द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक रोड स्वीपर प्रति दिन लगभग 12 लीटर डीजल प्रति घंटे की दर से 80 से 100 लीटर डीजल का उपयोग करके 20 से 42 किलोमीटर की दूरी तय करता है। सिन्हा कहते हैं कि इसका मतलब है कि एक मैकेनिकल रोड स्वीपर हर साल 120-150 टन कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण में जोड़ देता है। यह एक चिंता का विषय है। खासकर कि गर्मियों जब दिल्ली की हवा साल के अन्य समय की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर होती है, तब भी इसकी एयर क्वालिटी इंडेक्स रीडिंग 150 से अधिक होती है। यानि 50 के अधिकतम स्वीकार्य स्तर से तीन गुना अधिक।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2017 में दिल्ली सरकार को अपनी रिपोर्ट में सीएनजी या बिजली द्वारा संचालित विकल्पों की तलाश करने का निर्देश दिया था। TERI ने सिफारिश की थी कि मशीनों को सीएनजी या बिजली जैसे स्वच्छ ईंधन पर डबल शिफ्ट में चलाया जाए। यह देखते हुए कि दिल्ली में केवल एनडीएमसी ही अपनी मशीनें डबल शिफ्ट में चला रही थी। इसलिए वायु प्रदूषण को कम करने में वह अहम योगदान दे सकती है।
सिन्हा ने इस साल मार्च में Boschung से भारत के पहले इलेक्ट्रिक रोड स्वीपर आयात करने के लिए एनडीएमसी को अपना प्रस्ताव दिया। उन्हें अभी तक परिषद से आधिकारिक मंजूरी नहीं मिली है। इसमें देरी का कारण कोरोना महामारी रही। Boshcung की मशीनें पहले से ही स्विट्जरलैंड, जर्मनी, यूके और स्पेन में उपयोग में हैं। कवयिअत भारत में बॉशचुंग एस2.0 इलेक्ट्रिक रोड स्वीपर के लिए ओरिजनल इक्यूपमेंट मैन्यूफैक्चरर होगी।
Boschung S2.0 54.4kW/h बैटरी के साथ आती है जो एक बार चार्ज करने पर 10 घंटे तक काम कर सकती है। स्विस मशीनरी के आयात पर विचार करते समय भारत का तापमान चिंता का विषय था। सिन्हा ने कहा, “बैटरी दिल्ली की गर्मियों के लिए आदर्श होनी चाहिए, जहाँ तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर भी जा सकता है। ऐसे मामलों में मशीन के अंदर की बैटरी का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। भारत में जो मॉडल आयात किया जा रहा है उसे 55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। निकेल कोबाल्ट एल्युमिनियम (एनसीए) किस्म के लिथियम आयरन का इस्तेमाल बैटरियों में किया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे टेस्ला अपनी बैटरियों में इस्तेमाल करती है।”
“जहां तक बैटरी के डिस्पोजल का संबंध है, हमारे पास बैटरियों में उपयोग किए जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों की रीसाइकलिंग के लिए स्विट्जरलैंड सरकार का रेगुलेशन प्लान है। भारत में भी यही नियम लागू होंगे। भारत सरकार ने अभी तक इलेक्ट्रिक रोड स्वीपरों के बैटरी डिस्पोजल के संबंध में किसी दिशा-निर्देश का उल्लेख नहीं किया है। मगर यह लगभग 8-12 वर्षों के बाद ही चिंता का विषय होगा क्योंकि हम बैटरी के संबंध में 8000 चार्जिंग साइकिल का वादा करते हैं।”
भारत में लागत और तैनाती
Boschung S2.0 इलेक्ट्रिक रोड स्वीपर वर्तमान में सरकारी eMarketplace वेबसाइट पर 3.6 करोड़ रुपये की कीमत पर लिस्ट की गई है। सिन्हा ने कहा, “हम प्रतिस्पर्धियों की तुलना में बहुत महंगे हैं।” “लेकिन साथ ही इलेक्ट्रिक रोड स्वीपर एक ही शिफ्ट में कम से कम 50 किलोमीटर की सफाई कर सकेगा। इस प्रकार सात से आठ वर्षों के समय में ईंधन की लागत की बचत और वायु प्रदूषण में कमी को देखते हुए Boschung का रोड स्वीपर अधिक किफायती विकल्प साबित होगा।
इन मशीनों की तैनाती के पहले चरण की योजना बेंगलुरु, नई दिल्ली, इंदौर, भोपाल, लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बनाई गई है। सिन्हा ने कहा, “ये वे क्षेत्र हैं जिन पर हम विचार कर रहे हैं और इन सभी स्थानों पर अधिकारियों ने इस विचार पर सकारात्मक प्रारंभिक प्रतिक्रिया दी थी। किंतु मौजूदा परिस्थितियों के कारण आमने-सामने की बैठक अभी लंबित है।”
कवयिअत इंडिया की योजना अंततः भारत में हवाई अड्डों, रेलवे, अस्पतालों और अन्य प्रमुख संस्थानों में इलेक्ट्रिक रोड स्वीपर को तैनात करने की है। भारत में बॉशचुंग की बैटरी और मशीनरी का निर्माण और उत्पादन शुरू करने की भी योजना है। “एक बार जब हमारी मशीनें भारत में बिकना शुरू हो जाएंगी तो हम सौर पैनलों द्वारा सपोर्टेड चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की सोचेंगे मगर यह योजना का अगला चरण है।”