Sunday, February 6, 2022
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‘ये तो मराठी हैं इनके तलफ़्फ़ुज़ कैसे होंगे?’ जब लता मंगेशकर को देखकर बोल पड़े थे दिलीप कुमार, ‘दीदी’ ने किया था कुछ ऐसा


Image Source : LATA MANGESHKAR/INSTAGRAM
Lata Mangeshkar with Dilip Kumar

इंटरव्यू चल रहा था और सामने स्वर कोकिला लता मंगेशकर बैठी थीं। इंटरव्यू के बीच में अचानक लता से अगले जन्म के बारे में पूछा जाता है तो वो मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘अगला जन्म न ही मिले तो ही अच्छा है। अगर जन्म मिलता है तो मैं कभी लता मंगेशकर नहीं बनना चाहूंगी। लता मंगेशकर की जो तकलीफें हैं वो उसी को पता है।’

आज 92 साल की उम्र में लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कहा तो बार-बार कानों में उनकी यही आवाज़ गूंज रही है। ऐसा लगता है जैसे उन्हें भी ये पता था कि लता सिर्फ एक है और एक ही रहेगी। चाहकर भी कोई दूसरी लता मंगेशकर नहीं हो पाएगी। लता मंगेशकर का जाना एक युग के बीत जाने जैसा है। क्योंकि उन्होंने हिंदी सिनेमा में शमशाद बेगम, मोहम्मद रफी, मन्ना डे से लेकर उदित नारायण तक के साथ गाने गाए थे। 

दिलीप कुमार से लता की मुलाकात-

लता मंगेशकर ने साल 1942 में मराठी फिल्म किट्टी हसल (कितना हसोगे) के लिए पहला गाना गाया था, लेकिन ये गाना कभी रिलीज नहीं हुआ था। इसके बाद कई बार उन्हें लाइफ में रिजेक्शन भी देखने को मिले। लेकिन पिता की मौत के बाद का एक किस्सा लता मंगेशकर ने खुद सुनाया था जब वो गाने के लिए लोकल ट्रेन में जाया करती थीं।

एक इंटरव्यू में लता मंगेशकर बताती हैं, ‘मैंने पिता के निधन के बाद नवयुवक फिल्म में काम शुरू किया था और उसमें मैंने हीरोइन की बहन का रोल किया था। उस समय मैं 13 साल की थी। वहां से मेरा फिल्मों में काम करने का सिलसिला शुरू हुआ। क्योंकि हम पांच भाई-बहन थे और जिम्मेदारी उठानी थी। पुणे का घर भी बिक गया था और हम किराये पर आ गए थे।’

बकौल लता मंगेशकर, मुंबई आने के बाद मुझे लोकल ट्रेन से ही सफर करना पड़ता था। दिलीप कुमार से मेरी मुलाकात भी ट्रेन में ही हुई थी। उस समय सभी स्ट्रगलिंग एक्टर थे तो अनिल विश्वास भी हमारे साथ थे। अनिल विश्वास ने दिलीप कुमार से मुझे मिलवाया और कहा कि ये लड़की बहुत अच्छा गाती है। दिलीप साहब ने पूछा, ‘कहां की है?’ उन्होंने कहा, ‘मराठी है।’

दिलीप कुमार सबकुछ सुनते रहे और अचानक बोले- ‘ये मराठी हैं तो इनके तलफ़्फ़ुज़ (उच्चारण) कैसे होंगे?’ लता उस समय को याद करते हुए आगे कहती हैं, ‘मैंने घर आकर उर्दू सीखने और पढ़ने का फैसला किया। मेरे एक शफीक करके भाई थे तो मैंने उनसे उर्दू ज़ुबान की जानकारी लेना शुरू किया। वहां से मैंने उर्दू पढ़ना शुरू किया, फिर हिंदी पढ़ी और देखते ही देखते सबकुछ सीख गई।’





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