तो, क्या ये सौर गतिविधियां पृथ्वी को प्रभावित करती हैं? नासा के अनुसार, सौर ज्वालाएं पृथ्वी पर तभी असर डालती हैं, जब वो सूर्य के पृथ्वी वाले हिस्से की तरफ होती हैं। इसी तरह कोरोनल मास इजेक्शन भी पृथ्वी पर तभी असर डालेंगे, जब सूर्य के पृथ्वी वाले हिस्से से बाहर आएंगे। सूर्य से निकाला गया चुंबकीय क्षेत्र और प्लाज्मा के विशाल बादल को कोरोनल मास इजेक्शन कहते हैं।
डॉ. तमिथा स्कोव को कोट करते हुए एक्सप्रेस ने लिखा है कि इन सब वजहों से पूरे ग्रह में कुछ हैरान करने वाली चीजें दिखाई दे सकती हैं। विभिन्न जगहों पर ऊषाकाल aurora नजर आ सकता है। स्कोव ने लोगों से इसका मजा लेने के लिए कहा है।
सौर तूफानों की ताकत के हिसाब से पृथ्वी पर उनके विभिन्न प्रकार के प्रभाव हो सकते हैं। US स्पेस वेदर सेंटर के अनुसार, जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म को G1 माइनर से G5 एक्सट्रीम के पैमाने पर रैंक किया जाता है। मामूली तूफान की वजह से पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है। सैटेलाइट ऑपरेशंस प्रभावित हो सकते हैं। इसके मुकाबले, एक्सट्रीम तूफान की वजह से ब्लैकआउट हो सकता है। ऐसे तूफान वोल्टेज कंट्रोल जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं, जिससे ग्रिड सिस्टम ध्वस्त हो सकता है। ट्रांसफॉर्मर को नुकसान हो सकता है। स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशंस में मुश्किलें आ सकती हैं। कई और असर भी देखे जा सकते हैं।
नासा के एक ब्लॉग में बताया गया है कि सूर्य की मैग्निेटिक साइकल हर 11 साल में एक ओवरड्राइव में चली जाती है। इस साइकल के पीक पर होने के दौरान सूर्य के मैग्निेटिक पोल्स पलटते हैं। इसे सोलर मैक्सिमम के रूप में जाना जाता हैै। सूर्य के मैग्निेटिक में बदलाव होने से ज्यादा सनस्पॉट और ऊर्जा पैदा होती है। इससे सोलर पार्टिकल्स में विस्फोट होता है।