इसका सॉल्यूशन लेकर आया है कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का एक ग्रुप। उनका कहना है कि अगर अंतरिक्ष यान उनके द्वारा बताई गई संचालक शक्ति प्रणाली (propulsion system) का इस्तेमाल करता है, तो पृथ्वी-मंगल की यात्रा का समय घटाकर सिर्फ 45 दिन किया जा सकता है। यानी पृथ्वी से मंगल ग्रह पर पहुंचने में 45 दिनों का वक्त लगेगा। ऐसा संभव हुआ, तो मंगल ग्रह से जुड़ी खोज में काफी तेजी आएगी। साइंटिस्ट एक लेजर-थर्मल प्रपल्शन सिस्टम की क्षमता का आकलन कर रहे हैं। इसी की बदौलत इतने कम वक्त में मंगल पर पहुंचने की उम्मीद जगी है।
डायरेक्टेड ऊर्जा का इस्तेमाल करने का आइडिया नया नहीं है। हाल के वर्षों में इस पर काफी रिसर्च हुई है। इसके तहत अंतरिक्ष यान को गहरे अंतरिक्ष में ले जाने के लिए लेजर बीम का इस्तेमाल किया जाता है। लेजर जितना ज्यादा ताकतवर होगा, अंतरिक्ष यान को भी उतनी ही तेज स्पीड दी जा सकती है। रिसर्चर्स ने अंतरिक्ष यान पर बड़े लेजरों को लगाने का प्रस्ताव दिया है। यह बिजली पैदा करेगा और थ्रस्ट पैदा करेगा।
रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी को एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोनॉमी जर्नल में पेश किया है। इस रिसर्च को एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के स्टूडेंट इमैनुएल डुप्ले ने लीड किया था। अगर यह विचार सफल होता है, तो मंगल ग्रह से जुड़ी कई चुनौतियों से निपटा जा सकेगा। वहां इंसान को उतारने का मकसद तेजी से पूरा हो सकेगा। यह भी समझने में मदद मिलेगी कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन था।
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