जानें ग़ाज़ियाबाद के दूधेश्वर नाथ मंदिर के बारे में, क्यों है इस मंदिर की इतनी मान्यता
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जानें ग़ाज़ियाबाद के दूधेश्वर नाथ मंदिर के बारे में, क्यों है इस मंदिर की इतनी मान्यता।
ग़ाज़ियाबाद में एक ऐसा मंदिर है जिसका संबंध रावण काल से है। ग़ाज़ियाबाद में स्थित इस शिव मंदिर की ऊनी अलग ही मान्यता और महत्ता है और हो भी क्यों न यह मंदिर अपने आप में विशेष महत्त्व रखता है और अपने साथ अनेकों ऐतिहासिक किस्से समेटे हुए हैं।
दिल्ली एनसीआर के ग़ाज़ियाबाद में एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। इसको सभी श्री दुधेश्वर नाथ मठ महादेव के नाम से जानते है। स्वयंभू (जो स्वयं प्रकट हुए )
श्री दूधेश्वर नाथ शिवलिंग का कलयुग में प्राकट्य सोमवार , कार्तिक शुक्ल ,वैकुन्ठी चतुर्दशी संवत् 1511 वि० तदनुसार 3 नवंबर ,1454 ई० को हुआ था। इस दिव्य लिंग की ही तरह कलियुग में इसके प्राकट्य की कथा भी बड़ी दिव्य है। अभी श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16th पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी है।
एक समय की बात है निकटवर्ती गाँव केला की गायों को चरवाहे चराने लेकर जाते थे। वह उन गायों को टीले पर चरने के लिए छोड़ देते थे वही पास में एक तालाब था गायें वहां पानी पिया करती थी। लेकिन जब गायें टीले पर एक विशेष स्थान और पहुँचती तो गायों के थनों से अपने आप दूध टपकने लगता था। इस बात पर कभी ग्वालों ने ध्यान नही दिया लेकिन ऐसा कब तक चलता क्योंकि जब गायें घर पहुँचती और उनका दूध निकाला जाता तो कुक्ज गायों का दूध कम निकलता या फिर कुछ गायों का दूध निकलता ही नही था।
सभी गोपालकों में इसकी चर्चा होने लगी कुछ ने कहा यह सब चरवाहे का काम है तो कुछ ने यह भी कहा कि वह ऐसा नही कर सकते क्योंकि यह चरवाहे कई पीढ़ियों से काम कर रहे है। लेकिन सवाल अभी भी जस का तस था कि तो फिर दूध कहा जा रहा है। एक दिन सभी ने ग्वालों से कहा कि तुम गायों का दूध निकाल लेते हो, तुम दूध की चोरी करते, तुम्हें शर्म नहीं आती। ग्वालों ने कहा हम ऐसा नही करते है तदोपरांत गोपालकों ने कहा यदि तुम ऐसा नहीं करते तो इसका कारण बताओं। अब भी सवाल ग्वालों पर ही था क्योंकि उन्हें कारण मालूम नही था।
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अगले दिन जब ग्वाले गायों को लेकर गये तो आज वह गायों को चरने छोड़ कर आराम से नही बैठे सभी ग्वाले सतर्क रहें कि ऐसे को कर रहा है कौन है जो हमे बदनाम करने चाहता है। कुछ समय बाद उन्होंने देखा कि गायें जब टीले के एक विशेष हिस्से पर पहुँचती है तो गायों के थानों से दूध स्वयं टपकने लगता है कुछ गायों के थनों से तो दूध की धार बंध जाती हैं। यह पूरा किस्सा ग्वालों ने आकर गांव वालों को सुनाया लेकिन गांव वालों ने इस बात पर विश्वास नही किया और ग्वालों से कहा तुम एक झूठ को छुपाने के लिए कोई मन घड़ंत कहानी सुना रहे है। ग्वालों के काफी समझाने ओर गांव वाले अगले दिन आने के लिए तैयार हुए।
रोज की भांति आज फिर ग्वालों ने गायों को टीले पर चरने छोड़ दिया। अब सभी को इंतजार था कि क्या होगा फिर वही घटना हुई उस विशेष स्थान पर गायों के पहुँचते ही उनके थन से दूध बहने लगा। तब गांव वालों को विश्वास हुआ और फिर गांव पहुँचकर पूरे गाँव के सामने ग्वालों को निर्दोष करार दिया गया।
इसके बाद गांव वालों ने उस स्थान की खुदाई का फैसला किया। वही दूसरी तरफ कोट नामक गाँव में उच्चकोटि के ,दसनामी जूना अखाड़े के एक जटिल सन्यासी सिद्ध महात्मा भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और आदेश दिया और महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने का आदेश दिया। प्रातः इधर गाँव से गाँव वाले लोग पहुँचे और दूसरी तरफ से महात्मा अपने शिष्यों के साथ इस पावन स्थल पर पहुँचे।
शीघ्र ही खुदाई का काम चालू हुआ और एक जलपरी और एक शिवलिंग दृष्टिगोचर हुऐ। गाँव वाले इस अद्भुत शिवकृपा से अभिभूत थे। इस दिव्य स्थान पर जल स्रोत भी होना चाहिए —ऐसा बुजुर्गों ने विचार किया। खुदाई करने पर पास ही एक अनोखा कुआं निकला। जिसका जल कभी गंगाजल जैसा ,कभी दूध जैसा सफ़ेद तो कभी मीठा होता था। यह कुआँ आज भी सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में विधमान है।
शिवाजी महाराज ने भी यहाँ हवन किया था। उनके द्वारा यह जमीन खुदवा के एक हवन कुंड बनवाया गया था जो आज भी यह मौजूद है। इसी हवन-कुंड के निकट वेद विद्यापीठ की स्थापना वर्तमान श्री महंत नारायण गिरी जी महाराज ने की है ,जिसमे देश के कोने-कोने से आये विद्यार्थी वेद का ज्ञान अर्जित कर रहें हैं।
कहा जाता है कि औरंगजेब के कारागार से निकल भागने के बाद छत्रपति शिवाजी यहाँ आये थे और यहाँ एकांत में हवन-पूजन व भगवान दूधेश्वर का अभिषेक करने के बाद ही मराठा सैनिक मुगलों के दांत खट्टे करने के लिये निकला करते थे। यह क्रम काफी लम्बे समय तक चला था। पण्डित गंगा भट्ट द्वारा राजतिलक किये जाने के उपरांत शिवाजी ने श्री दूधेश्वर नाथ महादेव की महिमा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र में एक गाँव बसाकर उसका नाम दूधेश्वर ग्राम रखा ,जो आज भी स्थित है। यह भी कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र प्रस्थान से पूर्व पूर्ण विधि-विधान से श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
जब ग़ाज़ियाबाद एक व्यापारी श्री धर्मोअल गर्ग जी ने मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया तो उनका नाम स्वत: ही इतिहास के पन्नो में अंकित हो गया क्योंकि लगभग चार सौ वर्ष पूर्व इस प्रख्यात मंदिर का जीर्णोद्धार वीर मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज ने कराया था | तब के बाद अब गाज़ियाबाद के प्रसिद्ध समाज सेवी व परम धार्मिक शिव चरण अनुरागी श्री धर्मपाल गर्ग जी ने अपने पूजनीय माता-पिता जी की याद में बने ट्रस्ट श्री आत्माराम नर्वदा देवी चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग श्री दूधेश्वर नाथ महादेव के मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार कराया है |
कहते है कि भगवान दूधेश्वर अपने जिस भक्त पर अति प्रसन्न होते हैं ,उसे स्वर्ण प्रचुर मात्रा में मिलता है। ऋषि विश्वश्रवा और रावण को भी तो दूधेश्वर की पूजा-अर्चना से ही सोने की लंका प्राप्त हुई थी। इतिहास गवाह है कि भगवान दूधेश्वर की कृपा और मठ के सिद्ध संत-महंतों के निर्मल आशीर्वाद से लाखों लोग कष्टों से मुक्ति पा चुके हैं। यह सिलसिला त्रेता युग से आज तक निरंतर जारी है।
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