डिजिटल डेस्क, काठमांडू। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में लिपुलेख क्षेत्र में सड़क का विस्तार करने की घोषणा के बाद नेपाल और भारत के बीच एक ताजा राजनयिक विवाद पैदा हो गया है। लिपुलेख क्षेत्र पर नेपाल अपना दावा करता है। 30 दिसंबर को उत्तराखंड के हल्द्वानी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा आयोजित एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, मोदी ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार लिपुलेख के नेपाली क्षेत्र में बनी सड़क को और चौड़ा कर रही है।
नेपाल पहले ही भारत सरकार द्वारा लिपुलेख और कालापानी क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण का विरोध कर चुका है। नेपाल ने 8 मई, 2020 को विरोध जताया था, जब भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख में नवनिर्मित सड़क का वर्चुअल तरीके से उद्घाटन किया था। भारत द्वारा सड़कों के विस्तार पर नेपाल के भीतर कड़े विरोध और आलोचनाओं के बाद, नेपाल सरकार ने लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी सहित क्षेत्रों को कवर करते हुए नए नक्शे जारी किए थे।
उसके तुरंत बाद, नेपाल ने भारत द्वारा कथित अतिक्रमित क्षेत्र के मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता करने की कोशिश की थी, लेकिन नई दिल्ली ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब तक, इस विषय पर कोई औपचारिक चर्चा नहीं हुई है। नवंबर, 2019 में भारत द्वारा अपने नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किए जाने के बाद से नेपाल और भारत सीमा विवाद में लिप्त हैं। नेपाल ने विवादित क्षेत्रों को अपने क्षेत्र में शामिल करने के भारत के फैसले का विरोध किया है। इसके जवाब में तत्कालीन के. पी. शर्मा ओली सरकार ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को शामिल करते हुए एक नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया था।
हालांकि दोनों पक्षों ने कूटनीतिक और राजनीतिक बातचीत और चैनलों के माध्यम से सीमा विवाद को सुलझाने की प्रतिबद्धता तो जताई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई है। मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि लिपुलेख तक सड़क को चौड़ा किया गया है और धार्मिक पर्यटन स्थल कैलाश मानसरोवर की ओर सड़क को चौड़ा करने का काम चल रहा है। इस सिलसिले में मुख्य विपक्षी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल ने मोदी द्वारा लिपुलेख पर की गई घोषणा पर आपत्ति जताई है। पार्टी की विदेश मामलों की शाखा के प्रमुख राजन भट्टराई ने मंगलवार को एक बयान जारी कर नेपाल की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वाभिमान का उल्लंघन करने वाली ऐसी गतिविधियों को समाप्त करने का आह्वान किया।
बयान में कहा गया है, सीपीएन-यूएमएल का ²ढ़ विश्वास है कि सड़कों और अन्य संरचनाओं का निर्माण रोक दिया जाना चाहिए, इस मुद्दे को बातचीत के माध्यम से तुरंत हल किया जाना चाहिए और स्टेट लेवल पर कोई भी ढांचा तब तक नहीं बनाया जाना चाहिए, जब तक बातचीत के माध्यम से समाधान नहीं हो जाता। भट्टाराई ने कहा कि कई सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि सरकार राष्ट्रवाद से जुड़े ऐसे गंभीर मुद्दों पर चुप है।
पार्टी ने सरकार से इस मुद्दे पर अपने भारतीय समकक्ष के साथ तुरंत बातचीत शुरू करने, भारत से सभी प्रकार की कथित गलत गतिविधियों को रोकने और कथित अतिक्रमित क्षेत्रों पर नेपाल के व्यावहारिक स्वामित्व को स्थापित करने के लिए उपयोगी पहल करने का आग्रह किया है। सत्तारूढ़ सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) ने भी सोमवार को एक बयान जारी किया और लिपुलेख के कथित अतिक्रमण और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान की निंदा की। हालांकि इस संबंध में लंबा वक्त बीत जाने के बावजूद, नेपाल में विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
(आईएएनएस)