तो क्या है वह मैकेनिज्म? वैज्ञानिकों का कहना है कि शनि ग्रह के कुछ ऑरोरा इस ग्रह के अपने वातावरण के अंदर घूमने वाली हवाओं से पैदा होते हैं। इस खोज ने ग्रहों के ऑरोरा को लेकर बनाए गई समझ को बदल दिया है। यह शनि के बारे में एक रहस्य को भी सुलझाता है कि हम ग्रह पर दिन की लंबाई क्यों नहीं माप सकते?
नासा (NASA) ने साल 1997 में कैसिनी (Cassini) को लॉन्च किया था, जो साल 2004 में शनि तक पहुंच गया। तब से इसने यह मापने की कोशिश की है कि यह ग्रह अपने दिन की लेंथ तय करने के लिए कितनी तेजी से घूमता है। वैज्ञानिकों को यह जानकर हैरानी हुआ कि साल 1981 में वायेजर 2 (Voyager 2) स्पेसक्राफ्ट के इस ग्रह के ऊपर से उड़ान भरने के बाद शनि का रोटेशन रेट बदल गया है।
वैज्ञानिकों ने अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में अपने निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं।
लीसेस्टर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में रिसर्चर नाहिद चौधरी के हवाले से कहा गया है कि किसी ग्रह का वास्तविक रोटेशन रेट जल्दी नहीं बदल सकता है। शनि ग्रह पर कुछ असामान्य है। वैज्ञानिकों ने पाया कि शनि के ऑरोरा का एक महत्वपूर्ण अनुपात इसके वातावरण में मौसम के पैटर्न से पैदा होता है। यह इस ग्रह के घूमने की दर के लिए जिम्मेदार है। यह स्टडी बताती है कि किसी ग्रह पर लोकल वायुमंडलीय मौसम से ऑरोरा के बनने पर कैसे असर पड़ता है।
शनि हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसने हमेशा वैज्ञानिकों और शौकिया खगोलविदों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। शनि के चारों ओर लगे छल्लों को देखकर इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन इसकी एक और विशेषता है इस ग्रह के 60 से ज्यादा चंद्रमा। इन चंद्रमाओं में से एक ने हाल में वैज्ञानिकों की जिज्ञासा को जगाया है। एक और रिसर्च के अनुसार, इस ग्रह की परिक्रमा करने वाले एक छोटे से चंद्रमा मीमास (Mimas) की जमी हुई सतह के नीचे एक महासागर छिपा हो सकता है।
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