Friday, April 1, 2022
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स्किन एलर्जी की जांच और इलाज का तरीका हुआ सरल- स्टडी


Painless and Reliable Allergy Test: स्किन की एलर्जी (Skin allergy) एक सर्वव्यापी रोग (ubiquitous disease) है. इसकी जांच और इलाज की रणनीति, दोनों ही कठिन होती हैं. ऐसे में स्विट्ज़रलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न (University of Bern) के वैज्ञानिकों ने अपनी नई स्टडी में स्किन की एलर्जी की पहचान का एक बहुत ही सरल तरीका खोजा है. ये न सिर्फ सटीक परिणाम देता है, बल्कि उससे इलाज की सफलता के कारगर होने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. त्वचा पर एलर्जी के मामलों में परेशानी ये भी है कि उसके प्रकार के आधार पर थेरेपी की सफलता की संभावना स्पष्ट नहीं होती है. इसके साथ ही जांच में समय ज्यादा लगता है और वह परेशानी भरी भी होती है. दुनियाभर में करीब एक-तिहाई आबादी एक या उससे अधिक एलर्जी से पीड़ित है और ये दिक्कत हर साल बढ़ती जा रही है. इनमें से ज्यादातर एलर्जी तात्कालिक होती हैं. उदाहरण के तौर पर एलर्जिक रिनिथिक (allergic rhinith) जिसमें बुखार, सर्दी, जुकाम, खांसी, नाक बहना, आंखों में खुजली जैसे लक्षण होते हैं, फूड एलर्जी, कीटाणुओं के विष, पराग कण, घास या घरेलू धूल आदि प्रमुख हैं.

गंभीर मामलों में एलर्जी का इलाज लक्षण नियंत्रित करते हुए इम्यूनोथेरेपी के जरिए किया जाता है. इसमें इंजेक्शन के जरिए रोगियों की त्वचा में एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों की संद्रता (concentration) पांच या इससे ज्यादा साल तक बढ़ाई जाती है, ताकि रोगी उन तत्वों के प्रति असंवेदनशील हो जाएं. लेकिन इम्यूनोथेरेपी हमेशा सफल नहीं होती है.

इस समय ऐसा कोई तरीका भी नहीं है, जिससे इलाज खत्म होने से पहले उसकी सफलता का पता लगाया जा सके लेकिन नई स्टडी ने एलर्जी की जांच को बहुत ही सरल कर दिया और साथ ही इसके जरिए इम्यूनोथेरेपी की सफलता का विश्वसनीय पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी (Journal of Allergy and Clinical Immunology)’ में प्रकाशित किया गया है.

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टाइप1 एलर्जी तब होती है, जब शरीर एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों यानी एलर्जेंस (allergens) से प्रतिक्रिया कर इम्युनोग्लोबुलिन ई (immunoglobulin E) यानी आईजीई (IgE) पैदा करता है. आईजीई एंटीबॉडी शरीर में विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं (specialized immune cells) की सतह पर आईजीई रिसेप्टर से बंधे होते हैं, जिन्हें मास्ट सेल (mast cell) कहा जाता है. उसी एलर्जेंस के संपर्क में आने से मास्ट सेल्स एक्टिव हो जाते हैं और सूजन या जलन वाले कारक हिस्टामाइन या ल्यूकोट्रिएन्स पैदा करते हैं, जो एलर्जी के लक्षण के लिए जिम्मेदार होता है.

स्टडी में क्या निकला
अलेक्जेंडर इगेल (Alexander Eggel) और थॉमस काउफमैन (Thomas Kaufmann) के नेतृत्व में रिसर्चर्स ने एलर्जी की जांच का नया तरीका विकसित करने के लिए मॉलीक्यूलर बायोलॉजी तकनीक की मदद से एक नया इन विट्रो कल्चर तैयार किया, जो कुछ ही दिनों के भीतर वांछित संख्या में मेच्योर मास्ट सेल्स पैदा कर सकता है. इन मास्ट सेल्स में उनकी सतह पर आईजीई रिसेप्टर होते हैं और एलर्जेंस के संपर्क में आने पर मानव शरीर के मास्ट सेल्स के जैसा व्यवहार करते हैं.

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जांच के दौरान इन मास्ट सेल्स को एलर्जी वाले व्यक्ति के ब्लड सीरम के संपर्क में लाया जाता है. उससे सीरम के आईजीई एंटीबॉडी उन सेल्स से चिपक जाते हैं और जिन एलर्जेंस की जांच की जानी होती है, उन्हें उत्प्रेरित (स्टिम्यलेट) कर देता है. इस मौके पर एक्टिव कोशिकाओं की फ्लो साइटोमेट्री के जरिए आसनी से गिनती की जा सकती है. उन्होंने बताया कि हम तो ये देखकर हैरान रह गए कि हमारे 100 प्रतिशत मास्ट सेल्स को एक्टिव किया जा सकता है. हमारी जानकारी में अभी ऐसी कोई सेल लाइन नहीं है.

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