Sunday, March 27, 2022
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राम सीय जस सलिल सुधासम उपमा बीचि बिलास मनोरम ⁠


Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas :  तुलसीदास जी रामचरित मानस एवं श्री राम को सुंदर उपमाओं से सुशोभित किया है. कमल एवं जल आदि से किस प्रकार तुलना करते हैं इसको समझते हैं. मानस मंत्र के भाव सागर में गोते लगाते हैं –

राम सीय जस सलिल सुधासम । 
उपमा बीचि बिलास मनोरम ⁠।⁠। 
पुरइनि सघन चारु चौपाई । 
जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई ⁠।⁠। 

श्री रामचन्द्र जी और सीता जी का यश अमृत के समान जल है। इसमें जो उपमाएँ दी गयी हैं वही तरंगों का मनोहर विलास है। सुन्दर चौपाइयां ही इसमें घनी फैली हुई पुरइन कमलिनी हैं और कविता की युक्तियाँ सुन्दर मणि मोती उत्पन्न करने वाली सुहावनी सीपियाँ हैं. 

छंद सोरठा सुंदर दोहा । 
सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा ⁠।⁠। 
अरथ अनूप सुभाव सुभासा । 
सोइ पराग मकरंद सुबासा ⁠।⁠। 

जो सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वही इसमें बहुरंगे कमलों के समूह सुशोभित हैं। अनुपम अर्थ, ऊँचे भाव और सुंदर भाषा ही पराग मकरंद और सुगंध हैं. 

सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । 
ग्यान बिराग बिचार मराला ⁠।⁠। 
धुनि अवरेब कबित गुन जाती । 
मीन मनोहर ते बहुभाँती ⁠।⁠। 

सत्कर्मों पुण्यों के पुञ्ज भौंरों की सुन्दर पंक्तियाँ हैं, ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस हैं। कविता की ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेकों प्रकार की मनोहर मछलियां हैं.

अरथ धरम कामादिक चारी । 
कहब ग्यान बिग्यान बिचारी ⁠।⁠। 
नव रस जप तप जोग बिरागा । 
ते सब जलचर चारु तड़ागा ⁠।⁠। 

अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ये चारों, ज्ञान-विज्ञान का विचार के कहना, काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग ये सब इस सरोवर के सुन्दर जलचर जीव हैं.

सुकृती साधु नाम गुन गाना । 
ते बिचित्र जलबिहग समाना ⁠।⁠। 
संतसभा चहुँ दिसि अवँराई । 
श्रद्धा रितु बसंत सम गाई ⁠।⁠। 

सुकृति (पुण्यात्मा) जनों के साधुओं के और श्री राम नाम के गुणों का गान ही विचित्र जल-पक्षियों के समान है। संतों की सभा ही इस सरोवर के चारों ओर की अमराई आम की बगीचियाँ हैं और श्रद्धा वसंत ऋतु के समान कही गयी है. 

भगति निरूपन बिबिध बिधाना । 
छमा दया दम लता बिताना ⁠।⁠। 
सम जम नियम फूल फल ग्याना । 
हरि पद रति रस बेद बखाना ⁠।⁠। 

नाना प्रकार से भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया तथा दम लताओं के मण्डप हैं। मन का निग्रह, यम यानी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह , नियम अर्थात शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान  ही उनके फूल हैं, ज्ञान फल है और श्री हरि के चरणों में प्रेम ही इस ज्ञान रूपी फल का रस है। ऐसा वेदों ने कहा है . 

औरउ कथा अनेक प्रसंगा । 
तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा ⁠।⁠। 

इस रामचरितमानस में और भी जो अनेक प्रसंगों की कथाएँ हैं, वे ही इसमें तोते, कोयल आदि रंग-बिरंगे पक्षी हैं. 

पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु ⁠। 
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ⁠।⁠।⁠  

कथा में जो रोमाञ्च होता है वही वाटिका, बाग और वन हैं, और जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेम रूपी जल से सुन्दर नेत्रों द्वारा उनको सींचता है.

अवधपुरी यह चरित प्रकासा, वेदों का वचन श्रीराम जन्म के समय सभी तीर्थ पहुंचते हैं अयोध्या जी

पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें, दुष्ट दूसरों को उजाड़ने में होते है खुश, दूसरों का सुख देख कर होते है दुखी



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