नियम
1:
दाल
को
पकाने
से
पहले
भिगोकर
रखें
रुजुता
दाल
को
पकाने
से
पहले
भिगोने
और
अंकुरित
करने
की
सलाह
देती
है।
दालें,
प्रोटीन,
विटामिन
और
खनिजों
जैसे
पोषक
तत्वों
से
भरपूर
होने
के
अलावा,
एंटी-पोषक
तत्व
भी
होते
हैं
जो
अक्सर
पोषक
तत्वों
की
अच्छाई
के
रास्ते
में
आते
हैं।
यह
बाद
में
गैस,
सूजन
और
अपच
का
कारण
बनता
है।
दालों
को
पकाने
से
पहले
भिगोने
और
अंकुरित
करने
से
पोषक
तत्वों
में
कमी
और
दालों
और
फलियों
के
प्रोटीन
और
सूक्ष्म
पोषक
तत्वों
के
प्रभाव
को
बढ़ाने
में
मदद
मिलती
है।
जिससे
पाचनशक्ति
को
बढ़ावा
मिलता
है।
नियम
2:
दालों
को
सही
अनुपात
में
खाएं
दाल
को
सही
अनुपात
में
खाना
बेहद
जरूरी
है।
कई
लोग
ज्यादा
प्रोटीन
के
चक्कर
में
दाल
का
ज्यादा
सेवन
करते
है
जो
सेहत
के
लिए
खास
फायदेमंद
नहीं
हैं।
जब
आप
दाल
को
चावल
के
साथ
खाएं
तो,
इसका
अनुपात
1:
3
होना
चाहिए।
वहीं,
जब
इसे
रोटी
के
साथ
सर्व
किया
जाता
है
तो
इसका
अनुपात
1:
2
रखना
चाहिए।
इसके
पीछे
विशेषज्ञ
का
ये
तर्क
है
कि
दालों
और
फलियों
में
मेथियोनीन
नामक
एमिनो
एसिड
की
कमी
होती
है
और
अनाज
में
लाइसिन
की
कमी
होती
है।
लाइसिन
दालों
में
बहुतायत
से
पाया
जाता
है,
लेकिन
मेथिओनिन
जैसे
अन्य
अमीनो
एसिड
के
बिना
यह
पूरी
तरह
से
अपने
कार्यों
को
पूरा
नहीं
कर
सकता
है।
यह
इसमें
एक
भूमिका
निभाता
है
–
एंटीएजिंग
-समय
से
पहले
बालों
को
सफेद
होने
से
रोकना
बोन
मास
–
इसे
संरक्षित
करता
है,
इसे
मजबूत
करता
है
इम्यूनिटी
–
शरीर
में
एंटीबॉडी
बनाने
में
मदद
करता
है
कई
सारी
दालों
को
खाएं
रुजुता
दिवेकर
ने
कैप्शन
में
बताया
है
कि
भारत
में
लगभग
65000
प्रकार
की
फलियां
और
दालें
हैं।
उन्होंने
आगे
कहा
कि
एक
सप्ताह
में
कम
से
कम
5
अलग-अलग
प्रकार
की
दालों
का
सेवन
अलग-अलग
तरीकों
से
करना
चाहिए,
जैसे
कि
दाल,
पापड़,
अचार,
इडली,
डोसा,
लड्डू,
आदि।
जब
हम
दालों
का
सेवन
अलग-अलग
तरीके
से
करते
है
तो
ये
स्वास्थय
को
अलग-अलग
तरीके
से
फायदा
पहुंचाता
हैं।
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