हालांकि एक नई रिसर्च में यह कहा गया है कि यूरोपा के समुद्र तक ऑक्सीजन पहुंच रही है। इसका तरीका थोड़ा अलग है। रिसर्चर्स का कहना है कि यह ऑक्सीजन को उसकी बर्फीली सतह के नीचे खींच रहा है। रिसर्चर्स के मुताबिक यूरोपा के बर्फीले शेल में खारे पानी के पूल, इसकी सतह से ऑक्सीजन को समुद्र तक ले जा सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रोफेसर मार्क हेसे की स्टडी से यह भी पता चलता है कि यूरोपा के महासागरों में ऑक्सीजन की मात्रा पृथ्वी के महासागरों में ऑक्सीजन की मात्रा के बराबर हो सकती है।
डाउनवर्ड ऑक्सीडेंट ट्रांसपोर्ट थ्रू यूरोपा नाम की इस रिसर्च को जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
अगर यह तथ्य साबित हो जाता है, तो स्टडी यह बता सकती है कि जीवन कैसे अपना रास्ता खोजता है। हालांकि इसके लिए यूरोपा को करीब से देखने की जरूरत होगी, क्योंकि बर्फ की यह सतह लगभग 15-25 किलोमीटर मोटी हो सकती है। अच्छी बात यह है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, बृहस्पति पर एक ऑर्बिटर भेजने की तैयारी कर रही है। ‘यूरोपा क्लिपर’ नाम का यह ऑर्बिटर 2024 में लॉन्च होने के लिए तैयार है और इसके कई करीबी फ्लाईबाई को पूरा करेगा। इससे वैज्ञानिकों को इसके वातावरण, सतह और इंटीरियर पर डेटा इकट्ठा करने में मदद मिलेगी।
बात करें कुछ अहम खोजों की, तो हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ग्रह की खोज की है, जो आलू के आकार का है। रिसर्चर्स ने WASP-103b नाम के एक ग्रह की खोज की है, जो पृथ्वी से लगभग 1,500 प्रकाश वर्ष दूर है। इसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका आकार आलू या रग्बी बॉल जैसा है। खगोलविदों का कहना है कि WASP-103b नाम का यह ग्रह एक F-प्रकार के तारे के चारों ओर स्थित है। यह तारा हमारे सूर्य से बड़ा है। यह ग्रह भी बड़ा है। बृहस्पति से भी डेढ़ गुना है। ग्रह अपने तारे के नजदीक होने की वजह से आलू के आकार का है।
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