है। सूर्य क्या ब्राह्मण इस वक्त किसी अन्य राशि में हो सकता है।
4. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्र वर्ष के माह है। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैट मां से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बनना शुरू करता है तभी से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी गई है। सौर मास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दिनों का चंद्रमास सी माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्र मास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति ,विशाखा ,अनुराधा आदि कहा जाता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है इसमें 1 माह की अवधि पूरे 30 दिन की होती है।
5. नव संवत्सर के बारे में कई लोग नहीं जानते होंगे। नया वर्ष लगने पर नया संवत्सर भी प्रारंभ होता है। जैसे 12 माह होते हैं उसी तरह सा संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात 12 महीने का काल विशेष। सूर्य सिद्धांत अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 700 वर्षों में 20 20 20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्मा विशांति (1 -20), विष्णु विशांति (21 – 40), और शिव विशांति (41- 60) कहते हैं।
संवत्सर को वर्ष कहते हैं: प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है । कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है वर्तमान में परम आदि नामक संवत्सर प्रारंभ हुआ है उनके नाम इस प्रकार हैं प्रभाव, विभव ,शुक्ला ,प्रमोद ,प्रजापति ,अंगिरा, श्रीमुख ,भाव, युवा ,धाता ईश्वर, विक्रम , चित्रभानु, सुभानु ,तारण, पार्थिव, सर्वजीत विरोधी, विकृति, विजय, जय ,मन्मथ, दुर्मुख, विकारी, सर सुकृत, क्रोधी, विश्वासु, पराभव ,दबंग, तिलक आदि।
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पौराणिक तथ्य
1. ब्रह्मा पुराण अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी।
2. इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी मानी जाती है।
3. इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।
4. इसी दिन से नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है।
5. इसी दिन को भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी।
6. इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
7. ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरंभ माना जाता है, क्योंकि चैत मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इसी चैत्र मास को 9 वर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।
कैसे मनाए नव वर्ष: रात्रि के अंधकार में नव वर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नव वर्ष के ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर पुष्प, धूप ,दीप ,नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है। ब्राह्मण, कन्या ,गाय, कौवा और कुत्ते को भोजन कराया जाता है। फिर सभी एक दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। एक दूसरे को तिलक लगाते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। साथ में नए संकल्प भी लिए जाते हैं।