तेलंगाना का श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर
– फोटो : google
ऐसा मंदिर जिसके मुख्य द्वार में जड़ा है 125 किलो सोना
तेलंगाना का श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर अपने आप में एक ऐतिहासिक मंदिर बन गया है। इस मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य वर्ष 2016 में आरंभ हुआ था जो कि वर्ष 2022 में पूर्ण हुआ है। इस मंदिर के पुनर्निर्माण में 1800 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इस मंदिर का परिसर 14.5 एकड़ में फैला हुआ है।
मंदिर के पुनर्निर्माण कार्य में सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है इसके स्थान पर 2,50,000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है। जिसे विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के प्रकाशम से लाया गया था। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर उकेरी गई नक्काशी अपने आप में देखने योग्य है। इसके प्रवेशद्वार पीतल से बनाए गए हैं जिस पर सोना चढ़ाया गया है। मंदिर के गोपुरम यानी की विशिष्ट द्वार पर 125 किलोग्राम सोना जड़ा गया है। इन सभी बातों के चलते यह मंदिर अपने आप में ऐतिहासिक मंदिरों में शामिल हो चुका है। इस मंदिर के पुनर्निर्माण के उपयोग में लाया गया सोना केसीआर समेत कई बड़े मंत्रियों द्वारा दान किया था। सीएम केसीआर ने खुद सवा किलो सोना अपनी और अपने परिवार की ओर से दान किया था।
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जिसप्रकार से यह मंदिर भव्य बनाया गया है उसी प्रकार से मंदिर को भक्तों के लिए फिर से खोले जाने के लिए अनुष्ठान और यज्ञ भी भव्य रूप से हुआ था। मंदिर में महासुदर्शन यज्ञ किया गया था जिसमे 100 एकड़ की यह वाटिका बनाई गई थी उसमें 1048 यज्ञकुंड थे। जिसमे हजारों पंडितो में अपने सहायकों के साथ अनुष्ठान किया था।
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण प्रह्लाद चित्र है जिसका निर्माण सोने से किया गया है। इस मंदिर में भक्त प्रह्लाद की पूरी कहानी को मूर्तिकला के तहत दर्शाया गया है। इस मंदिर में हिरण्यकश्यप को मारने के लिए स्तंभ को तोड़ते हुए भगवान नृसिंह की एक मूर्ति भी देखने को मीलती है। साथ ही इसमें भगवान विष्णु को इसी अवतार मे राक्षस हिरण्यकश्यप की छाती को चीरते हुए देखे जा सकते हैं। इसी के साथ मंदिर में भक्त हनुमानजी, नरसिम्हा स्वामी और यदा महर्षि की मूर्तियां भी है। इन सभी ने इस मंदिर में तपस्या की थी।
मंदिर का लोकार्पण 28 मार्च 2022 को तेलंगाना के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था। यह मंदिर तेलंगाना सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था। मंदिर का डिज़ाइन फ़िल्म सेट डिज़ाइनर आनंद साई ने तैयार किया है।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान नृसिंह तीन रूपों में विराजित हैं। साथ में माता लक्ष्मी भी इस मंदिर में विराजती हैं। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। स्कंद पुराण में कथा मीलती है कि महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यहाँ पर तपस्या की थी उनके तप से भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह इस मंदिर में ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह तीनों ही रूप में विराजित हुए वे है। यह मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें ध्यानस्थ पौराणिक भगवान नृसिंह की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में 12 फिट ऊंची और 30 फिट लंबी गुफा है जिसमें भगवान नृसिंह की तीनों प्रतिमाएं और साथ में माता लक्ष्मी मौजूद है।
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