Ahoi Ashtami
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क्या है इस व्रत से जुड़ी धार्मिक मान्यता
पहले के समय में त्योहारों के समय घरों की लिपाई मिट्टी से की जाती थी। ऐसे ही एक घर की सात बहुएं अपनी ननद के साथ मिट्टी लेने जंगल की ओर निकली।वहां पर खुदाई के दौरान लड़की की खुरपी से नीचे निवासित स्याहु परिवार का एक बच्चा मर गया। इसके बाद से लड़की के जब भी बच्चे होते थे वो सात दिन के अंदर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। यह सब देख वो चिंतित हो गई अब जब पंडित जी को बुलाकर इस बात को बताया गया तब पंडित जी के निर्देशानुसार अहोई माता का व्रत किया गया जिसके फलस्वरूप लड़की की सभी संताने जीवित हो गई तब से इस व्रत की विशेष मान्यता है। सन्तानों के सभी संकट काटने एवं उनकी दीर्घायु हेतु अहोई माता की आराधना की जाती है।
क्या है इस व्रत से जुड़ी पूजन विधि
सर्वप्रथम सूर्योदय के समय स्नान करें एवं प्रभु का स्मरण करें। स्वच्छ वस्त्र पहने और अपने मंदिर की दीवार में गेरू एवं चावल से अहोई माता, स्याहु एवं सभी सात पुत्रों का चित्र बनाएं या तस्वीर लाकर चिपकाएं फिर पानी से भरे मटके में हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं एवं उसे ढंककर रखें और ढक्कन पर सिंघाड़े रख दें। सभी महिलाओं के साथ बैठकर पूजा करें,कथा सुने, सभी महिलाओं को कपड़ा अवश्य दें। पूजा सच्ची भावना से करें किसी भी मिठाई का भोग लगाएं। पूजा एवं आरती के पश्चात माता से जुड़े मंत्रो का उच्चारण करें। रात में सितारों को जल्द अर्पित कर स्वयं जल एवं अन्न ग्रहण करें। इस दिन चांदी की माला बनाई जाती है जिसमें अहोई माता के लॉकेट को जोड़ा जाता है। हर साल स्याहु नाम से दो मोती इसमें बढ़ा दिये जाते हैं। इस कथा को अपनी संतान की उपस्थिति में सुना जाता है। इस दिन व्रत के बाद भी दूध, दही, खीर आदि सफेद खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए। पूजन के बाद महिलाओं को दान करें महिलाओं का सम्मान करें। इस दिन महिलाओं द्वारा किसी भी धारदार वस्तु का प्रयोग वर्जित बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन महिलाएं सब्जी तक नही काटती हैं। इस दिन किया गया यह व्रत सभी माताओं के लिए शुभ फल लेकर आता है। यह फल इतना सुखदाई होता है जिसकी लोगों ने उम्मीद भी नही की होती है। माता अहोई सभी बच्चों को संकट से बचाती हैं एवं अपनी संतान की तरह उनका ध्यान रखती हैं।
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