Amalaki Ekadashi 2022 : हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया. आमलकी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु की अराधना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन विष्णु भगवान की पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है.
आमलकी एकादशी कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 24 या 25 एकादशी व्रत आते हैं.आमलकी एकादशी होली के त्योहार के पहले आती है. इस साल 14 मार्च 2022 को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
आमलकी एकादशी पर आंवले का महत्व
यह व्रत आंवले के महत्व को भी बताता है. शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशकी को दिन आंवले का उपयोग करने से भगवान श्री हरि विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु ने ही जन्म दिया था. इसलिए इस वृक्ष के हर एक भाग में ईश्वर का स्थान माना गया है. ये भी कहा जाता है कि आवंले के वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता होता है. इस कारण आमलकी एकादशी के दिन आवंले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है.
आमलकी एकादशी व्रत का महत्व
आमलकी एकादशी के दिन आवंले का उबटन लगाना चाहिए और आवंले के जल से ही स्नान करना चाहिए. इतना ही नहीं इस दिन आवंले को पूजने, दान करने और खाने की भी सलाह दी जाती है. मान्यता है कि समस्त यज्ञों के बराबर फलदायी आमलकी एकादशी पर विधि –विधान और सच्चे हृद्य से व्रत करने से भक्त को मोक्ष प्राप्ति होती है.
14 मार्च को रखा जाएगा व्रत
एकादशी व्रत को सदैव उदया तिथी में रखना चाहिए. पंचांग के अनुसार 13 मार्च की सुबह को 10 बजकर 24 मिनट से एकादशी की तिथि प्रारंभ होगी. लेकिन आमलकी एकादशी का व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा. एकादशी की तिथि का समापन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 8 मिनट पर होगा. इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी. 15 मार्च को इस व्रत का पारण किया जाएगा.
द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर यानी व्रत के अगले दिन किया जाता है. लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अत्यंत आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो भी एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए. ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी न करें. हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहा जाता है.व्रत का पारण करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए.
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