यूक्रेन के मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ‘सभी सबूत बताते हैं कि साइबर हमले के पीछे रूस का हाथ है। मास्को ने हाइब्रिड युद्ध छेड़ा हुआ है। सूचना और साइबर स्पेस में वह सक्रिय रूप से अपनी सेना का निर्माण कर रहा है।’ यह हमला ऐसे समय में हुआ है, जब यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का खतरा मंडरा रहा है और तनावपूर्ण गतिरोध को हल करने के लिए राजनयिक वार्ता भी रुक गई है।
शनिवार को एक ब्लॉग पोस्ट में माइक्रोसॉफ्ट ने कहा था कि उसने गुरुवार को पहली बार मैलवेयर का पता लगाया। यह उस हमले से मेल खाता है, जिसने यूक्रेन की 70 सरकारी वेबसाइटों को एकसाथ अपनी चपेट में ले लिया।
माइक्रोसॉफ्ट ने बताया था कि उसकी जांच टीमों ने कई दर्जन सिस्टम्स पर मैलवेयर को ढूंढा है और यह संख्या बढ़ सकती है। जो सिस्टम साइबर हमले की चपेट में आए हैं, वह यूक्रेन के कई सरकारी, गैर-लाभकारी और इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी ऑर्गनाइजेशंस में मौजूद हैं। माइक्रोसॉफ्ट के मुताबिक, उसे नहीं पता कि हैकर किस स्तर पर हमला कर रहे हैं। यह भी नहीं मालूम है कि और कितने ऑर्गनाइजेशन इसकी चपेट में आए हैं।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रविवार को कहा था कि अमेरिकी और कई प्राइवेट कंपनियां अभी भी हमलों के स्रोत का पता लगाने के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने रूस से साइबर हमले की संभावना के बारे में चेतावनी दी थी। वह यूक्रेन के साथ उसकी सिक्योरिटी बेहतर करने के लिए काम कर रहा है।
कहा जाता है कि इससे पहले 2017 में भी रूस ने यूक्रेन पर साइबर हमला किया था। नोटपेट्या वायरस के साथ यूक्रेन को टारगेट किया गया था। इससे विश्व स्तर पर 10 बिलियन डॉलर (लगभग 74,150 करोड़ रुपये) से अधिक का नुकसान हुआ था।
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