Thursday, January 13, 2022
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ब्रह्मांड के इन दो ग्रहों पर होती है बेशकीमती ‘हीरों की बारिश’, जानें इसका पूरा रहस्य


वॉशिंगटन: हमारे सौर मंडल में यूरेनस और नेपच्यून जैसे कुछ ग्रह हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों का दावा है कि इन ग्रहों पर ‘हीरों की बारिश’ होती है. इन दोनों ग्रहों पर हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन जैसी गैसें मौजूद हैं. यहां वातावरणीय दबाव काफी ज्यादा है जो हाइड्रोजन और कार्बन बॉन्ड को तोड़कर अलग कर देता है और कार्बन, हीरे के रूप में धरती पर बरसता है.

वैज्ञानिकों ने क्यों किया ऐसा दावा

वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग के आधार पर ये दावे किए हैं. यूरेनस और नेपच्यून का आकार और संरचना से काफी अलग है. यूरेनस पृथ्वी से 17 गुना बड़ा है और नेपच्यून 15 गुना. यूरेनस पर मीथेन गैस मौजूद है जिसका रासायनिक नाम CH₄ है.

वातावरण के दबाव के चलते इससे हाइड्रोजन (H) अलग हो जाता है और कार्बन (C) हीरे का रूप ले लेता है. ये प्रक्रिया वैसी ही है जैसे पृथ्वी पर वायुमंडलीय दबाव के चलते जलवाष्प की प्रक्रिया होती है और बादल-ओले बनते हैं.

नेपच्यून पर जमी हुई मीथेन गैस पाई जाती है जिसके बादल यहां उड़ते हैं. नेपच्यून की दूरी सूर्य से सबसे ज्यादा है जिसकी वजह से यहां तापमान -200 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है. यहां चलने वाली हवाओं की रफ्तार करीब 2500 किमी/घंटा है और वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के चलते यहां हीरों की बारिश देखने को मिलती है.

इंसानों का पहुंचना मुमकिन हैं?

अगर इंसान चाहे भी तो अत्यधिक दूरी और चरम परिस्थितियों की वजह से इन ग्रहों पर पहुंच कर हीरों को हासिल नहीं कर सकता. वैज्ञानिक थ्योरी के अनुसार, शनि ग्रह पर भी हीरों की बारिश होती है क्योंकि, यहां भी मीथेन गैस के बादल मौजूद हैं. बादलों से स्पेस की विद्युत ऊर्जा टकराती है और कार्बन अणु टूटकर अलग हो जाता है. हालांकि ये नीचे आने पार चमकदार हीरे के बजाय उच्च तापमान और वायुमंडलीय दबाव के चलते कड़े ग्रेफाइट में बदल जाता है.





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