Sunday, February 27, 2022
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शिवरात्रि: संहार के देवता शिव का रात्रि में ही क्यों होता है पूजन


शिवरात्रि: भगवान शंकर इस संसार के पालनहार है. इन्हें प्रसन्न करना और इनकी कृपा की प्राप्ति करना आसान है. वैसे तो सभी देवताओं का पूजन, व्रत आदि प्रायः दिन में ही होता है. तो प्रश्न यह उठता है कि भगवान भोले को प्रसन्न करने के लिए रात्रि का सहारा क्यों लेना पड़ता है. आखिर भगवान शंकर को रात्रि ही क्यों प्रिय है?

भगवान शिव संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं, अतः तमोमयी रात्रि से उनका लगाव होना स्वाभाविक ही है. रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है, उसके आने से प्रकाश का संहार हो जाता है. जीव जो दिनभर कर्म करते रहते हैं और कर्म करने की जो जिज्ञासा रहती है वह रात्रि में समापन की ओर बढ़ जाती है और अंत में निद्रा द्वारा चेतनता ही संहार होकर समयकाल के लिए अचेतन हो जाते हैं.

शिव संहार के देवता है. इसलिए वह रात्रि प्रिय है. यही कारण है कि भगवान शंकर की आराधना न केवल इस रात्रि में ही वरन सदैव रात्रि के प्रारम्भ होने के पहले यानी प्रदोष काल में की जाती है. शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में होना भी एक कारण है. शुक्लपक्ष में चंद्रमा पूर्ण और बलवान होता है और कृष्ण पक्ष में क्षीर्ण और कमजोर. चंद्रमा जीवन में रस को देने वाला होता है. इसलिए ज्योतिष में इसे मन से जोड़ा गया है. उसकी वृद्धि के साथ-साथ संसार के संपूर्ण रस से भरे पदार्थों में वृद्धि होती है और जब कृष्ण पक्ष में चंद्रमा कमजोर होने लगता है तो जीवन के सांसारिक रसों में कमी आने लगती है और पूर्ण क्षीर्णता अमावस्या होती है.  

महाशिवरात्रि का उपवास व जागरण क्यों ? 

ऋषि महर्षियों ने समस्त आध्यात्मिक अनुष्ठानों में उपवास को महत्त्वपूर्ण माना है. गीता के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है. आध्यात्मिक साधना के लिये उपवास करना परमावश्यक है. उपवास के साथ रात्रि जागरण का महत्व है. उपवास से इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है. इन्हीं सब कारणों से इस महारात्रि में उपवास के साथ रात्रि में जागकर शिव पूजा करते हैं .

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