नई दिल्ली. हुनर को अगर सही से संभाला ना जाए, तो कई बार वही किसी खिलाड़ी के करियर पर भारी पड़ जाता है. ऐसा ही कुछ भारतीय क्रिकेट के दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) के जिगरी यार विनोद कांबली (Vinod Kambli) के साथ हुआ. उन्होंने महज 21 साल की उम्र में अपने पहले 7 टेस्ट में 2 दोहरे शतक और 2 शतक ठोके थे. यह आंकड़े बतौर बल्लेबाज कांबली की काबिलियत साबित करने के लिए काफी हैं. इसके बावजूद 2 साल में ही उनका टेस्ट करियर खत्म हो गया. इसकी एक वजह उनका फॉर्म और बाकी उनका बिगड़ैल स्वभाव और अनुशासनहीनता.
आज भारतीय क्रिकेट के सबसे टैलेंटेड खिलाड़ियों में शुमार रहे कांबली का 50वां जन्मदिन है. वो आज ही के दिन यानी 18 जनवरी 1972 को बॉम्बे (अब मुंबई) के इंदिरानगर में पैदा हुए थे.
विनोद कांबली (Vinod Kambli) का बचपन तंगहाली में ही गुजरा था. पिता गणपत कांबली मैकेनिक हुआ करते थे और बहुत मुश्किल से 7 लोगों के परिवार को पाल रहे थे. इतनी तंगहाली और अभावों के बावजूद उन्होंने कांबली को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका. क्योंकि वो खुद एक क्रिकेटर रहे थे और मुंबई में क्लब क्रिकेट खेल चुके थे. यही वजह रही कि कांबली ने कम उम्र में ही अपनी प्रतिभा के दम पर मुंबई क्रिकेट में अपनी पहचान बनाना शुरू कर दी थी. स्कूल क्रिकेट के दौरान ही उनकी पहचान सचिन तेंदुलकर से हुई और फिर यह दोस्ती में बदल गई और क्रिकेट मैदान पर गेंदबाजों के लिए काल बनी. कांबली ने मुंबई की कांगा लीग में सचिन के साथ ही डेब्यू किया था.
सचिन के साथ स्कूल क्रिकेट में रिकॉर्ड साझेदारी
इसी दौरान कांबली ने सचिन के साथ मिलकर स्कूल क्रिकेट में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना डाला. वो तब 17 और सचिन 16 बरस के थे. दोनों ने अपने शारदाश्रम स्कूल की तरफ से खेलते हुए सेंट जेवियर के खिलाफ तीसरे विकेट के लिए 664 रन की साझेदारी की. इस दौरान कांबली ने नाबाद रहते हुए 349 रन बनाए थे. यह पार्टनरशिप तभी टूटी जब कोच रमाकांत आचरेकर ने पारी घोषित करने का फैसला कर लिया.
बल्ले से धमाल मचाने के बाद कांबली ने इस मैच में गेंद से भी कमाल किया था. उन्होंने सेंट जेवियर्स की पहली पारी में 6 विकेट भी झटके थे. इस रिकॉर्ड साझेदारी के बाद दोनों के नाम चर्चा में आए. इसके बाद तेंदुलकर ने 1988 में जबकि कांबली को एक साल बाद 1989 में रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया.
कांबली ने पहले 4 टेस्ट में 2 दोहरे शतक ठोके
कांबली नेचुरल स्ट्रोक प्लेयर थे. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने रणजी ट्रॉफी की अपनी पहली ही गेंद पर छक्का जड़ दिया था. दूसरी तरफ, सचिन भी इसी अंदाज में खेल रहे थे. उन्हें 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट डेब्यू का मौका मिला. तब उनकी उम्र 16 बरस थी. लेकिन कांबली को पहला टेस्ट खेलने के लिए 1993 तक का इंतजार करना पड़ा. लेकिन यह अच्छा रहा. क्योंकि उनकी शुरुआत धमाकेदार रही.
उन्होंने पहले 7 टेस्ट में ही 2 दोहरे शतक और इतने ही शतक लगाए. स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ उनका फुटवर्क कमाल का था. इसका नमूना उन्होंने कई बार दिखाया. एक बार कांबली ने शेन वॉर्न के एक ओवर में 22 रन ठोक डाले थे. हालांकि, शॉर्ट गेंद उनकी कमजोरी रही और जल्द ही गेंदबाजों ने उनके खिलाफ इसे अपना हथियार बना लिया.
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2 साल में ही टेस्ट करियर खत्म
इतनी शानदार शुरुआत के बावजूद अनुशासनहीनता और बल्ले के हैंडल की चौड़ाई को लेकर जुनून के कारण कांबली की परेशानी बढ़ती गई. वो एक वक्त अपने बल्ले पर 9 ग्रिप लगाकर खेलते थे. कांबली के बारे में कहा जाता है कि अचानक मिली सफलता से उन्हें जो स्टारडम मिला उसे वह संभाल नहीं पाए. उनकी खराब आदतों और बुरे बर्ताव ने स्थिति को और बिगाड़ दिया. उन्होंने वनडे टीम में भी 9 बार वापसी की. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और 2 साल में ही वो उनका टेस्ट करियर अर्श से फर्श पर आ गया. उन्होंने 1995 में अपना आखिरी टेस्ट खेला. अक्टूबर 2000 के बाद उन्हें भारतीय वनडे टीम में नहीं चुना गया और 2009 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया. इसके 2 साल बाद कांबली ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट भी छोड़ दिया.
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