एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस (Roscosmos) ने कन्फर्म किया कि तीनों अंतरिक्ष यात्रियों ने सफलतापूर्वक ऑर्बिट में प्रवेश कर लिया। साल 2014 में यूक्रेन के एक द्वीप पर रूस द्वारा कब्जा करने के बाद से उस पर प्रतिबंध लगने शुरू हुए थे, जो यूक्रेन पर हमला करने के बाद तेजी से बढ़े हैं, लेकिन इसने अंतरिक्ष की दुनिया में सहयोग को कम होने नहीं दिया है। हालांकि साल 2018 में जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने करीबी दिमित्री रोगोज़िन को रोस्कोसमोस के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया, तब से रूस और पश्चिमी देशों के बीच अंतरिक्ष प्रोग्राम्स को लेकर भी विवाद बढ़े हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जो बाइडन’ ने पिछले महीने रूस की एयरोस्पेस इंडस्ट्री को टारगेट करते हुए उस पर प्रतिबंधों का ऐलान किया। इसके जवाब में रोगोजिन की ओर से चेतावनी दी गई।
दिमित्री रोगोज़िन ने कहा था कि अगर आप हमारे साथ सहयोग को रोकते हैं, तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को अनियंत्रित रूप से परिक्रमा करने और अमेरिका या यूरोपीय क्षेत्र में गिरने से कौन बचाएगा? उन्होंने यह भी कहा था कि यह स्टेशन चीन या भारत के ऊपर भी गिर सकता है। गौरतलब है कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के संचालन में रूस की अहम भूमिका है। लेकिन रूस के लिए भी अंतरिक्ष की दुनिया में सबकुछ बहुत आसान नहीं रह गया है। अमेरिकी अरबपति एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने ऑर्बिटल लैब में लॉन्च पर रूस के एकाधिकार को खत्म कर दिया है।
वैसे, बात करें मौजूदा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंचे रूसी अंतरिक्ष यात्रियों की, तो उन्होंने और वहां मौजूद पश्चिमी देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने उस संघर्ष से किनारा कर लिया है, जो पृथ्वी पर रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद दिखाई दिया है।
हालांकि कुछ वाकये जरूर हुए हैं। जैसे- रिटायर्ड अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली ने साल 2011 में रूसी सरकार से मिले मेडल को लौटा दिया है। स्कॉट केली के नाम अंतरिक्ष में लगातार 340 दिन रहने का रिकॉर्ड है। इस रिकॉर्ड को हाल ही में उनके सहयोगी रहे मार्क वंदे हेई ने तोड़ा है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को अमेरिका, कनाडा, जापान, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और रूस के बीच एक सहयोग के तहत बनाया गया है। यह दो सेक्शंस में बंटा है। पहला- US ऑर्बिटल सेगमेंट और दूसरा- रूसी ऑर्बिटल सेगमेंट। अपनी कक्षा को बनाए रखने के लिए ISS एक रूसी प्रोपल्शन सिस्टम पर निर्भर है और बिजली व लाइफ सपोर्ट सिस्टम की जिम्मेदारी अमेरिका द्वारा पूरी की जाती है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर सेटअप किया गया है।