नई दिल्ली. हरभजन सिंह ने क्रिकेट को अलविदा (Harbhajan Singh retirement) कह दिया है. जैसे ही यह खबर आई, आंखों के सामने कोलकाता टेस्ट के ऐतिहासिक दृश्य सामने आ गए. इतिहास का एकमात्र टेस्ट मैच, जो भारत फॉलोऑन खेलकर भी जीता है. पहली पारी में 274 रन पर पिछड़ चुकी भारतीय टीम (Team India) की मैच में वापसी तो वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने कराई. लेकिन वह हरभजन सिंह (Harbhajan Singh) ही थे, जिन्होंने भारत को जीत दिलाई. हरभजन ने इस मैच में हैट्रिक समेत 13 विकेट लिए और स्टीव वॉ की ऑस्ट्रेलियाई टीम का विजयरथ कोलकाता में रोक दिया.
ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह (Harbhajan Singh) ने भारत के लिए 367 मैच खेले. उन्होंने इन मैचों में 711 विकेट लिए और 3569 रन भी बनाए. इंटरनेशनल मैच के ये आंकड़े शानदार तो हैं, लेकिन शायद ही हरभजन का खेल पर असर बताते हों. 17 साल के इस क्रिकेटर ने अपने दूसरे ही टेस्ट मैच में 5 विकेट लिए और संदेश दिया कि वे लंबी रेस के खिलाड़ी हैं. हरभजन ने अपने लंबे करियर में भारतीय टीम (Team India) को कई मैच अकेलेदम जिताए. लेकिन इससे भी ज्यादा उन्हें जिंदादिली और कभी दबाव में ना आने के लिए याद किया जाता है. चाहे हाथ में गेंद हो या बैट, इस खिलाड़ी ने कभी हार नहीं मानी. शायद यही कारण है कि पुछल्ले बल्लेबाज होने के बावजूद उनके खाते में 2 टेस्ट शतक तक दर्ज हैं.
हरभजन सिंह के 1998 में आने के बाद ही अनिल कुंबले (Anil Kumble) को वह जोड़ीदार मिला, जिसे शायद ना सिर्फ ‘जंबो’, बल्कि पूरी भारतीय टीम को इंतजार था. कुंबले-हरभजन की जोड़ी 54 टेस्ट साथ खेली और इनमें 501 विकेट झटके. यह जोड़ी ज्यादातर मैच सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) की कप्तानी में खेली. यह वो दौर था, जब भारतीय टीम स्पिन तिकड़ी को छोड़ जोड़ी पर भरोसा करना सीख रही थी. गांगुली को भज्जी पर ज्यादा ही भरोसा था. तभी तो कई बार भारतीय टीम जब विदेशी पिचों पर एक स्पिनर के साथ उतरी तो हरभजन तो प्लेइंग XI में थे, लेकिन कुंबले बाहर रह गए. कह सकते हैं कि हरभजन सिंह देश के एकमात्र स्पिनर हैं, जिन्होंने कुंबले तक को प्लेइंग XI से बाहर करा दिया.
41 साल के हरभजन सिंह के संन्यास पर अनिल कुंबले के बाहर होने का जिक्र उन्हें कमतर साबित करने के लिए नहीं है. टेस्ट मैचों में कुंबले से बड़ा मैचविनर भारत में कभी नहीं हुआ. जाहिर है हरभजन सिंह भी नहीं. लेकिन एक बात जो दोनों को एक बराबरी पर लाती है वह है लड़ाकापन. कुंबले पर फिर कभी. जहां तक हरभजन सिंह की बात है तो यह खिलाड़ी देश के उन चुनिंदा गेंदबाजों से हैं, जो क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में फिट रहे.
हरभजन सिंह भारत के उन गिनेचुने खिलाड़ियों में से एक हैं, जिनके नाम दो विश्व कप जीतने की उपलब्धि है. हरभजन सिंह 2007 में टी20 विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे. जब टीम इंडिया 2011 में विश्व कप जीती तब भी हरभजन साथ थे. जब टीम इंडिया ने टेस्ट रैंकिंग में नंबर-1 का रुतबा हासिल किया, तब भी वे टीम का अभिन्न हिस्सा थे. भज्जी यहीं नहीं रुकते और जब मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपरकिंग्स की टीमें आईपीएल जीतती हैं तो भी वे विजेता खिलाड़ियों के साथ खड़े मिलते हैं.
हरभजन सिंह के करियर में कामयाबी के साथ एक और चीज भरपूर मिलती है और वह है कंट्रोवर्सी. कई बार वे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाने के चलते विवादों में आते हैं, तो कई बार अपनी बात को सही ढंग से व्यक्त ना कर पाने के लिए. ऑस्ट्रेलिया में एंड्र्यू सायमंड्स के साथ ‘मंकीगेट’ विवाद भी इसीलिए हुआ क्योंकि उन्होंने ऐसा कुछ कह दिया था जिसका मतलब कुछ और निकाल लिया गया था. लेकिन कई बार वे खेलभावना की हद लांघते भी मिलते हैं. आईपीएल में श्रीसंथ को उन्होंने थप्पड़ जड़ा और इसकी बदौलत बैन भी हुए. यह ऐसी घटना थी, जो हरभजन के करियर में कलंक के तौर पर दर्ज है.
लेकिन आज हरभजन सिंह संन्यास ले चुके हैं और जब हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो पाते हैं कि इस खिलाड़ी ने हमें बार-बार गर्व करने के पल दिए हैं. खबरें हैं कि वे क्रिकेट छोड़कर राजनीति की पिच पर बैटिंग करने वाले हैं. शुभकामनाएं टर्बनेटर!
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