Obese Children at Higher Risk of Diseases : मोटापा (obesity) या ज्यादा वजन (overweight) होने से हेल्थ पर होने वाला साइड इफेक्ट सिर्फ बड़े या वयस्कों तक ही सीमित नहीं होता है. छोटे बच्चों के लिए तो यह और भी खतरा पैदा करता है. यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया (University of Georgia) की नई स्टडी में बताया गया है कि मोटापे का बच्चों के कार्डियोवस्कुलर सिस्टम (cardiovascular system) पर वयस्कों की तुलना में ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है. स्टडी में 600 से ज्यादा बच्चे किशोरों और युवाओं की आंत में वसा (visceral fat) का लेवल और धमनी के कड़ेपन (arterial stiffness) का आकलन किया गया. विसरल फैट शरीर के अहम अंगों तक पहुंचता है. रिसर्चर्स ने पाया कि जब ये फैट युवाओं की धमनियों (arteries) में जाता है, तो उसे सख्त या कड़ा बना देता है, जिससे कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को पूरे शरीर में ब्लड पंप करने के लिए ज्यादा जोर लगाना पड़ता है. इससे यह सहज संकेत मिलता है कि पेट की ज्यादा चर्बी बच्चों के कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को भी प्रभावित करती है. इस स्टडी के निष्कर्ष मेडिकल जर्नल पीडियाट्रिक ओबीसिटी (Pediatric Obesity) में प्रकाशित किए गए है.
कॉलेज ऑफ फैमिली एंड कंज्यूमर साइंसेज (College of Family and Consumer Sciences) में न्यूट्रिशनल साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और इस स्टडी के राइटर जोसेफ किंडलर (Joseph Kindler) ने बताया, ‘धमनी (artery) के कड़ा होने से रक्त का संचार (blood circulation) तेज गति से होता है, जो पूरे सिस्टम पर दबाव बढ़ाने के साथ ही नुकसानदेह भी होता है. यह स्थिति जब लंबे समय तक बरकरार रहती है, तो शरीर के दूसरे सिस्टम पर भी उसका असर होता है. और फिर हेल्थ से जुड़ी कई समस्याएं पैदा होती हैं.’
क्या कहते हैं जानकार
रिसर्चर्स का मानना है कि कार्डियोवस्कुलर रिस्क को लेकर ज्यादातर स्टडीज युवाओं तक सीमित रही हैं. जबकि कार्डियोवस्कुलर सिस्टम पर नकारात्मक बदलाव बचपन या किशोरावस्था में शुरू हो जाता है, जो आगे चलकर हार्ट अटैक जैसे रोगों का बड़ा कारण बनता है. जोसेफ किंडलर (Joseph Kindler) ने बताया कि हम चाहते हैं कि बच्चों में कार्डियोवस्कुलर बीमारियों की रोकथाम की जा सके, ताकि वे हेल्दी किशोरावस्था और युवावस्था की और बढ़ सकें.
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उन्होंने बताया कि इसके लिए जरूरी यह है कि इसके पीछे के कारणों की पहचान जाए, ताकि यह तय किया जा सके कि उस पर किस तरह से काबू पाया जा सकता है.
कैसे हुई स्टडी
इस स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने बच्चों में बॉडी फैट मापने के लिए ड्यूअल-एनर्जी एक्स-रे अब्जाप्शर्न (Dual-energy X-ray absorptiometry) या डीएक्सए का इस्तेमाल किया. वैसे आमतौर पर इस तकनीक का उपयोग हड्डी और हार्मोन संबंधी रिसर्च में किया जाता है. लेकिन अब ये बॉडी फैट संबंधी रिसर्च में भी किया जाता है, क्योंकि यह पारंपरिक स्कैन के बराबर ही सूचनाएं देता है.
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यह तकनीक तेज, किफायती तो है ही, साथ ही इसमें रिडिएशन की कम डोज का इस्तेमाल किया जाता है. इसका भी आकलन किया गया कि शरीर के मध्य हिस्से से पैर तक रक्त पहुंचने में कितना समय लगता है. इससे धमनी के कड़ेपन का अंदाजा लगता है.
किन बच्चों को है ज्यादा खतरा
जोसेफ किंडलर (Joseph Kindler) के अनुसार, जिन बच्चों में धमनी में कड़ापन आ जाता है, उनमें कार्डियोवस्कुलर डिजीज (cardiovascular disease) होने का ज्यादा खतरा होता है और ऐसा ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स (BMI) वालों में देखा गया है. उनके मुताबिक चिंता की दूसरी बड़ी बात ये है कि ऐसे बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज के ज्यादातर मामले पाए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि छोटी उम्र में यदि बॉडी सिस्टम ज्यादा तेज गति से काम करने लगे तो वयस्कों की तुलना में बच्चों को ज्यादा खतरा होता है. इसमें ब्रेन, किडनी, हड्डी और लिवर के रोग भी ज्यादा परेशान करते हैं.
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