Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas: रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास जी ने कहा है कि हृदय में श्री राम गुण गान रूपी भजन का अनूठा प्रभाव अनेक प्रकार से वेदों, शास्त्रों आदि में वर्णित है रामचरित गुणगान कितना ही कम किया जाए तो भी वह भव से पार करने वाला होता है.
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई ।
तदपि कहें बिनु रहा न कोई ।।
तहाँ बेद अस कारन राखा ।
भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ।।
प्रभु श्री रामचन्द्र जी की प्रभुता को सब जानते हैं, तो भी कहे बिना किसी से न रहा गया. इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है. कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है अर्थात् भगवान् की महिमा का पूरा वर्णन तो कोई कर नहीं सकता परन्तु जिससे जितना बन पड़े उतना भगवान् का गुणगान करना चाहिए क्योंकि भगवान् के गुणगान रूपी भजन का प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है थोड़ा-सा भी भगवान् का भजन मनुष्य को सहज ही भवसागर से तार देता है.
एक अनीह अरूप अनामा ।
अज सच्चिदानंद पर धामा ।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना ।
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ।।
जो परमेश्वर एक हैं, जिनके कोई इच्छा नहीं है, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है, जो अजन्मा, सच्चिदानन्द और परमधाम हैं. जो सब में व्यापक एवं विश्वरूप हैं, उन्हीं भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके अनेक प्रकार की लीला की है.
सो केवल भगतन हित लागी ।
परम कृपाल प्रनत अनुरागी ।।
जेहि जन पर ममता अति छोहू ।
जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ।।
वह लीला केवल भक्तों के हित के लिए ही है क्योंकि भगवान् परम कृपालु हैं और शरणा गत के बड़े प्रेमी हैं. जिनकी भक्तों पर बड़ी ममता और कृपा है, जिन्होंने एक बार जिस पर कृपा कर दी, उस पर फिर कभी क्रोध नहीं किया.
गई बहोर गरीब नेवाजू ।
सरल सबल साहिब रघुराजू ।।
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी ।
करहिं पुनीत सुफल निज बानी ।।
प्रभु श्री रघुनाथ जी गयी हुई वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले, गरीब निवाज दीनबन्धु, सरल स्वभाव, सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी हैं. यही समझकर बुद्धिमान् लोग उन श्री हरि का यश वर्णन करके अपनी वाणी को पवित्र और उत्तम फल मोक्ष और दुर्लभ भगवत प्रेम देने वाले बनाते हैं.
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा ।
कहिहउँ नाइ राम पद माथा ।।
मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई ।
तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ।।
उसी बल से महिमा का यथार्थ वर्णन नहीं, परन्तु महान् फल देने वाला भजन समझकर भगवत कृपा के बल पर ही मैं श्री रामचन्द्र जी के चरणों में सिर नवाकर श्री रघुनाथ जी के गुणों की कथा कहूँगा. इसी विचार से वाल्मीकि, व्यास आदि मुनियों ने पहले हरि की कीर्ति गायी है, भाई उसी मार्ग पर चलना मेरे लिए सुगम होगा.
दोहा—
अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं ।
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ।।
जो अत्यन्त बड़ी श्रेष्ठ नदियाँ हैं, यदि राजा उन पर पुल बँधा देता है तो अत्यन्त छोटी चींटियाँ भी उन पर चढ़कर बिना ही परिश्रम के पार चली जाती हैं इसी प्रकार मुनियों के वर्णन के सहारे मैं भी श्री रामचरित्र का वर्णन सहज ही कर सकूँगा.
करतब बायस बेष मराला, बाहर से अच्छे भीतर से कपटी होते हैं कलियुग में पापी
सुमिरत सारद आवति धाई, सरस्वती जी ब्रह्म लोक से दौड़ी चली आती है रामचरित के तलाब में डुबकी लगाने