Blindness Awareness Week : आईएपीबी यानी इंटरनेशनल एजेंसी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस विजन (International Agency for the Prevention of Blindness) एटलस के अनुसार, दुनियाभर में लगभग 4.3 करोड़ लोग ब्लाइंडनेस (Blindness) से पीड़ित हैं, जबकि 29.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनमें दृष्टि यानी विजन (Vision) संबंधी मध्यम या गंभीर समस्याएं हैं. अगर हम भारत की बात करें तो यहां दृष्टि संबंधी लगभग 20 लाख मामले हर साल आते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि इनमें से 73 प्रतिशत ऐसे मामले हैं, जिन्हें रोका जा सकता है. इसी की जागरूकता को लेकर भारत सरकार द्वारा हर साल 1 से 7 अप्रैल के बीच ब्लाइंडनेस अवेयरनेस वीक (Blindness Awareness Week) मनाया जाता है.
दैनिक भास्कर अखबार में छपी न्यूज रिपोर्ट में अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी (American Academy of Ophthalmology) के हवाले से आंखों की रोशनी को छीनने वाले तीन बड़े कारणों के बारे में विस्तार से बताया है. आप भी जानिए क्या है ये कारण और कैसे ये हमारी आंखों की रोशनी खत्म कर देते हैं.
मोतियाबिंद (Cataracts)
दुनिया में ब्लाइंडनेस (Blindness) यानी दृष्टिहीनता का सबसे बड़ा कारण मोतियाबिंद है. दरअसल, आंख का लेंस ही रोशनी या चित्र यानी पिक्चर्स को रेटिना पर फोकस करने में मदद करता है. जो बाद में नर्व (Nerve) के जरिए से ब्रेन तक पहुंचती है. और हमें चीजें दिखाने लगती है. मोतियाबिंद में ये लेंस प्रभावित होता है, जिससे चीजें धुंधली दिखाई देती हैं. देश में 62.6 % ब्लाइंडनेस की वजह मोतियाबिंद है. ये उम्र बढ़ने, डायबिटीज, शराब के अधिक सेवन, सूरज की ज्यादा रोशनी, हाई बीपी, मोटापा और स्मोकिंग के कारण भी हो सकता है. बैलेंस रूटीन ही इससे बचाव का सबसे बड़ा उपाय है.
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ग्लूकोमा (Glaucoma)
ब्लाइंडनेस का ये दूसरा सबसे बड़ा कारण है. खास बात ये हैं कि इसके लक्षण दिखते नहीं हैं. आंखों में पाई जाने वाली ऑप्टिक नर्व (optic nerve) ही सूचनाएं और चित्र ब्रेन तक पहुंचाती हैं. ग्लूकोमा या काला मोतियाबिंद में इसी ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है. जिसके कारण इससे निकलने वाला तरल पदार्थ बंद हो जाता है. चिंता की बात ये है कि शुरुआत में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं और बाद में समस्या गंभीर होने पर आंखों और सिर में दर्द, धुंधलापन, जी मिचलाना और रोशनी के चारों और रंगीन छल्ले दिखना जैसी शिकायत होती है. इसके कारण गई आंखों की रोशनी को दोबारा नहीं पाया जा सकता. इसलिए समय समय पर आंखों की जांच इसका प्रभावी उपाय है.
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वेट-एएमडी (Wet-amd)
पढ़ते या टीवी टीवी देखते वक्त जब आपको मध्य में डार्क स्पॉट दिखाई दे तो सावधान हो जाएं. इसे कोरॉइडल नियोवैस्कुलर मैकुलर डिजनरेशन (वेट-एएमडी) कहते हैं. इसका अर्थ है कि रेटिना के नीचे एक असामान्य रक्त वाहिका यानी ब्लड वेसल विकसित हो रही है, जो रिसाव कर सकती है. इससे रोशनी जा सकती है.
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